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सम्पादकीय

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Oct 12, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 12 Oct 2006 00:00:00

मां हमें विदा दो, जाते हैं हमतेरी बलिवेदी पर चढ़करविजय-केतु फहराने आज(वचनेश त्रिपाठी की पुस्तक “जरा याद करो कुर्बानी” से)यह दर्द हम सबका सांझा हैकानपुर में बाबा साहब अम्बेडकर की मूर्ति का अपमान किए जाने से हिन्दू समाज के मात्र एक वर्ग को ही दर्द हो और बाकी को नहीं हो, यह न उचित है, न संभव। बाबा साहब सामाजिक समरसता के अग्रदूत थे। उन्होंने समाज के वंचित (दलित) वर्ग को नई चेतना और राष्ट्रीयता के भाव से परिपूर्ण कर आगे बढ़ाया। दु:ख इस बात का है कि उत्तर प्रदेश में, जहां जातिवादी राजनीति का जहर वोट बैंक राजनीति के कारण तीव्रता से फैलाया गया है, वहां बाबा साहब की मूर्ति का अपमान किया जाता है (और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अपराधियों के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्यवाही का समाचार नहीं मिला है)। लेकिन इसकी प्रतिक्रिया महाराष्ट्र में होती है। उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और मायावती की जातिवादी राजनीति ने समाज जीवन में जो जहर घोला है उसका विषफल महाराष्ट्र में कांग्रेसनीत गठबंधन सरकार के अंतर्गत कानून-व्यवस्था के ध्वस्त होने के रूप में मिला और हमारे समाज के वंचित बंधुओं के दु:ख को व्यक्त करने के लिए जो प्रदर्शन हुए उसके दमन में 4 लोगों की जान चली गई। वास्तव में यह समय था जब देश के सभी जागरुक नेता उठ खड़े होते, बाबा साहब की मूर्ति के अपमान का विरोध करते, साथ ही वंचित वर्ग को भी ऐसी स्थिति में उग्रता की ओर बढ़ने से रोकते।महाराष्ट्र में गृह विभाग उप मुख्यमंत्री आर.आर. पाटिल के अधीन है। पाटिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता हैं। कहने को प्रदेश में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की गठबंधन सरकार है पर अनेक अवसरों पर यह साफ जाहिर हुआ है कि दोनों पार्टियां एक-दूसरे की कमियां उघाड़ने और गाहे-बगाहे आरोप मढ़ते रहने में जुटी रही हैं। कांग्रेसियों ने खैरलांजी घटना के समय पाटिल पर पुलिस निष्क्रियता का आरोप मढ़ा था। इसी बीच महाराष्ट्र में स्थानीय चुनाव हुए जिनमें पाटिल ने कांग्रेस पर निशाना साधा। अब कानपुर की घटना हुई तो, कहते हैं, कांग्रेस के हाथ फिर एक मौका आ गया और पूरे महाराष्ट्र में दंगाइयों को भड़काने का काम उसने किया। जिस तरह की घटनाएं पिछले दिनों कानपुर की प्रतिक्रिया स्वरूप घटी हैं उनको निकट से देखें तो साफ पता लगेगा कि उपद्रव गुस्साई आम जनता की भीड़ से अधिक कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा क्रियान्वित किए गए थे। जिस तरह योजनाबद्ध रूप से पुणे से मुम्बई आ रही डेक्कन क्वीन रेलगाड़ी को उल्हासनगर में रोककर जलाया गया वह संदिग्ध लक्ष्यों की ओर संकेत करता है। रेलगाड़ी को रोकने के बाद सभी यात्रियों को नीचे उतारा गया और फिर दंगाइयों ने डिब्बों में तोड़ फोड़ करके संभवत: पहले से जुटाए पेट्रोल को छिड़ककर एक दो नहीं, सात डिब्बों को जला दिया। यह आक्रोश नहीं था। रेलगाड़ी ही क्यों, प्रदेश में जहां-जहां भी हिंसक वारदातें हुईं वहां आक्रोश कम, सुनियोजित हमले जैसी स्थिति अधिक दिखाई दी। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में मौजूद जिहादी तत्वों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर उपद्रव को और भड़काया हो, क्योंकि देश में जहां-जहां और जब-जब अस्थिरता फैलाने का मौका मिलता है उसे ये जिहादी हवा देने से बाज नहीं आते।परन्तु यह दर्द हम सबका सांझा है। इस दर्द पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए और यह हमारे राष्ट्रीय हिन्दू समाज द्वारा महसूस किए जाने वाले दर्द के रूप में ही अभिव्यक्त होना चाहिए। जातिवादी राजनीति के विषफल के विरुद्ध हम केवल सामाजिक समरसता के माध्यम से ही लड़ सकते हैं और समाज को विखंडित होने से रोक सकते हैं। राजनीति जाति का सहारा लेकर समाज को तोड़ती है। ऐसी परिस्थिति में प.पू. श्री गुरुजी के जन्मशताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में पूरे देश में समरसता की जो भाव-गंगा बहाने का प्रयास किया जा रहा है, भारत की सामाजिक एकता के लिए वही उचित और करणीय है।9

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