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गंगा अविरल रहे, गंगा निर्मल रहेगंगा महासभा द्वारा गत 19 व 20 सितम्बर को हरिद्वार में दो दिवसीय चिन्तन शिविर का आयोजन किया गया। इस आयोजन के संयोजक तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अ.भा. कार्यकारिणी के सदस्य श्री इन्द्रेश कुमार ने शिविर की भूमिका रखते हुए कहा कि गंगा रक्षा तथा हिमालय की सुरक्षा इस शिविर को मुख्य उद्देश्य हैं।शिविर के उद्घाटन सत्र में पेजावर मठ के प्रमुख स्वामी विश्वेशतीर्थ जी, जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन, अग्निपीठ के स्वामी अबोधानन्द, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गंगा प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रो. यू.के. चौधरी आदि अनेक मनीषी विराजमान थे। जगन्नाथ धाम के महन्त स्वामी हंसदास जी ने प्रस्ताव रखा कि गंगा के सन्निकट जिस विस्तृत घाट पर यह आयोजन सम्पन्न हो रहा है, उसका नाम राष्ट्रसन्त श्रीगुरुजी के नाम पर रखा जाए, क्योंकि यह उनका जन्म शताब्दी वर्ष है और धार्मिक जगत के लिए उनके द्वारा अनेक प्रयास किए गए थे। इस प्रस्ताव का सभी ने हर्षध्वनि से स्वागत किया। जूना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने अपने उद्बोधन में कहा कि गंगा को बन्धन मुक्त कराने के अभियान में सन्त समाज तथा राष्ट्रभक्तों को मिलकर संघर्ष करना चाहिए। स्वामी विश्वेशतीर्थ जी ने कहा कि गंगा हमारी संस्कृति का प्रतीक है।चिन्तन शिविर के दूसरे दिन जो प्रस्ताव पारित किए गए उनमें कहा गया कि गंगा तट पर औद्योगीकरण रोकने, गंगा तटीय नगरों में प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल बनाने के संयंत्र स्थापित करने का विरोध तथा गंगा मुक्ति के लिए न्यायिक, सामाजिक, राजनैतिक मोर्चे पर संगठित होकर संघर्ष को व्यापक रूप दिया जाएगा। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रीय गंगा मुक्ति अभियान समन्वय समिति के गठन का निर्णय भी लिया गया है।चिन्तन शिविर के समापन सत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा कि पश्चिम की संस्कृति ने राष्ट्र के मानबिन्दुओं को विकृत करने का कार्य किया है। हिमालय क्षेत्र का विकास वैदिक परम्पराओं के आधार पर किया जाना चाहिए।इस सत्र में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती तथा प्रसिद्ध पर्यावरणविद् श्री सुन्दरलाल बहुगुणा भी उपस्थित थे। प्रेम बड़ाकोटी17
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