अलीगढ़ में मजहबी उन्माद
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अलीगढ़ में मजहबी उन्माद

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Nov 6, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Nov 2006 00:00:00

अलीगढ़ में मजहबी उपद्रवी शान्त होते नहीं दिखते। उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन मानो असहाय हो गया है। वर्ग विशेष के मोहल्लों में चर्चा रहती है कि आज कोई न कोई “जिबह” होना तय है, लेकिन सरकार का खुफिया तंत्र और विभिन्न थानों की पुलिस यूं बेफिक्र रहती है कि जैसे कोई सरकारी फर्मान आया हुआ है कि जो होता है होने दो। परिणामत: गत् 28 मई को अलीगढ़ एक बार पुन: तनावग्रस्त हो गया। इस बार के दंगे में 3 लोगों की जानें गईं और प्रशासन को शहर के बड़े हिस्से में कफ्र्यू की घोषणा करनी पड़ी। उत्तर प्रदेश शासन ने मृतकों को 5 लाख और गंभीर रूप से घायल लोगों को 1 लाख रुपए तथा साधारण घायलों को 50 हजार रुपए राहत राशि देने की घोषणा की है।

28 मई की रात लाला ओम प्रकाश गुप्ता की हत्या होगी ही, इसको लेकर शहर के अनेक इलाकों में सट्टे लगाए गए थे। हत्यारों ने जिस शैली में व्यापारी नेता श्री गुप्ता की हत्या की, ठीक उसी शैली में मात्र 10 दिनों के अन्दर दो और हत्याएं की जा चुकी थीं। श्री ओम प्रकाश गुप्ता अलीगढ़ के प्रतिष्ठित व्यवसायी मात्र ही नहीं थे वरन् सामाजिक सरोकारों के प्रति अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति थे। अभी पिछली 6 अप्रैल को जब अलीगढ़ में दंगा भड़का और जिसमें दंगाइयों ने सासनी के भाजपा विधायक देवकीनन्दन कोरी के सुपुत्र त्रिलोकी की न केवल नृशंस हत्या की वरन् उसकी लाश का खतना कर उसे दफना भी दिया, उस दंगे में पुलिस प्रशासन ने अपनी गलतियों पर पर्दा डालने और मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए दर्जनों हिन्दू नेताओं, व्यापारी प्रतिनिधियों को गिरफ्तार किया, उनमें लाला ओम प्रकाश भी प्रमुख थे। इसके कुछ दिनों पूर्व मारा गया युवक राजू समोसेवाला भी लाला ओमप्रकाश के साथ पुलिस द्वारा गत 6 अप्रैल को दंगा भड़काने में अभियुक्त बनाया गया था। यद्यपि अलीगढ़ में बच्चा-बच्चा जानता है कि 6 अप्रैल को “दंगा” दंगा न होकर मुसलमानों व पुलिस के बीच संघर्ष था। जो भी मुसलमान उस समय मरे थे, वे पुलिस की गोली के ही शिकार हुए थे। कहीं भी कोई मुसलमान हिन्दू-मुस्लिम फसाद में नहीं मरा था, यद्यपि मुस्लिम दंगाइयों से अपने दुकानों, प्रतिष्ठानों व मकानों को बचाने के लिए अवश्य हिन्दू समुदाय ने जगह-जगह प्रतिरोधक प्रदर्शन किए थे।

लेकिन अब जो हो रहा है, उसकी खुली घोषणा दंगाइयों ने पिछले “दंगे” के वक्त आहूत शांति समिति की बैठक में ही कर दी थी। चर्चा में यह भी सुना जा रहा है कि तब अलीगढ़ के नवनियुक्त जिलाधिकारी भुवनेश कुमार और पुलिस अधीक्षक अखिल कुमार के सामने ही सत्तारूढ़ दल से जुड़े एक मुस्लिम नेता ने कहा था-“शांति का क्या मतलब? जब तक 6 के बदले 16 मार नहीं लेते, तब तक कोई शांति-वांति स्थापित नहीं होगी।” और तभी से “16 के आंकड़े” को पाने के प्रयास प्रारंभ हो गए। और शुरूआत हुई दिनांक 19 मई को राजू कुमार समोसा वाला और 22 मई को रमन गुप्ता की नृशंस हत्या द्वारा। दोनों को मोटर साइकिल सवार दंगाइयों ने रात के अंधेरे में सर पर गोली मारकर हत्या कर दी। पर इन घटनाओं से प्रशासन पर शायद कोई असर पड़ा नहीं। असर पड़ा होता तो शांति समिति की बैठक में की गई “घोषणा” से ही सारे सूत्र पुलिस ने पकड़ लिए होते। लेकिन ऐसा करने की बजाय प्रशासन इसे रंजिशन हत्या बताने व बनाने में लगा हुआ है। यद्यपि उत्तर प्रदेश पुलिस ने हत्यारों का सूत्र देने वाले व्यक्ति को 3 लाख रुपए पुरस्कार देने की घोषणा भी कर दी है। परन्तु लोग इसे जानकर भी अनजान बने रहने की कार्रवाई से ज्यादा नहीं मान रहे हैं। पुलिस क्यों शिथिल पड़ी हुई है? इसका उत्तर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा पुलिस महानिरीक्षक मो. रिजवान पर लगाए गए इस आरोप से ही जाहिर हो जाता है कि उसके रिश्ते आई.एस.आई. से हैं। अलीगढ़ में हिन्दू समुदाय में बेचैनी इस कदर व्याप्त है कि लोग अकेले निकलने में अब भय महसूस करने लगे हैं। अब सामान्य आदमी भी दंगाइयों के बढ़ते जा रहे हौंसलों के लिए राज्य सरकार पर आरोप मढ़ने लगा है। बात में दम भी लगता है। उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री ख्वाजा हलीम इस समय अलीगढ़ प्रशासन पर हावी हैं। प्रतिनिधि

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