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हां और “ना” की उलझनअपने पत्नी शोभना के साथ श्री अम्बेश जागड़प्रिय शोभनातुम्हें इस तरह पत्र लिखने का मौका पहले नहीं मिला था। पाञ्चजन्य में “स्त्री स्तम्भ” देखकर प्रेरणा जगी। हमारे विवाह के 15 सफल वर्ष पूर्ण होने पर तुम्हें बधाई। वैसे विवाह की वर्षगांठ का जितना ध्यान तुम्हें रहता है, उतना मुझे नहीं। मुझे आज वह दिन याद आता है जब हम पहली बार मिले थे। तुम्हें भी याद होगा, उस दिन जन्माष्टमी थी। मैं ताऊजी के घर जयपुर आया हुआ था। चाचाजी भी तब जयपुर में ही थे। उन्होंने हमारे सम्बंधों की नींव रखी। चाचा जी ने ही हमारी तुम्हारी पहली मुलाकात का प्रबंध किया। इस पुण्य कार्य के दिन उन्होंने पिताजी को भी जयपुर बुला लिया। मुझे याद है कि हमें परस्पर बातचीत के लिए एक अलग कमरे में बैठाया गया। हम दोनों शर्मीले स्वभाव के थे अत: ज्यादा बातचीत न हो पाई और सच कहूं तो इस पहली मुलाकात में तुम मुझे न पसन्द आयीं और न नापसन्द। मेरे पिताजी ने मुझसे जब राय पूछी तो मैं असमंजस में पड़ गया कि क्या जवाब दूं? मैंने उन्हें कहा, “भाइयों से बातचीत कर बाद में जवाब दूंगा।” मंगलम, शुभ मंगलमइस स्तम्भ में दम्पत्ति अपने विवाह की वर्षगांठ पर 50 शब्दों में परस्पर बधाई संदेश दे सकते हैं। इसके साथ 200 शब्दों में विवाह से सम्बंधित कोई गुदगुदाने वाला प्रसंग भी लिखकर भेज सकते हैं। प्रकाशनार्थ स्वीकृत प्रसंग पर 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।लेकिन पिताजी अड़ गए कि जवाब अभी दो, या तो “हां” कहो या “ना”। लड़की वालों को परेशान करना अच्छा नहीं है। फिर भी मैंने जवाब नहीं दिया। तब पिताजी ने तुम्हारे घर वालों को अपनी तरफ से “हां” कर दी। सभी लोग वापस घर आ गए। दुर्भाग्यवश इस मुलाकात के कुछ ही महीनों बाद पिताजी का निधन हो गया। और तब पिताजी के दिए वचनों के कारण हमारा-तुम्हारा विवाह सम्पन्न हुआ। लेकिन आज मैं खुशकिस्मत हूं कि तुम मेरी जीवनसंगिनी बनीं। आज मैं अपने भाइयों के साथ रह रहा हूं और सभी में परस्पर प्रेम है तो इसमें तुम्हारी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। मैं मानता हूं कि इसमें तुम्हारे परिवार का भी बड़ा योगदान है, जिसने तुम्हें इतने संस्कार दिए। भगवान हमेशा हम दोनों को हमारे संयुक्त परिवार सहित सुखी रखें, यही कामना है।तुम्हाराअम्बेश जागड़सागर मोहल्ला, दौसा (राजस्थान)24
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