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वामपंथ ने किया अनर्थ-ठाकुर राम सिंहसंरक्षक, अ.भा. इतिहास संकलन योजनाशासन देशी हो या विदेशी, वह अपने स्वार्थ के अनुसार इतिहास को दिशा देता है। 15अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश हिन्दुस्थान विभाजित होकर स्वतंत्र हुआ। सत्ता परिवर्तन देश की मूल विचारधारा हिन्दुत्व के अनुसार नहीं था। राजसत्ता अंग्रेजों द्वारा स्थापित, पालित और पोषित कांग्रेस के हाथ आई और जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। वे विचारों की दृष्टि से माक्र्सवादी थे। उन्होंने हिन्दुस्थान को समाजवादी अवधारणा के अनुसार कल्याणकारी राज्य घोषित किया। साम्यवादी अवधारणा के अनुसार नई शिक्षा नीति की योजना पंडित नेहरू के मार्गदर्शन में बनी। इसके लिए दो संस्थाओं का निर्माण किया गया- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय।राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् का दायित्व था देश के शिक्षा विभाग की पाठ्यपुस्तकों का लेखन व प्रकाशन। इस कार्य के लिए इसमें साम्यवादी दृष्टिकोण के विद्वानों और इतिहासकारों को नियुक्त किया गया। इतिहास और अन्य पाठ्यपुस्तकों के लेखनार्थ एन.सी.ई.आर.टी. ने एक परिपत्र निकाला। “गाइड लाइन फार राइटिंग टेक्स्ट् बुक्स”-, इनमें पाठ्यपुस्तकों के लेखन के मार्गदर्शक सिद्धांत बताए गए जो पूरी तरह इतिहास को भ्रान्त करने वाले थे।लेखन के मार्गदर्शक बिन्दु:(1) इस देश की संस्कृति मिश्रित है। इस सिद्धान्त के अनुसार इतिहास और अन्य शैक्षिक पुस्तकों का लेखन होना चाहिए।(2) शिवाजी का अधिक गुणगान नहीं होना चाहिए।(3) औरंगजेब को अत्याचारी के नाते नहीं दर्शाना चाहिए, अपितु उसने हिन्दुओं के लिए मन्दिर बनाकर दिए, इसे सिद्ध करना चाहिए।इसी प्रकार के अन्य सेकुलर बिन्दु परिपत्र में थे। इन बिन्दुओं के प्रकाश में पाठ्यपुस्तकों का लेखन व प्रकाशन शुरु हुआ। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए देश के सभी विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थाओं में साम्यवादी और धर्मनिरपेक्षतावादी इतिहासकार और अन्य विद्वानों की नियुक्तियां की गयीं।जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयइस विश्वविद्यालय की स्थापना इस नई शिक्षा नीति को कार्यान्वित करने के लिए मार्गदर्शक विश्वविद्यालय के रूप में की गई थी। इसके सभी विभागों में उपरोक्त दृष्टिकोण के प्राध्यापक नियुक्त किए गए। इण्डियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च और शिक्षा की शोध संस्थाओं में भी साम्यवादी इतिहासकारों की संख्या में अनपेक्षित वृद्धि हो गई। इस साम्यवाद पर आधारित “धर्मनिरपेक्षतावादी” नई शिक्षा नीति की योजना में यह भी प्रस्ताव था कि सैन्य अधिकारियों का प्रशिक्षण भी देहरादून की बजाए जे.एन.यू. में होना चाहिए ताकि सेना को भी “धर्मनिरपेक्ष” बनाया जा सके।कांग्रेस को अंग्रेजों द्वारा राजसत्ता के साथ उनके द्वारा किया गया भारत के इतिहास का विकृतिकरण भी विरासत में मिला। कांग्रेस सरकार का दायित्व था कि इस विकृतिकरण को दूर कर भारत के इतिहास का राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पुनर्लेखन करती, परन्तु यह तो उसने किया नहीं, उलटे अंग्रेजों द्वारा किए गए विकृतिकरण को मान्यता दे दी गयी। इस कारण इतिहास का जो विकृतिकरण अंग्रेजी राज्य में हुआ था इससे भी कई गुना स्वतंत्र भारत में हुआ और हो रहा है।एन.सी.ई.आर.टी. के मार्गदर्शन में नई शिक्षा नीति की इतिहास की पुस्तकों में विकृतिकरण के मुख्य उदाहरण इस प्रकार हैं:-1. राणाप्रताप, गुरुगगोविन्द सिंह और शिवाजी रास्ता भूले देशभक्त थे।2. अकबर देश को एकताबद्ध कर रहा था, परन्तु राणाप्रताप ने उसे सहयोग नहीं दिया।3. सिखों के गुरु, जिन्होंने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपना शीश दिया, डाकू और लुटेरे थे।4. वैदिक आर्य गाय का मांस खाते थे।5. आर्य लोग विदेशी थे। वे आक्रामक के नाते भारत में आए। यह उनका देश नहीं है।6. भारत एक उपमहाद्वीप है। इसमें कई संस्कृतियां और अनेक राष्ट्र हैं।इस नई शिक्षा नीति के अनुसार अपने देश के इतिहास, साहित्य और महापुरुषों को धर्मनिरपेक्षता के सांचे में ढालने के प्रयत्न समाजवादी नेता जवाहरलाल नेहरू के मार्गदर्शन में शुरु हुए। यह अभियान गतिशील हो रहा था, परन्तु इसके जनक और प्रेरणास्रोत श्री जवाहरलाल नेहरू जी का सन् 1965 में देहावसान हो गया। उनके बाद कांग्रेस धीरे-धीरे विघटित होने लगी और उसके हाथ से सत्ता निकल जाने के कारण इस अभियान की गति में अवरोध उत्पन्न हो गया, परन्तु आगे भी विकृतिकरण किसी न किसी रूप में चलता ही रहा।20
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