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चर्चा सत्र

by
Nov 6, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Nov 2006 00:00:00

आखिर हमें सऊदी अरब के छात्रों की जरूरत ही क्यों है?

-बलबीर पुंज

27 प्रतिशत आरक्षण से भारत के शिक्षार्थियों के भविष्य पर ताला लगाने के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह खाड़ी देशों की यात्रा पर गए हैं ताकि भारत और खाड़ी देशों के बीच शैक्षिक संभावनाओं को खोजा जा सके। इसी साल जनवरी में अर्जुन सिंह ने आई.आई.एम., बंगलौर के एक दीर्घकालीन प्रस्ताव को निरस्त कर दिया था, जिसमें सिंगापुर में एक बिजनेस स्कूल खोलने की योजना थी। सिंगापुर के पूर्व प्रधानमंत्री श्री गोह चोक तोंग के नेतृत्व में आई.आई.एम., अमदाबाद में जो प्रतिनिधिमंडल आया था उसने आई.आई.एम., बंगलौर द्वारा सिंगापुर में बिजनेस स्कूल खोलने के प्रस्ताव को रद्द किया जाना भारत की क्षति ही बताया था। बाद में श्री अर्जुन सिंह पलटे और अब इस प्रस्ताव को स्वीकृत कर लिया गया है और 14 मई को आई.आई.एम., अमदाबाद ने फ्रांस के “एसेक बिजनेस स्कूल” के सहयोग से सिंगापुर में अपना परिसर खोला है, जिसका उद्घाटन सिंगापुर के उप प्रधानमंत्री श्री एस. जयकुमार ने किया। भारत के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से वहां कोई उपस्थित नहीं हुआ।

अब इसके विपरीत चित्र देखिए। जद्दा में जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली और सऊदी अरब के शाह अब्दुल अजीज विश्वविद्यालय के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर के समय भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री स्वयं उपस्थित थे। यह यात्रा जामिया में सऊदी छात्रों की संख्या को और बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी। 2003 में जामिया में सऊदी छात्रों की संख्या 38 थी और जो 2004 में 104 हो गई। श्री अर्जुन सिंह ने इस करार पर हस्ताक्षर किए जाते समय उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए एक पंक्ति कही कि, “भारत में मुसलमानों का स्तर बढ़ाया जाएगा।” यह टिप्पणी किसी मुस्लिम देश के मंत्री कहते तो उनके लिए उचित था लेकिन श्री अर्जुन सिंह ने, जैसी कि अपेक्षा थी, सऊदी अरब के अल्पसंख्यकों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।

सवाल पूछा जाना चाहिए कि हमें भारत में सऊदी छात्रों को बुलाने की आवश्यकता ही क्यों है? इस्लाम यह दावा करता है कि उसने दुनिया को इस्लाम पूर्व छाए हुए आध्यात्मिक अंधकार यानी जहीलिया से बाहर निकाला। इस तर्क के अनुसार “मोमिन” स्वाभाविक रूप से “काफिरों” से ज्यादा बड़े विद्वान होने चाहिए। सारे इस्लामी विश्व से मजहबी शिक्षा के लिए सऊदी अरब के मदीना इस्लामी विश्वविद्यालय और शाह अब्दुल अजीज विश्वविद्यालय छात्रों को आकृष्ट करते हैं। इन दोनों विश्वविद्यालयों में वहाबी शिक्षाक्रम लागू है। डोर गोल्ड नामक विद्वान ने अपनी पुस्तक घृणा का साम्राज्य (हेट्रेड्स किंग्डम) में लिखा है कि ये दोनों विश्वविद्यालय इस्लामी आतंकवाद के सबसे बड़े केन्द्र बन गए हैं। मेरा सबसे बड़ा डर है कि वर्तमान संप्रग सरकार भारत को इस्लामी दायरे में जबरन घसीट कर शामिल करने की कोशिश कर रही है। वर्तमान दौर के तौर तरीके देखकर कहा जा सकता है कि बहुत जल्दी श्री अर्जुन सिंह तालिबान, फिलिस्तीन के हमास और इस्लामी ब्रादरहुड से भी समझौते करने के लिए तत्पर हो जाएंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 1974 में भारत ने इस्लामी सम्मेलन संगठन (ओ.आई.सी.) की सदस्यता के लिए कोशिश की थी। आरक्षण का हथियार तो केवल हिन्दू समाज को बांटने के लिए है, जो वास्तव में जिहादी क्लब की सदस्यता हासिल करने का एक साधन बनाया जा सकता है। श्री अर्जुन सिंह ने 2004 में अपने सत्तासीन होने की शुरूआत एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ पुस्तकों के “निर्विषीकरण” अभियान से की थी। उसके बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया को खुले हाथों अनुदान बांटे। फिर उन्होंने मुस्लिम आरक्षण का झंडा उठाया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित किया। अब उनके द्वारा घोषित आरक्षण नीति से विश्व भर में भारत के एक ज्ञान शक्ति के रूप में उभरने की कोशिश को गहरा झटका लगा। एक ओर जहां श्री अर्जुन सिंह सऊदी छात्रों को भारत बुलाने के लिए करार पर हस्ताक्षर कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर चीन के विश्वविद्यालय बहुत तीव्रता से भारत के छात्रों को चीन के विश्वविद्यालयों में ले जाने के अभियान पर हैं। भारत में हमारे मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में ढांचागत सुविधाओं और उनमें अध्यापन के लिए प्रशिक्षित व्यक्तियों की बेहद कमी रहती है। दूसरी ओर सरकार इन विद्या संस्थानों में सीटें बढ़ाने की ऐसी बातें कर रही है मानो हमारे संस्थान पूरी तरह से अच्छे और भरे हुए चल रहे हैं। चीन तो माओ के युग से बहुत आगे बढ़ गया है और उसने र्इंट दर र्इंट देश का पुनर्निर्माण किया है, लेकिन भारत में केवल जहरीली नारेबाजी यथार्थ पर हावी दिखती है।

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