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-गोपाल सच्चर
आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर की हर सरकार जम्मू परिक्षेत्र के साथ भेदभाव करती रही है। प्रत्येक निर्णय साम्प्रदायिक आधार पर लिया जाता रहा है, चाहे घाटी में नए जिले बनाने हों या जम्मू में, हर निर्णय के पीछे साम्प्रदायिक दृष्टिकोण ही आधार बना है। जम्मू संभाग में हिन्दूबहुल रियासी जिला खत्म कर मुस्लिम बहुल डोडा जिला बनाने के पीछे भी यही कारण था। “70 के दशक में शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने मनमाने ढंग से कश्मीर में तीन नए जिले बनाए। जम्मू के लोगों ने जब अपने क्षेत्र में नए जिले बनाने की मांग को लेकर आन्दोलन छेड़ा तो मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जानकी नाथ वजीर के नेतृत्व में एक आयोग बना दिया गया। इस अयोग ने अपनी रपट 1982 में सरकार को सौंप दी। वजीर आयोग ने अपनी रपट में दूसरी इकाइयों के गठन के साथ राज्य में चार नए जिले बनाने की सिफारिश की। इनमें रियासी, किश्तवाड़ और साम्बा जम्मू संभाग में आते थे और बांदीपुरा कश्मीर घाटी में आता था।
अगर यह सिफारिश मान ली जाती तो जम्मू संभाग में जिलों की कुल संख्या नौ हो जाती और घाटी में सात। यद्यपि भौगोलिक क्षेत्रफल और जनसंख्या के अनुपात में यह ठीक ही था किन्तु कश्मीर के नेतृत्व को यह सहन नहीं हुआ कि राज्य पर जम्मू वालों का प्रभुत्व हो जाए। हाल ही में जब मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने राज्य में आठ नए जिले बनाने का निर्णय लिया तो लोग अवाक् रह गए। इसमें यद्यपि वजीर आयोग की संस्तुतियों को स्वाकीर कर लिया गया है किन्तु पक्षपात के आरोप से बचने के लिए मुख्यमंत्री ने नवीन प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण में घाटी को ही प्राथमिकता दी है। ध्यान रहे कि 2002 के विधानसभा चुनाव में जम्मू परिक्षेत्र के साथ हो रहे भेदभाव का मुद्दा जोर-शोर से उठा था। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में इस संदर्भ में वायदा किया था कि वह यह भेदभाव दूर करेगी और यदि कांग्रेस की सरकार बनी तो मुख्यमंत्री भी इसी क्षेत्र से होगा।
स्वाभाविक ही इस घोषणा का सीधा लाभ भी कांग्रेस को प्राप्त हुआ। जम्मू संभाग की कुल 37 सीटों में से कांग्रेस 15 पर विजयी हुई। उसे कश्मीर घाटी में 5 सीटें मिलीं। इस प्रकार चुनाव में कांग्रेस को कुल 20 सीटें प्राप्त हुर्इं।
राज्य में पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन सरकार गठित हुई। प्रारम्भ में गठबंधन सरकार के एजेन्डे में वजीर आयोग की सिफारिशों पर विचार करने की बात तो कही गई। किन्तु सरकार का नेतृत्व पी.डी.पी के नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद के हाथों में था, इसलिए इस प्रश्न को यह कहकर टाल दिया गया कि वजीर आयोग को लागू करने के लिए 4000 करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी और यह राशि जुटा पाना कठिन है। तीन वर्ष बाद जब गुलाम नबी आजाद मुख्यमंत्री बने तो वजीर आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक बड़ा आंदोलन हुआ। जम्मू संभाग में तीन और घाटी में केवल एक नया जिला बनाने का मामला राजनीतिक रंग लेता जा रहा था कि मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने आयोग की सिफारिशों से आगे बढ़कर चार के बजाय 8 नए जिले, तीन नए अनुमण्डल और 13 तहसीलें बनाने का निर्णय मंत्रिमण्डल से पारित करा लिया।
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