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पहली महिला पत्रकार-स्नेहलता महापात्रउड़ीसा के पत्रकारिता जगत में श्रीमती स्नेहलता महापात्र का नाम मील का पत्थर है। वस्तुत: उड़िया भाषा यानी आंचलिक पत्रकारिता में महिलाओं की दस्तक के रूप में सबसे पहले उन्होंने ही कदम आगे बढ़ाए। इसे संयोग कहें या ईश्वर का आशीर्वाद, उन्हें पत्रकारिता और लेखन की डगर पर हमसफर भी “एक मन- एक मंजिल” वाले मिले। सन् 1952 में उड़ीसा के जाने माने पत्रकार श्री चिन्तामणि महापात्र से उनका विवाह हुआ और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।बचपन से ही उनमें लिखने-पढ़ने की ललक थी। सन् 1920 में कालाहांडी जिले के भवानी पाटना नामक कस्बे में पिता श्री वासुदेव रथ और माता श्रीमती सावित्री देवी की संतान के रूप में उन्होंने जन्म लिया। जब बेटी के मन में पढ़ने की उत्कंठा दिखी तो माता-पिता ने इसकी व्यवस्था भी की। स्नेहलता ने भवानी पाटना के हाईस्कूल से 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस बीच कालाहांडी जिले की गरीबी, दुर्दशा, अकाल आदि परिस्थितियों को जब उन्होंने देखा, बस वहीं से उनके मन का लेखक व्याकुल हो उठा। और कालांतर में जब लेखनी चलने लगी तो वह उड़िया पत्रकारिता के क्षेत्र में न केवल सशक्त हस्ताक्षर बनीं वरन् उड़िया साहित्य को भी उन्होंने अपने निबन्धों, उपन्यासों, कहानी संग्रह आदि से समृद्ध किया। सन् 1977 में “अव्यक्त” नाम से उनका कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। सन् 2001 में इस संग्रह का पुन: प्रकाशन हुआ है। उन्होंने कालाहांडी में बंधुआ मजदूरों की जिस दुर्दशा को निकटता से देखा, उसे “पीलू” नामक नाटक में आवाज दी। यह नाटक बाद में आकाशवाणी से प्रसारित हुआ और आगे इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे अनेक भाषाओं में अनूदित भी किया गया। सन् 1967 से 1971 तक श्रीमती स्नेहलता ने अपने पति श्री चिंतामणि महापात्र को एक मासिक पत्रिका “विवरणी” निकालने में सहयोग दिया। पति-पत्नी दोनों मिलकर इसका प्रकाशन एवं संपादन करते थे।श्रीमती स्नेहलता आज भी लेखन और साहित्य सृजन में सक्रिय हैं, यद्यपि 4 वर्ष पूर्व उनके पति श्री चिंतामणि का देहावसान हो गया। अपने पति की स्मृतियों को मन में संजोए वे कहती हैं, “उन्होंने उदीयमान पत्रकारों को हमेशा प्रेरित किया। विशेषकर उड़िया भाषा में लिखने वाले युवा पत्रकारों, साहित्यकारों से मिलना तथा प्रेरित करना उन्हें अच्छा लगता था। मैं उनके इसी काम में लगी हूं। युवा पत्रकारों को मेरा यही कहना है कि हमेशा सचाई के मार्ग पर चलें और पथ पर चाहें जितनी बाधाएं आएं, साहस के साथ उनका सामना करें।” अनेक सम्मानों से श्रीमती स्नेहलता को नवाजा जा चुका है लेकिन उनके अनुसार, “सबसे संतोष की बात तो यही है कि मैं निरंतर अपनी मातृभाषा में लिखती रही। नि:संन्देह मुझे उड़िया भाषा से प्रेम है, लगाव है।” और इसी लगाव का परिणाम है कि उन्हें उत्कल भारती सम्मान, नन्दकिशोर महापात्र स्मृति सम्मान, चलपति सम्मान जैसे अनेक प्रसिद्ध सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। स्त्री के स्वावलम्बन तथा स्त्री शक्ति के जागरण में भी उनकी सक्रियता कम नहीं है। ऐसी महिलाएं, जिन्हें तलाक का दंश झेलना पड़ता है या जो विधवा हो जाती हैं और ऐसी भी जिन्हें दहेज-दानव का सामना करना पड़ता है, की सहायता तथा उनके पुनर्वास में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दृष्टि से 1982 से 1990 तक गंजाम जिला लोक अदालत में आने वाले ऐसे मामलों के निपटारे में उन्होंने सक्रिय भूमिका का निर्वहन किया था।बनी-ठनी26
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