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भारतीय अस्मिता से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं
शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति पूरे देश में पिछले डेढ़ वर्ष से भारतीय शिक्षा प्रणाली में मूल्यों की स्थापना तथा भारतीय इतिहास को विकृत करने के संप्रग सरकार के प्रयासों के विरुद्ध जनान्दोलन चला रही है। अनेक मोर्चों पर आन्दोलन को सफलताएं भी मिली हैं तो कई मुद्दों पर संघर्ष जारी है। इस पूरे आन्दोलन के पीछे समिति के संयोजक श्री दीनानाथ बत्रा का अथक परिश्रम नि:सन्देह अब रंग ला रहा है। जीवन के 7 दशक पूर्ण कर चुके श्री बत्रा आज भी आंदोलन में युवकों सी स्फूर्ति लेकर डटे हुए हैं। पाञ्चजन्य प्रतिनिधि ने उनसे आंदोलन के संदर्भ में विस्तारपूर्वक बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं, उसी बातचीत के मुख्य अंश-
शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के गठन की जरूरत क्यों पड़ी?
शिक्षा क्षेत्र आज संक्रमण काल से गुजर रहा है। शिक्षा में निजीकरण, व्यापारीकरण, सरकारीकरण, शिक्षा में गुणवत्ता का क्षरण हमारी चिंता के मुद्दे हैं। शिक्षा क्षेत्र में सरकार की मनमानी, बढ़ता सरकारी हस्तक्षेप विशेषकर केन्द्र व राज्य सरकारों की शिक्षा नीति हमारे लिए चिंता का विषय है। समग्र रूप से शिक्षा का चिंतन करना, इसके समक्ष खड़ा चुनौतियों का निपटारा करना, यही समिति के गठन का प्राथमिक उद्देश्य है। संयोगवश हमें अपनी स्थापना के तुरंत बाद संप्रग सरकार द्वारा एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों में निर्विषीकरण के नाम पर छेड़-छाड़ का मुद्दा मिला और हम इस मुद्दे पर पिछले डेढ़ वर्ष से लगातार समूचे देश में जनजागरण कर रहे हैं।
क्या परिणाम अब तक आ पाए हैं?
हमने एन.सी.आर.टी. की पुस्तकों में देश के विभिन्न महापुरुषों, विभिन्न सम्प्रदायों के प्रति की गई अभद्र, अश्लीन टिप्पणियों, और गलत उद्धरणों के प्रति साधारण समाज का ध्यान आकृष्ट किया है। विभिन्न तरीकों से सरकार पर जन-दबाव बनाने की कोशिश की। शिक्षा में जो मूल्य-विहीनता है, उसके प्रति हमने न केवल सरकार को चेताया वरन् देश की जो मूल्यपरक शिक्षा नीति रही है, सन् 2000 की पाठ्यचर्या, सर्वोच्च-न्यायालय के निर्णय, स्व. राजीव गांधी के समय की शिक्षा नीति, चव्हाण कमेटी की रपट आदि के बारे में लोगों को जानकारी दी। करीब 30 पुस्तकों का प्रकाशन किया है। देश के विभिन्न प्रांतों में 26 सांगठनिक ईकाइयों की स्थापना कर देशभर के राष्ट्रभक्त विद्वज्जनों, बुद्धिजीवियों को हमने इस मुद्दे पर मुखर किया। इस प्रकार के प्रयासों के परिणाम भी निकले है। पिछले वर्ष जब विज्ञानभवन में केब की बैठक थी, हमने विज्ञान भवन का ऐतिहासिक घेराव किया, 70 लोग गिरफ्तार हुए। जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन किया, राष्ट्रपति जी को हमने पूरे देश से ज्ञापन सौंपे। सभी स्थानों पर हमारी मांग यही है कि पाठ्यपुस्तकों विशेषकर इतिहास के नाम पर बच्चों को जो कुछ भी पढ़ाया जा रहा है, वह उचित नहीं है। हमें अपनी लड़ाई देश के कई न्यायालयों में भी ले गए हैं।
किन-किन न्यायालयों में वाद दाखिल किए गए हैं और आपने इनमें क्या मांग की है, वाद के मुद्दे क्या-क्या हैं?
जैन समाज की ओर से राजस्थान में अलवर जिला न्यायालय में वाद दाखिल किया गया है। इसमें इतिहास की पाठ्पुस्तकों (कक्षा 11-प्राचीन भारत, रामशरण शर्मा) में भगवान महावीर और जैन पंथ के प्रति उल्लिखित वर्णनों पर आपत्ति दर्ज कराई गई। न्यायालय ने इस पर निर्णय भी दिया है और एन.सी.ई.आर.टी. ने आपत्तिजनक उद्धरणों सहित समूची पुस्तक को ही वापस कर लिया है। पूरे आन्दोलन के लिए न्यायालय का यह निर्णय अत्यंत सुखद संकेत है। इसके अतिरिक्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय, पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय तथा दिल्ली उच्च न्यायालय में भी वाद दाखिल किए गए हैं। सभी स्थानों पर सुनवाई चल रही है। चण्डीगढ़ उच्च न्यायालय में आर्य समाज के प्रतिनिधियों ने स्वामी दयानन्द के बारे में अभद्र टिप्पणियों, क्रांतिकारियों को आतंकवादी बताने, जाटों को लुटेरा लिखने पर आपत्ति दर्ज की है। दिल्ली उच्च न्यायालय में हमने विपिन चन्द्र की इतिहास की पूरी पुस्तक को ही चुनौती दी है।
इस पर पुस्तकों के लेखकों और एन.सी.ई.आर.टी. की ओर से क्या जवाब दिया गया?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने हमारी याचिका पर प्रतिवादियों को नोटिस भेजीं, जिसका समय पर जवाब नहीं मिलने पर विद्वान न्यायाधीशों ने एन.सी.ई.आर.टी. के निदेशक श्री के.के. शर्मा, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष श्री अशोक गांगुली एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव श्री बनर्जी को नोटिस जारी कर उनसे पूछा कि आपके विरुद्ध मानहानि का मुकदमा क्यों न चलाया जाए? गत 30 मई को न्यायालय में बहस हुई थी। बहस में एन.सी.ई.आर.टी. के वकील ने न्यायालय को बताया कि दीनानाथ बत्रा व उनके सहयोगियों ने जिन 70 अंशों पर अपनी याचिका में आपत्ति व्यक्त की है, उनमें से 37 को हम वापस ले रहे हैं, 4 पर विचार कर रहे हैं और शेष 29 को हम न्यास संगत मानते हैं और इसे हम नहीं हटाएंगे। इस पर हमारे वकील ने कहा-महोदय, ये वैदिक काल में ब्राह्मणों के गोमांस खाने के तथ्य को भी न्याय संगत मानते हैं। तो एन.सी.ई.आर.टी. के वकील ने न्यायालय में कहा कि, देखिए, ये धर्म बीच में ला रहे हैं। तब हमारे वकील ने कहा कि इसमें धर्म की बात नहीं है, आप इतिहास और धार्मिक ग्रंथों को तोड़-मरोड़ रहे हैं। आप क्रांतिकारियों को आतंकवादी लिखते हैं, इसमें क्या तर्क है? इस पर एन.सी.ई.आर.टी. के वकील ने चुप्पी साध ली। विद्वान न्यायाधीशों ने अगली सुनवाई के लिए 26 जुलाई की तारीख निर्धारित की है और एन.सी.ई.आर.टी. को आदेश दिया है कि वह उक्त तिथि पर शपथ पत्र दाखिल कर बताए कि कौन से अंश हटा दिए गए हैं और कौन से नहीं? न हटाए जाने वाले अंशों को न हटाने का तर्क भी प्रस्तुत करें।
हम वामपंथी लेखकों व एन.सी.ई.आर.टी. के विरुद्ध न्यायालयों में चल रही कार्रवाई से संतुष्ट हैं किन्तु अभी हमें बहुत आगे जाना है, अत: हम असंतुष्ट भी हैं। हमारा लक्ष्य तो यह है कि वर्तमान सरकार ही नहीं वरन् देश के इतिहास में आगे भी कोई सरकार हिन्दू और अन्य भारतीय सम्प्रदायों, महापुरुषों के बारे में अपमानजनक, बेसिरपैर की बातें लिखने व कहने की हिम्मत न कर सकें।
पाठ्यपुस्तकों के साथ यह बर्ताव क्यों हो रहा है? इसके पीछे की मानसिकता और सोच को आप किस तरह देखते हैं?
कार्ल माक्र्स और मैकाले के मानस पुत्र हैं सब विवाद की जड़। एक विचारधारा विशेष काम कर रही है जो भारत की धरती से हिन्दुत्व का पूरी तरह से सफाया करना चाहती है। कम्युनिस्ट मानसिकता माक्र्स को आदर्श मानकर चलती है जो भारत के इतिहास के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण रखता था। माक्र्स ने कहा था कि “भारत का कोई इतिहास है ही नहीं, इनका कोई भी उदाहरण गौरव करने लायक नहीं है। यदि भारत का कोई इतिहास है भी तो वह है घुटने टेकने का इतिहास।” तो जो माक्र्स ने कहा उसी का अनुसरण माक्र्सपुत्र कर रहे हैं। जिस देश के समाज ने आक्रमणों के झंझावात झेले तो उसके संघर्ष की कहीं चर्चा नहीं और जिन विदेशियों ने भारत पर हमले किए, यहां के समाज के साथ पशुवत व्यवहार किया, उसकी वंदना, उसका गुणगान कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने ही किया है। भारतीय इतिहास से भारतीय योद्धाओं के संघर्ष को या तो पूरी तरह से मिटा दिया गया है या फिर उन्हें थोड़े में ही समेट दिया गया है। क्या इससे हमारी भावी पीढ़ी भारतीय होने में कभी कोई गौरव महसूस करेगी? औरंगजंब इनके लिए जिन्दा पीर है, शिवाजी और राणा प्रताप का नाम लेना फिरका परस्ती है। इस मानसिकता को समझने की जरूरत है।
आंदोलन की आगामी रणनीति क्या होगी?
हम आगामी 9 जुलाई को दिल्ली में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन करने जा रहे हैं। इस सम्मेलन में सम्पूर्ण आंदोलन की अब तक की प्रगति और भावी कार्यक्रमों पर चर्चा करेंगे। देश के अनेक वरिष्ठ शिक्षाविद्, समाजविद्, राजनेता आंदोलन की केन्द्रीय संचालन समिति में हैं। अनेक इतिहासकार हमारे साथ जुड़े हैं। इन सबके साथ हम विचारपूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। मीडिया ने तो पहले हमारे आंदोलन को संज्ञान में नहीं लिया किन्तु अब मीडिया में भी इस तरफ रूचि बढ़ी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं, चैनल अब इस मुद्दे को गंभीरता से ले रहे हैं। हम आगामी 19 जुलाई को जंतर-मंतर पर पुन: प्रदर्शन करेंगे और सरकार से मांग करेंगे कि वह अपना हठवादी रवैया छोड़े और भारतीय भाषाओं, इतिहास व संस्कृति को विकृत करने का प्रयास बन्द करे। हमने राष्ट्रपति को इस संदर्भ में ज्ञापन देने के लिए इन्टरनेट का भी सहारा लिया है। जो लोग हमारी मांगों का समर्थन करना चाहते हैं, वे www.petitiononline.com/ncert/petition.html पर अपना अभिमत दे सकते हैं।
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