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कर सकते हैं, आंधी और तूफान से बचा सकते हैं, मगर चेहरे को खिला सकना उनके सामथ्र्य से बाहर है।

by
Dec 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Dec 2006 00:00:00

-प्रेमचंद (गुप्तधन, भाग 1, पृ. 108)

उन्होंने माना

शायद ऐसा पहली बार हुआ कि जब किसी शीर्ष नेता ने पत्रकार वार्ता में बिना किसी पूर्व वक्तव्य या भूमिका रखे सीधे सवाल पूछने को कहा हो। 1 फरवरी, 2006 को राजधानी में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय मीडिया को सवाल-जवाब के लिए आमंत्रित किया। इस मौके पर डा. सिंह ने जहां एक ओर जमकर अपनी सरकार की पीठ थपथपाई वहीं सोनिया गांधी को प्रेरणा और संबल बताया। राहुल गांधी को बड़ी भूमिका निभाने के लिए आगे लाने की पैरवी की तो क्वात्रोकी, बिहार, गोवा, झारखण्ड में अपना दामन उजला ठहराया। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री को यह प्रेस वार्ता कहीं इसलिए करने की तो नहीं सूझी कि वे सबके सामने खुद को एक कारगर प्रधानमंत्री के रूप में दिखाना चाहते हैं। क्योंकि यह चर्चा चलती रही है कि आखिर सरकार की ओर से महत्वपूर्ण फैसले हो जाते हैं और प्रधानमंत्री बाद में कहते हैं कि उनकी जानकारी में वह नहीं था।

हालांकि इस प्रेस वार्ता में प्रधानमंत्री डा. सिंह पहली बार थोड़ा खुलकर जवाब देते दिखे। आर्थिक कार्यक्रमों पर जहां उन्होंने सुघड़ता से अपनी बात रखी और 20 माह की अपनी उपलब्धियां बार-बार दोहराईं वहीं पार्टी और गठबंधन सरकार पर गहराते संकटों से जुड़े सवालों पर सावधानी से शब्द चुनते दिखे। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि संप्रग सरकार ने अमरीका, ब्रिटेन, जापान, रूस, चीन, सऊदी अरब के साथ सम्बंध मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। विभिन्न क्षेत्रों में इन देशों के साथ रिश्ते कायम हुए हैं। आसियान के कई देशों के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र संधियां हैं और जिनके साथ नहीं हैं उनके साथ निकट भविष्य में होने वाली हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भारत अपनी वैश्विक भूमिका निभाने को तैयार है और भारत सुरक्षा परिषद की सदस्यता का उपयुक्त उम्मीदवार है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के साथ दोस्ताना सम्बंधों के प्रयास जारी हैं। जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद सम्बंधी प्रश्न के जवाब में डा. सिंह ने कहा कि भारत सरकार समस्या को सुलझाने के लिए सभी से वार्ता करने को तैयार है ताकि हिंसाचार खत्म हो। बहरहाल, एक बार नहीं, दो बार यह दिलचस्प सवाल पूछा गया कि विपक्ष उनको “कमजोर” प्रधानमंत्री कहता है और कि सोनिया गांधी से पूछे बिना कोई महत्वपूर्ण फैसला नहीं लिया जाता? प्रधानमंत्री डा. सिंह ने सावधानीपूर्वक कहा कि मुझे मेरे कामों से आंकें, विपक्ष के कहे अनुसार नहीं। जहां तक श्रीमती सोनिया गांधी का प्रश्न है तो वे कांग्रेस अध्यक्ष हैं, संप्रग अध्यक्ष हैं, अत: इस नाते संप्रग सरकार को सलाह देने का उनको पूरा हक है। डा. सिंह ने श्रीमती गांधी के सुझावों को अपने लिए प्रेरणा और संबल बताया।

दक्षिण का द्वार?

पिछले विधानसभा चुनावों में 79 स्थान जीतकर यूं तो भाजपा पहली बार दक्षिण के किसी राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, मगर कांग्रेस-जद (सेकुलर) ने गठजोड़ कर लिया और कर्नाटक में सरकार बना ली। कांग्रेस के पास 64 स्थान ही थे। परन्तु अपनी स्थिति को लगातार दृढ़ करते हुए भाजपा ने अंतत: जनता दल (सेकुलर) के एक बड़े हिस्से, जो कुमारस्वामी के नेतृत्व में अलग हो गया था, से संधि करके धरम सिंह की कांग्रेस सरकार को अपदस्थ कर दिया। अंतत: 3 फरवरी को कुमारस्वामी ने कर्नाटक में 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। वरिष्ठ भाजपा नेता येदीयुरप्पा ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। पूर्व मुख्यमंत्री देवेगौड़ा, जिन्होंने अपने पुत्र कुमारस्वामी और उनके समर्थकों के भाजपा से हाथ मिलाने का भरपूर विरोध किया, परन्तु अदालत के माध्यम से भी अपने मन की करवाने में सफल नहीं हुए। दक्षिण में भाजपा ने दस्तक तो बहुत पहले ही दी थी, पर सत्ता में अब पहुंच पाई है। केरल में कुछ समय पूर्व हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भी भाजपा ने अच्छी सफलता दर्ज की थी। हालांकि अभी आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में चुनावी सफलता दूर दिखती है। कर्नाटक की यह भीनी सुगंध पार्टी का दक्षिण में कितना हौंसला बढ़ाएगी, यह तो समय ही बताएगा।

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