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पाठकीय

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Aug 1, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 01 Aug 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ- 11 दिसम्बर, 2005पूर्वोत्तर का दर्दपञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2006 पौष शुक्ल 9 रवि 8 जनवरी, 06 ,, ,, 10 सोम 9 ,, ,, ,, 11 मंगल 10 ,, ,, ,, 12 बुध 11 ,, ,, ,, 13 गुरु 12 ,, ,, ,, 14 शुक्र 13 ,, ,, पूर्णिमा शनि 14 ,, (माघ स्नानारम्भ)आवरण कथा “विद्रोह और उपेक्षा” पढ़कर एवं मुखपृष्ठ पर कार्बी बस यात्रियों के शवों का चित्र देखकर बहुत पीड़ा हुई। यह पीड़ा तो उस समय और बढ़ जाती है जब पता चलता है कि तथाकथित मानवाधिकारवादी एवं सेकुलर इन घटनाओं पर चुप हैं। चर्च प्रेरित इन घटनाओं का एकमात्र उद्देश्य है लोगों में भय पैदा करना, ताकि वे अपना घर-द्वार छोड़कर पलायन करें। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि धीरे-धीरे नागालैण्ड को एक “ईसाई देश” घोषित किया जा सके।- प्रमोद वालसांगकर, 1-10-19, रोड नं. 8ए,द्वारकापुरम, दिलसुख नगर, हैदराबाद (आं.प्र.)असम, नागालैण्ड, मिजोरम, मणिपुर आदि पूर्वोत्तर के इन राज्यों में आए दिन नरसंहार होते रहते हैं। इनके पीछे कभी उल्फा, कभी एन.एस.सी.एन., तो कभी अन्य किसी संगठन का हाथ बताया जाता है। इसके बाद इन घटनाओं को राज्य सरकारें तो भूल ही जाती हैं, केन्द्र सरकार भी दिल्ली तक सिमट कर रह जाती है। इस कारण आज पूर्वोत्तर की स्थिति कश्मीर से बदतर है। अगर पूर्वोत्तर की इन घटनाओं की निष्पक्ष जांच हो तो शायद यह भी पता चले कि इनके पीछे बंगलादेशी घुसपैठिए भी हैं। क्योंकि असम में अधिकांश नरसंहार उन जगहों पर हुए हैं, जहां इन घुसपैठियों की संख्या अधिक है।- जगन्नाथफौजदार बस्ती, ठाकुरगंज, किशनगंज (बिहार)निज पर शासन फिर अनुशासनदिशादर्शन के अन्तर्गत श्री तरुण विजय का आलेख “कुछ आगे बढ़ें और देश की सोचें” पढ़ा। राजनीतिक दलों को सर्वप्रथम राष्ट्रहित, समाजहित को सर्वोपरि मानना चाहिए। व्यक्तिगत आकांक्षाओं और स्वार्थपूर्ति के लिए स्वयं को दल और देश से ऊपर मानना हानिकारक होता है। लोकतांत्रिक प्रणाली में जनप्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। समाज को भयमुक्त शासन प्रदान करना उनकी जिम्मेदारी है। यदि वे सत्तालोलुपता एवं भ्रष्टाचार में लिप्त रहेंगे तो देश का बहुमुखी विकास कैसे होगा? नेता “निज पर शासन फिर अनुशासन वाली” कहावत पर चलें तो अच्छा होगा।- दिलीप शर्मा, 114/2205एम.एच.वी. कालोनी, समतानगर, कांदीवली (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र)दिशादर्शन झकझोर गया। भाजपा के विभिन्न पहलुओं को आपने बहुत अच्छी तरह पाठकों को बताया है। सच में भाजपा का यह संकट पार्टी में ही बैठे कुछ लोगों के कारण पैदा हुआ है। ऐसे लोग राज्य इकाइयों में भी हावी हैं। पार्टी नेतृत्व को इन सब पर अविलम्ब ध्यान देना होगा, तभी पार्टी की साख बच सकती है।- गोविन्द कुमार गुप्ता, 61,राजा स्ट्रीट, संजय नगर, एरोड (तमिलनाडु)जांच आयोगों की जांचसंभल कर चलना होगाराजनाथ के वास्ते, राह नहीं आसानलौटाना वापस उन्हें, फिर खोया सम्मान।फिर खोया सम्मान, संभल कर चलना होगाअनुशासन की टूटी डोर पकड़ना होगा।कह “प्रशांत” हर व्यक्ति से सिद्धान्त बड़ा हैइस पर ही तो संघ और परिवार खड़ा है।।- प्रशांतसम्पादकीय “असली चेहरा सामने आए” में वोल्कर रपट के सन्दर्भ में विदेश प्रकोष्ठ के पूर्व सचिव और नटवर सिंह के सहयोगी माने जाने वाले अनिल माथेरानी के बयानों के विभिन्न पहलुओं की चर्चा की गई है। सरकार अब एक जांच समिति से इसकी जांच करवा रही है, पर नतीजा क्या निकलेगा यह तो समय ही बताएगा। इतिहास तो कहता है कि ऐसी अधिकांश जांच समितियों की रपटों पर लीपापोती ही की गई है। मेरे विचार से तो सर्वोच्च न्यायालय अपनी पहल पर एक ऐसे आयोग का गठन करे, जो यह जांच करे कि 1950 से आज तक किन-किन काण्डों और घोटालों की जांच के लिए आयोग बनाए गए, उनकी रपटों का क्या हुआ और उनमें कितना खर्च हुआ?- विनोद कुमार गुप्तापार्क रोड, लखनऊ (उ.प्र.)वोल्कर रपट के सन्दर्भ में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने संसद में बयान दिया कि न्यायमूर्ति पाठक जांच समिति की रपट का इन्तजार करना चाहिए। सैद्धान्तिक रूप से यह ठीक है। किन्तु अनिल माथेरानी के खुलासों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा है कि नटवर सिंह को सद्दाम सरकार द्वारा उनके और कांग्रेस पार्टी के नाम पर तेल के कूपन उपलब्ध कराए गए थे। ऐसे बयानों की सत्यता जानने का अधिकार देश को तो है ही।- खुशाल सिंह माहौरफतेहपुर सीकरी, आगरा (उ.प्र.)इनका बलिदानइण्डियन आयल कारपोरेशन के कर्मठ एवं ईमानदार अधिकारी एस. मंजूनाथ षणमुगम की हत्या से पता चलता है कि देश के भीतर समाज-जीवन में भी संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में कभी अभियन्ता सत्येन्द्र दुबे, तो कभी मंजूनाथ जैसे युवा कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों को आहुति देनी पड़ रही है। दूसरा संघर्ष सीमाओं पर चल रहा है, जहां हमारे वीर जवान जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा कर रहे हैं। इन जवानों एवं अधिकारियों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।- डा. सुभाष बारोड़, 388 ई.ई.,योजना क्र.-94, रिंग रोड, बंगाली चौराहा, इन्दौर (म.प्र.)हिन्दी की उपेक्षामंथन में श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “क्या हिन्दी की लड़ाई हम हार चुके हैं?” अच्छा लगा। स्वतंत्रता के 58 वर्ष बाद भी अंग्रेजी सम्भाषण व अंग्रेजी ज्ञान ही सुशिक्षित होने के मिथ्या मापदण्ड के रूप में स्थापित हैं। इस कारण हिन्दी राजभाषा होने के बावजूद उपेक्षित है। जब हम हिन्दुस्थानी होने पर गर्व करते हैं, तो हिन्दी की उपेक्षा क्यों? आज हिन्दी भाषा के उत्थान, उसकी गरिमा बनाये रखने और उसे उचित स्थान दिलाने हेतु दूरदर्शन, आकाशवाणी, प्रेस व फिल्म जगत की सहायता से चेतना जगाने कीआवश्यकता है।- कु. मनीषा श्रीवास्तव, 117/क्यू./35,एल.आई.सी. हाउसिंग सोसाइटी, शारदा नगर, कानपुर (उ.प्र.)वास्तव में हम हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए कटिबद्ध हो जाएं, हिन्दी भाषी राजनेता और साहित्यकार हिन्दी बोलने में संकोच न करें तथा राजनीतिक इच्छशक्ति और संकल्प के साथ कार्य करें। समाज भी “निज भाषा उन्नति से ही असली उन्नति” के सिद्धान्त के साथ डटा रहे तो हिन्दी के विकास को कोई रोक नहीं सकता।- चन्द्रकान्त यादवचांदीतारा, साहूपुरी, चंदौली (उ.प्र.)छात्रों का भी ध्यान रखेंमैं कक्षा बारह का छात्र हूं। पाञ्चजन्य का नियमित पाठक हूं। पाञ्चजन्य में धर्म एवं राजनीति के विषय पर बहुत कुछ होता है, किन्तु छात्रों के लिए कुछ नहीं। मेरा अनुरोध है कि आप छात्रों के लिए एक पृष्ठ निश्चित करें, जिसमें महापुरुषों की जीवनी, नये आविष्कार, सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तर आदि प्रकाशित किए जाएं। पृष्ठ सं. 12 पर “जय हनुमान” शीर्षक से कहानियों की श्रृंखला प्रकाशित की जा रही है। अगर किसी कारणवश कोई एक कथा नहीं पढ़ पाता है तो अगले अंक की कथा उसे समझ में नहीं आती, इस पर कुछ विचार किया जाए।- भूपेन्द्र सिंहरामनगर, वाराणसी (उ.प्र.)मेल नहीं थापाञ्चजन्य (13 नवम्बर, 2005) में सुश्री संध्या जैन का एक छोटा-सा आलेख “हम अमरीकी चालबाजी में न फंसें” छपा है। इस लेख में जो झुकाव इंगित हुआ वह समझ से परे था। पाञ्चजन्य में ऐसे विचार पढ़कर अजीब लगा।- विजय, वीर सावरकर भवन,रेलवे रोड, चरखी दादरी, भिवानी (हरियाणा)पुरस्कृत पत्रये वी.वी.आई.पी.जो इंडियन एयरलाइंस क्रिकेट और हाकी खिलाड़ियों को अपने बल्लों तथा हाकियों सहित हवाई यात्रा करने देती है, उसे दंडीस्वामी संन्यासियों के धर्मदंड सहित यात्रा करने पर एतराज है, यह समझ में आने वाली बात नहीं है। इसका एकमात्र स्पष्टीकरण यही हो सकता है कि पंथनिरपेक्ष सरकार द्वारा नियंत्रित होने के कारण इंडियन एयरलाइंस को हिन्दू धर्माचार्यों के अपमान में आनन्द आने लगा है। राजग सरकार के समय में ऐसी आपत्तियां नहीं होती थीं। वस्तुत: सम्माननीय हिन्दू संन्यासियों को तो सुरक्षा जांच के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। देश में ऐसा काफी बड़ा “वी.वी.आई.पी.” वर्ग है, जिसे हवाई अड्डों पर सुरक्षा जांच से छूट मिली हुई है। इनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश आदि तो हैं ही, साथ में केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सदस्या न होने के बावजूद कैबिनेट मंत्री का दर्जा पाने वाली सोनिया गांधी भी हैं। उल्लेखनीय है कि अन्य कोई कैबिनेट मंत्री इतना बड़ा “वी.वी.आई.पी.” नहीं माना गया है। यही नहीं राहुल, प्रियंका और गांधी परिवार के दामाद राबर्ट वढेरा तक सुरक्षा जांच से बाहर रखे गए हैं। हिन्दू समाज के पूज्य साधु-संन्यासियों की महत्ता इन सबसे कहीं अधिक है।- अजय मित्तलखंदक, मेरठ (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.5

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