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– अरविंद वी. महीधर4 दिसम्बर, 2005 के पाञ्चजन्य में “मंथन” स्तंम्भ में श्री देवेन्द्र स्वरूप का खुशबू प्रकरण पर बहुत अच्छा और तर्कबद्ध लेख छपा है। लगता है कि कुछ अंग्रेजी दैनिक, मीडिया और कुछ फिल्मी लोग उस व्यवसाय की दलाली कर रहे हैं, जो “निरोध” जैसे उपकरण
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