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अन्धेरे में आशा तलाशता असम
-गुवाहाटी से तरुण विजय
क्षमा कौल का उपन्यास है दर्दपुर (भारतीय ज्ञानपीठ), जिसमेंे कश्मीरी हिन्दुओं के विस्थापन का दर्द मार्मिकता से उकेरा गया है। लेकिन असम का दर्द, कश्मीर के दर्द से अधिक और गहरा होता गया और इस चुनाव में मतदाता अवसन्न और हताश है। असम साहित्य सभा के अध्यक्ष और सर्वमान्य साहित्यकार कनक सेन डेका कहते हैं, “हमें अब किसी से आशा नहीं। कांग्रेस मुस्लिम वोट के पीछे असम में बंगलादेशी नागरिकों को बसाती रही, असम की आत्मा से छल करती रही, आठ सौ असमिया युवकों ने बंगलादेशी घुसपैठ के विरुद्ध आन्दोलन में अपनी जान दे दी, असम गण परिषद ने दस साल राज किया पर घुसपैठिए बाहर नहीं निकाले, अब हम किस पर भरोसा करें? हम हताश हो चुके हैं।” बेरोजगारी, अराजकता, भ्रष्टाचार और उस पर बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठ से त्रस्त असम इन चुनावों में आशा की किरण तलाश रहा है। कुल 126 विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं। कांग्रेस, भाजपा और अगप ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को चुनाव प्रभारी बनाकर भेजा है तो चुनाव प्रचार के अन्तिम दौर में सोनिया गांधी, डा. मनमोहन सिंह ने चार-चार सभाएं की हैं। भाजपा के चुनाव प्रभारी प्रमोद महाजन हैं और श्री लालकृष्ण आडवाणी, श्री राजनाथ सिंह, श्री वैंकेया नायडू, श्रीमती सुषमा स्वराज जैसे दिग्गज नेताओं सहित फिल्मी हस्तियों- हेमा मालिनी, तुलसी स्मृति ईरानी, गजेन्द्र चौहान सहित भाजपा का पूरा शीर्ष नेतृत्व दूरदराज के चुनावी क्षेत्रों में सभाएं कर चुका है। उधर दो टुकड़ों में बंटी असम गण परिषद है। प्रफुल्ल महंत, जो बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को निकालने के लिए प्रारंभ हुए अखिल असम छात्र संगठन (आसू) की उपज हैं, अब अगप (प्रगतिशील) बनाकर मुस्लिम वोट रिझाने लगे हैं तो मूल अगप बृन्दावन गोस्वामी के नेतृत्व में भाजपा को कोसते हुए तेलुगू देशम, समाजवादी पार्टी और माकपा के साथ वाम सेकुलर क्षेत्रीय दलों का सहारा लेने पर विवश है। उधर हाल ही तक कांग्रेस का समर्थन करने वाले असम जमीयत उल उलेमा के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल ने असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (ए.यू.डी.एफ.) बनाकर कांग्रेस विरोधी मुस्लिम मोर्चा खोला है जिसके समर्थन में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम बुखारी जगह जगह भाषण दे रहे हैं। ए.यू.डी.एफ. स्वयं कितनी सीटें जीतेगी, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह देखना होगा कि वह कांग्रेस को कितनी सीटों पर नुकसान पहुंचाएगी। कांग्रेस उससे भयभीत है। उसका मुस्लिम कार्ड बदरुद्दीन अजमल ने फीका कर दिया है। इसलिए अब प्रदेश कांग्रेस नेता उसे आई.एस.आई. का समर्थन प्राप्त देश विरोधी संगठन करार दे रहे हैं। जब तक वह कांग्रेस के साथ था तो ठीक था, पर कांग्रेस विरोधी होते ही उसे दुबई और मस्कट से संदिग्ध मुस्लिम स्रोतों से पैसे लाने वाला गुट कहकर कांग्रेस फंस गयी है।
यह परिदृश्य भाजपा के लिए लाभप्रद होना चाहिए। भाजपा में इस बार असाधारण आत्मविश्वास है और वह माहौल में अपने लिए सकारात्मक रुझान देख रही है। इसीलिए उसने 126 में से 125 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं जो कि पहली बार हुआ है। 2001 के चुनावों में भाजपा ने प्रफुल्ल महंत के नेतृत्व वाली अगप से समझौता किया था और 44 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। इनमें से वह आठ सीटों पर जीती थी, लेकिन उसे कुल 44 सीटों पर 26.34 प्रतिशत मत मिले थे। जीती हुई आठ सीटों का मत प्रतिशत था कुल मतों का 9.3 प्रतिशत। स्थानीय विश्लेषकों का कहना है कि यदि भाजपा का अगप से समझौता नहीं हुआ होता तो वह और भी बेहतर स्थिति में होती। 1999 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने कुल 14 में से 12 स्थानों पर चुनाव लड़ा था और कुल मतों का 29.84 प्रतिशत हिस्सा पाकर सबको अचंभित कर दिया था। भाजपा ने 2 सीटें जीती थीं। (भाजपा समर्थित एक निर्दलीय सहित)। उन चुनावों में कांग्रेस को 38.42 प्रतिशत मत तथा 10 सीटें मिलीं और अगप को 11.92 प्रतिशत मत मिले थे तथा वह कोई भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी। आज की स्थिति में, जहां 20 विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम बहुमत में हैं और 20 से अधिक में वे चुनाव नतीजे प्रभावित करने की निर्णायक स्थिति में हैं, भाजपा बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठ के विरुद्ध जंग की घोषणा कर मैदान में उतरी है। उसके 125 उम्मीदवारों में 10 मुस्लिम भी हैं। पिछले कई महीनों में असम के सभी क्षेत्रों में अनेक अभियानों, बड़ी छोटी सभाओं, विभिन्न महत्वपूर्ण जातीय, भाषायी और क्षेत्रीय समूहों के बीच सघन सम्पर्क के माध्यम से उसने संगठन का प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है। मूल असमिया मतदाताओं की मुख्यधारा अब तक कांग्रेस और अगप के साथ रही है। कांग्रेस असमिया मतदाताओं के अलावा मुस्लिमों, बंगलाभाषी समाज और चाय बागान के श्रमिकों का वोट भी हासिल करती रही है। इसीलिए वह “अली, कुली, बंगाली” के नारे के साथ “समाज बांटो और राज करो” की नीति पर जीतती रही। अब उसके इस “दुर्ग” में दरारें आ गयी हैं। राष्ट्रपति बुश की भारत यात्रा और अमरीका को कांग्रेस के समर्थन का एक असर यह भी हुआ है कि मुस्लिम कांग्रेस से नाराज हो गए हैं। बदरुद्दीन अजमल की नयी मुस्लिम पार्टी का बनना, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के लिए दबाव की राजनीति मात्र समझना भूल होगी। कांग्रेस का दूसरा बड़ा वोट बैंक चाय बागान के श्रमिकों का था। वहां भी शिक्षा के प्रसार, राजनीतिक चेतना में वृद्धि और भाजपा द्वारा उनकी समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित करने के कारण उनका एक बड़ा वर्ग कांग्रेस से दूर हो गया है। बंगलाभाषी समाज में भी कांग्रेस पर भरोसा टूटा है। वह अगप के साथ नहीं चलता। उसका झुकाव भाजपा की ओर स्वाभाविक रूप से बढ़ा है। वर्तमान विधानसभा में 8 सदस्यीय भाजपा विधान मंडल के नेता बंगलाभाषी विमलांशु राय हैं।
असम के 126 विधानसभा क्षेत्रों में 11 बोडो बहुमत वाले हैं, इसके अलावा 15 सीटें ऐसी हैं जहां बोडो मतदाता प्रभावी हैं। तीसरा वर्ग बंगलादेशी मुस्लिमों का है जो धुबरी, नलबाड़ी, बरपेटा, नगांव, करीमगंज और हैलाकांडी में सघन हैं। पिछली विधानसभा में उनकी संख्या 24 थी। तरुण गोगोई की कांग्रेस सरकार में गृहमंत्री रकीबुल हुसैन हैं। वर्तमान 24 मुस्लिम विधायकों में केवल दो असम मूल के हैं, शेष 22 बंगलादेशी मूल के कहे जाते हैं। चौथा वर्ग चाय बागान के जनजातीय श्रमिकों का है, जो सैकड़ों साल पहले उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, आन्ध्र आदि राज्यों से मजदूरों के नाते आए और यहीं बस गए। बाकी मूल असमिया हैं जो अपने ही प्रांत में आज स्वयं को अल्पसंख्यक और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
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