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हिन्दू समाज की एकजुटता के प्रखर साधकस्वामी सत्यानन्द सरस्वती का अवसानश्रीरामदास आश्रम, चेंगोट्टूकोणम (तिरुअनन्तपुरम) के पीठाधिपति एवं विश्व हिन्दू परिषद द्वारा गठित मार्गदर्शक मंडल के सदस्य स्वामी सत्यानन्द सरस्वती का गत 24 नवम्बर को अवसान हो गया। स्वामी जी पिछले कुछ समय से बीमार थे।हिन्दू एक्य वेदी (केरल) के अध्यक्ष के रूप में स्वामी जी अपने प्रखर भाषणों और संगठन कौशल के कारण जाने जाते थे। 1970 के बाद राज्य के विभिन्न हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को आपस में जोड़े रखने में स्वामी जी की विशेष भूमिका रही थी। वे पुण्यभूमि दैनिक के संस्थापक सम्पादक भी थे। आयुर्वेद और सिद्ध योग में निष्णात स्वामी जी ने कुछ वर्ष पूर्व “हर्बल कोला” नामक एक स्वास्थ्यवर्धक पेय तैयार किया था जो देखते ही देखते बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने देश के अन्य भागों तथा विदेशों में भी श्री रामदास आश्रम की इकाइयां आरंभ की थीं और यंग मैन्स हिन्दू एशोसिएशन तथा मैथिली महिलामण्डलम् की स्थापना की थी। राज्य की राजधानी में प्रतिवर्ष लगने वाले राम नवमी मेले की शुरुआत भी उन्होंने ही की थी।25 सितम्बर, 1933 को तिरुअनन्तपुरम के अण्डूरकोणम गांव में स्वामी जी का जन्म हुआ था। पूर्वाश्रम में शेखरन पिल्लै नाम से प्रसिद्ध स्वामी जी माधवविलसम हाई स्कूल में अध्यापक थे। 1965 में रामदास आश्रम से जुड़ने के बाद उनकी ख्याति बढ़ती गई और वे अपनी भाषणशैली के कारण विख्यात हुए।स्वामी जी के निधन पर रा.स्व.संघ केरल ने शोक संदेश जारी कर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए। संघ ने स्वामी जी को राज्य में हिन्दुत्वनिष्ठ आन्दोलन से जुड़ी एक विभूति की संज्ञा दी। प्रान्त कार्यवाह ए.आर. मोहनन ने कहा कि स्वामी जी का अवसान केरल में हिन्दू पुनर्जागरण के लिए एक आघात जैसा है। विश्व हिन्दू परिषद के राज्य संगठन मंत्री श्री राजशेखरन ने अपने शोक संदेश में स्वामी जी को निष्काम कर्मयोगी की संज्ञा दी। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री ओ. राजगोपाल ने स्वामी जी के निधन पर गहन दुख प्रकट करते हुए कहा कि वे ऐसे साहसी “आचार्य” थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू एक्य के लिए समर्पित किया था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष श्री कृष्णदास, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं श्री मुकुंदन और श्री पद्मनाभन ने भी स्वामी सत्यानन्द के अवसान पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।केरल के हिन्दू समाज के हित के लिए सदा तत्पर रहने वाले स्वामी सत्यानन्द “नीलक्कल” प्रकरण को सुलझाने में सबसे आगे थे। उस वक्त एक संदिग्ध ईसाई गुट ने शबरीमला तीर्थ के निकट पवित्रता भंग करने के उद्देश्य से नीलक्कल नामक स्थान पर सीमेंट का एक सलीब लगा दिया था। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के साथ मिलकर स्वामी जी ने उसके विरुद्ध संघर्ष किया और हिन्दुओं के पक्ष में वह आन्दोलन सफल हुआ। अयोध्या प्रकरण में भी स्वामी जी की विशेष भूमिका रही। उन्होंने हिन्दुओं में स्वाभिमान का भाव जगाया था और हिन्दू समाज को कम्युनिस्टों, मजहबी कट्टरवादियों और सेकुलर गुटों के प्रहारों के प्रति सजग रहने का आह्वान किया था। स्वामी जी का अवसान हिन्दू समाज के लिए वास्तव में एक खालीपन पैदा कर गया है।ऐसी विशिष्ट विभूति के अवसान पर भी केरल की सेकुलर सरकार और माक्र्सवादी प्रभुत्व वाले मीडिया ने अपना हिन्दुत्व विरोधी रवैया दर्शाते हुए स्वामी जी की मृत्यु के समाचार को पूरी तरह अनदेखा किया। वाममोर्चे अथवा सरकार की ओर से एक भी नेता ने स्वामी जी की मृत्यु पर श्रद्धांजलि अर्पित नहीं की। ईसाई और मुस्लिम मजहबी नेताओं के “दर्शनों” के लिए घंटों उनके दरवाजे पर खड़े रहने वाले माकपाई नेताओं में से एक भी दिवंगत संत के अन्तिम दर्शन करने नहीं पहुंचा। हालांकि मीडिया के एक वर्ग ने स्वामी जी के अवसान की घोषणा तो की परन्तु उनके योगदान का कोई उल्लेख तक नहीं किया। यह वही मीडिया है जो किसी पादरी अथवा मौलवी के निधन पर उनकी “खूबियों” का बखान करते नहीं थकता और उनके अंतिम संस्कार के सीधे प्रसारण के तमाम प्रबन्ध में जुट जाता है। केरल के हिन्दू समाज में यह दूषित मानसिकता गहरे समा चुकी है। हिन्दू विरोधी और राष्ट्र विरोधी ताकतों के शिकंजे में जकड़े इस केरल राज्य में स्वामी जी एक प्रखर हिन्दू संत के रूप में पहचाने जाते थे। प्रदीप कुमार16
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