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सम्पादकीय

by
Sep 7, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Sep 2006 00:00:00

स्वाभिमानी मनुष्य मर मिटता है, पर किसी के सामने दीन नहीं बनता। आग बुझ भले ही जाये, पर जीवित रहते वह ठण्डी नहीं होती।-नारायण पंडित (हितोपदेश, 1/131)भारत की सरकार से ही भारत की सुरक्षा को खतरा?अमरीकी सीनेट की अंतरराष्ट्रीय संबंध समिति की ओर से भारत-अमरीका परमाणु संधि को हरी झंडी मिल जाने से भले ही सत्ता प्रतिष्ठान का एक अमरीका परस्त वर्ग संतुष्ट हुआ हो, मगर भारत की सुरक्षा चिंताओं की बारीकी समझने वाला हर व्यक्ति स्तब्ध है। क्योंकि उसे उम्मीद थी कि मनोनीत प्रधानमंत्री द्वारा एक महाशक्ति के साथ परमाणु संधि के जरिए मान ली गईं उन खतरनाक शर्तों का शायद पालन होने से रुक जाएगा, शायद अमरीकी कांग्रेस इसे पारित न होने दे। परन्तु सीनेट की समिति ने इसे एक कदम आगे बढ़ा दिया।भारत के परमाणु रिएक्टरों को सैन्य और नागरिक वर्ग में बांटने, परमाणु संयंत्रों के ईंधन के लिए अमरीका पर ही आश्रित हो जाने, नए महंगे रिएक्टर आयात करने, भविष्य में परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने (भले ही वे भारत की न्यूनतम निरोधक क्षमता के लिए हों), भारत को परमाणु अप्रसार संधि की परिधि में न चाहते हुए भी ला खड़ा करने और परमाणु कार्यक्रमों पर अमरीकी थानेदारी और निगरानी कबूलने जैसी शर्तों में बंधी इस संधि की समझदार विश्लेषकों ने कभी तारीफ नहीं की है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने संसद में बयान दिया था कि संधि भारत की संप्रभुता की कीमत पर नहीं की गई है और कि इससे भारत के सामरिक हितों को नुकसान नहीं पहुंचेगा। मगर संधि की एकपक्षीय शर्तें और उससे बढ़कर अमरीकी प्रशासन की भारत को इसमें बांध लेने की उतावली मनमोहन सिंह को भले ही न दिखती हो, पर भारत के रक्षा और परमाणु विशेषज्ञों की आंखों से वह छिपी नहीं रही है।प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा था कि यह संधि भेदभाव रहित और बराबरी के लेन-देन पर आधारित है। लेकिन उनके इस दावे को गलत करार देते हुए वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि अमरीकी कांग्रेस के सामने अमरीकी अधिकारियों के बयानों से साफ जाहिर होता है कि भारत को यह दर्जा नहीं दिया जाएगा। न ही संधि भारत को एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र स्वीकार करती है। डा. जोशी ने कहा है कि सैन्य व नागरिक परमाणु कार्यक्रमों को अलग करना मुश्किल, महंगा और भारत के सामरिक हितों के विपरीत है। 20 जून, 2006 को राजग की ओर से इन्हीं सब चिंताओं को सामने रखते हुए राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम को एक ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में कहा गया कि जहां एक ओर भारत के परमाणु कार्यक्रमों के भविष्य को लेकर अमरीकी कांग्रेस में चर्चा चल रही है, वहीं दूसरी ओर भारतीय संसद को अंधेरे में रखा गया है। परमाणु संधि पर कोई आम सहमति नहीं बनाई गई है। अधिकांश सांसद इस संधि के खिलाफ हैं। राष्ट्रपति से मांग की गई है कि वर्तमान सरकार को पिछले 60 साल के कठोर प्रयासों को निष्फल करने, हमारे सामरिक परमाणु कार्यक्रमों को सीमित करने और परमाणु वैज्ञानिकों के काम में बाहरी सूत्रों को बेवजह दखल की छूट देने से रोका जाना चाहिए। अगर संधि को अमरीकी कांग्रेस पारित करती है तो भारत के परमाणु कार्यक्रमों को अमरीकी थानेदारी और तीखी नजरों से गुजर कर जाना होगा। हम अपने न्यूनतम रक्षा हितों के लिए किस रिएक्टर में क्या कार्यक्रम करेंगे, उसकी मंजूरी भी तब अमरीका से ही लेनी होगी। अंकल सैम को सलाम ठोंकने वाली इस सरकार ने भारत की सुरक्षा के साथ जिस तरह का खिलवाड़ किया है, वह किसी राष्ट्रभक्त को स्वीकार नहीं हो सकता। 10 जनपथ को हो तो हो।एक भारतीय का फौलादी सिक्काआखिर लक्ष्मी निवास मित्तल ने विश्व जगत पर भारतीय प्रतिभा का सिक्का जमा ही दिया, वह भी इस्पात का। “स्टील किंग” के नाम से विख्यात “लक्ष्मी” का “निवास” अब विश्व में इस्पात उत्पादन की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी “आर्सेलर” में होगा। इसी वर्ष जनवरी में जब लक्ष्मी निवास मित्तल ने आर्सेलर के अधिग्रहण के लिए पहली बार पेशकश की तो पूरा यूरोप हतप्रभ रह गया। आर्सेलर ने तो यह कहते हुए प्रस्ताव को ठुकरा दिया था कि मित्तल स्टील और आर्सेलर के नीतिगत विचार अलग-अलग हैं। एक बार लगा कि लक्ष्मी निवास मित्तल रंगभेद का शिकार हो रहे हैं क्योंकि वे भारतीय हैं। उनके प्रस्ताव पर यूरोप में जैसी प्रतिक्रिया हुई उससे भारतीय जनमानस चिंतित हो उठा। पर लक्ष्मी निवास मित्तल ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और आखिरकार 25 जून को विश्व की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी का अधिग्रहण कर भारतीय प्रतिभा का लोहा मनवा ही दिया। इस बीच आर्सेलर ने अनेक चालें चलीं। मित्तल की पेशकश को दबाने के लिए अपने अंशधारकों को 6 अरब डॉलर के भुगतान की घोषणा की, अंशों में 85 प्रतिशत की बढोत्तरी की, फिर रूसी कंपनी सेवरस्ताल से समझौता कर रोडे अटकाए, पर मित्तल ने हार नहीं मानी। अब लक्ष्मी निवास मित्तल विश्व के सबसे प्रमुख स्टील उत्पादक बन गए हैं। आर्सेलर के अधिग्रहण के बाद एक नई कंपनी बनी है जिसे मित्तल-आर्सेलर के नाम से जाना जाएगा। इसमें लक्ष्मी स्टील कंपनी की 45 प्रतिशत भागीदारी होगी और लक्ष्मी निवास इसके अध्यक्ष होंगे। उनका इरादा अब चीन की दीवार लांघने का है और अपने देश भारत के लिए उनके मन में बड़ी योजनाएं हैं। एक भारतीय की इस ऊंची उड़ान को देख किसे गर्व नहीं होगा।6

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