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संस्कृति-सत्य

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Oct 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Oct 2006 00:00:00

पं. नेहरू ने कहा- यही है जनतंत्र

वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”

विभाजन की भीषण विभीषिका सहकर भारत अभी स्वतंत्र हुआ था। पंजाब-सिंध और बंगाल रक्त रंजित थे। चारों ओर लाशें ही लाशें दिखाई दे रही थीं। उसी बीच, संभवत: 1948 के प्रारम्भ में, तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. नेहरु पंजाब प्रवास पर गए। वहां शेखूपुरा में हिन्दुओं की लाशें देखकर वे रो पड़े। फिर जब वे एक अन्य स्थान पर भीड़ में खड़े स्वंतत्रता पर वक्तव्य दे रहे थे, तब एक व्यक्ति पत्रकारों की भीड़ में से निकलकर आया और नेहरू जी का गरेबान खींचकर कहने लगा-

“आजादी! आजादी! आप आजादी पर लेक्चर दिए जा रहे हैं, आजादी ने आपको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया पर हमें क्या दिया? हमारे परिवारजन, कत्ल कर दिए गए, घर-बार, खेत-सब आजादी की भेंट चढ़ गए। सब कुछ खोकर भी आज हम शरणार्थी कहे जा रहे हैं, फिर भी आप आजादी की रट लगाते नहीं थकते? हूं….”

अभी गुस्से में वह कुछ और भी कहता कि पं. नेहरू ने शान्त भाव से समझाते हुए कहा-“अरे भाई! तुम ठीक कहते हो। तुम सबने बहुत कुछ खोया है, झेला है। मैं तुम्हारा दर्द समझता हूं लेकिन इस आजादी ने ही तुम्हें एक चीज दी है जिसका नाम है “जनतंत्र”। इसी जनतंत्र के कारण तुम प्रधानमंत्री का गला पकड़कर पूछ सकते हो कि आजादी ने तुम्हें क्या दिया?”

तब वह व्यक्ति शान्त हुआ। किन्तु आज भारत की वह स्थिति नहीं है। अब तो विधायक और सांसद भी अपने दल के मंत्री या मुख्यमंत्री से नहीं मिल पाते। इससे स्पष्ट है कि आज जनतंत्र की ही दहलीज पर समाज विक्षुब्ध होकर दुखी हो रहा है। स्थिति यह है कि इस गणतंत्र में कोई षड्यंत्र है तभी तो “संत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र।”

जगद् गुरु शंकराचार्य पद-प्रतिष्ठा की गरिमा-महिमा से मंडित धर्म गुरु जयेन्द्र सरस्वती महीनों जेल में बंद रहे। कांची की निचली अदालत ने उनकी न्यायिक हिरासत 19 जनवरी तक बढ़ा दी थी जबकि 7 जनवरी, 2005 को कांची कामकोटि पीठ में परम्परानुसार विशेष वार्षिक आराधना में शंकराचार्य को सम्मिलित होना था। विवशत: कनिष्ठ विजयेन्द्र सरस्वती ने आराधना पूर्ण की। यह हिन्दू समाज देश, हिन्दुत्व और धर्म के अपमान का ज्वलंत प्रमाण है। किसी अन्य देश में यदि ऐसा होता तो समाज बिल्कुल सहन न करता।

कारण शंकराचार्य को सत्ता राजनीतिक विद्वेष का शिकार स्वयं तमिलनाडु सरकार की मुख्यमंत्री जयललिता ने बनाया था। इस अनाचार, अन्याय और तानाशाही के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का वरदहस्त प्राप्त था। श्रीमती सोनिया गांधी शंकराचार्य को भारत में ईसाइयत के प्रचार-प्रसार अभियान में बाधक मानती हों तो आश्चर्य नहीं, क्योंकि इन्हीं शंकराचार्य ने तमिलनाडु में गरीब जनता के लिए शिक्षा संस्थान और हरिजनों के इलाज की सुविधा प्रदान करने वाले चिकित्सालय चला रखे हैं। ऐसी स्थिति में पोपपंथी पादरियों को मतान्तरण के अवसर कैसे मिल सकते हैं? तमिलनाडु की यह स्थिति और वहां के धर्म गुरु जयेन्द्र सरस्वती की मान-मर्यादा श्रीमती सोनिया गांधी भी कैसे सहनकर सकती थीं। अत: जयललिता को शंकराचार्य से अपनी पुरानी अदावत चुकाने का मौका मिल गया। अदावत इसलिए कि जो चिकित्सालय और मेडिकल कालेज जयललिता की सहेली शशिकला क्रय करना चाहती थीं वे शंकराचार्य ने खरीद लिए। यह बात जयललिता को अच्छी नहीं लगी। दूसरी बात यह कि चुनाव में वे शंकराचार्य के विरुद्ध जनसमर्थन न जुटा सकीं और पराजित हुईं।

आज जब वे सत्ता में हैं तो शंकराचार्य को कैसे आराम से रहने देतीं। ये बातें ही शंकराचार्य को जेल तक पहुंचाने में सहायक बनीं। जयललिता ने आध्र में ही शंकराचार्य को क्यों गिरफ्तार कराया? इसका कारण है कि वहां महबूब नगर के जिलाधिकारी और पुलिस अधिकारी दोनों ही ईसाई हैं। फलत: श्रीमती सोनिया गांधी व जयललिता धर्मगुरु के अपमान से संतुष्ट हैं।

कुछ समय पूर्व इमाम बुखारी ने छाती टोंककर कहा था, “मैं सी.आई.ए.का एजेंट हूं। हिम्मत है तो सरकार मुझे गिरफ्तार करे।” परन्तु सरकार चुप रही। अत: हिन्दू समाज में जागरण की आवश्यकता है। हिन्दू समाज यह न भूले कि जॉन पोप-द्वितीय ने भारत यात्रा के समय राहुल और प्रियंका गांधी को ईसाइयत में प्रवेश दिलाया और उन्हें ईसाई मतानुसार बपतिस्मा की बूटी पिलायी। यदि यह बात गलत है तो सोनिया जी खण्डन करें। 27 सितम्बर, 1194 को आर्य समाज के मनीषी संन्यासी विद्यानंद सरस्वती ने ईसाइयत के सम्बंध में सोनिया जी को एक रजिस्टर्ड पत्र भेजा था। उत्तर न मिलने पर 30 अक्तूबर को दूसरा तथा 6 नवम्बर को तीसरा पत्र भेजा, परन्तु सोनिया जी ने एक का भी उत्तर नहीं दिया। इससे यह सिद्ध होता है कि यहां, सोनिया जी के बारे में बताई गई सभी बातें सत्य हैं।

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