|
सुन्दर, सजिल्द और अच्छे मोटे कागज पर मुद्रित, 259 पृष्ठीय “समरसता के सूत्र” पुस्तक अन्तर्मन को केवल गहरे तक जाकर छूती ही नहीं है वरन् कुछ रचनात्मक कर गुजरने के लिए प्रेरित भी करती है। श्री गुरुजी जन्म शताब्दी वर्ष “समरसता वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है, उसी के उपलक्ष्य में प्रकाशित इस ग्रन्थ में परम पूज्य श्री गुरुजी, स्व. दत्तोपंत ठेंगड़ी, स्व. हो.वे. शेषाद्रि, स्व. गिरिलाल जैन के समाज प्रबोधक लेख तो हैं ही, श्री रमेश पतंगे, श्री गिरीश प्रभुणे, भीकू इदाते, श्री किशोर मकवाणा, श्री राजा जाधव, श्री तरुण विजय सहित अनेक लेखकों के सामाजिक परिवर्तन से जुड़े मर्मस्पर्शी लेख एवं समाज परिवर्तन की अनेक घटनाओं का वर्णन भी संकलित है। पारधी समाज में स्वयंसेवकों द्वारा किए गए परिवर्तन की कथा हर किसी को झकझोरने में समर्थ है तो “कल थे अछूत-आज बने पण्डित” नामक श्री जितेन्द्र तिवारी का विवरण यह सुखद अहसास कराता है कि हिन्दू समाज अपनी हर समस्या के समाधान का रास्ता आखिर खोज ही लेता है। सामाजिक परिवर्तन चाहने वाले प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता, विचारक के लिए सचमुच यह पुस्तक संग्रहणीय है। यद्यपि इस पुस्तक का बाजार मूल्य 350/- है किन्तु विचारों के व्यापक प्रचार हेतु यह मात्र 50/-रुपए में उपलब्ध है। इसे प्राप्त करने के लिए सम्पादक, पाञ्चजन्य से सम्पर्क किया जा सकता है। डाक व्यय अलग देय होगा।22
टिप्पणियाँ