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स्त्री

by
Aug 1, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Aug 2006 00:00:00

हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ

मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटी

सबसे अच्छी “मम्मी जी”

अपनी सासू मां के साथ श्रीमती सरिता कौशिक

मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे इतना अच्छा परिवार मिलेगा। मैं गांव में पली-बढ़ी, बचपन खेलते-कूदते बीता। विवाह के पूर्व कभी मन में अपनी होने वाली सासू मां और पति के बारे में कुछ भी ख्याल नहीं आता था सिवाय उस समय के जबकि मेरी किसी शैतानी या गलती पर मां मुझे डांटते हुए कहती थीं, “हे भगवान, ये लड़की कब सुधरेगी, ससुराल में जाने क्या होगा।” और वह दिन भी आया, जब मैं अपने ससुराल में आ गई। मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटी

जब भी सास बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।

सासू मां, जिन्हें मैं हमेशा मम्मी जी कहती आई हूं, आज शादी के 15 साल होने को आए, शायद ही हममें किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ हो। आज तो न वह मुझसे बात किए बिना रह पाती हैं और न मैं ही। और इसके पीछे का रहस्य भी मेरी मम्मी जी ही हैं। शादी के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने मेरी बुआ को बताया था, “बहुत गुणी बहू आपने भेजी है मेरे घर, जैसे मैंने अपनी सासू मां का ख्याल किया, वैसे ही यह भी मेरा ख्याल रखती है।” यानी कभी भी उन्होंने मेरे बारे में कोई शिकायत किसी दूसरे से नहीं की। ऐसा नहीं है कि मैं गलतियां नहीं करती थी लेकिन मेरी मम्मी जी ने मेरी हर गलती पर मुझे सही सीख दी। मैंने उनसे एक चीज बहुत गहराई से सीखी कि कभी अपनों की शिकायत पराए या रिश्तेदारों से न करो, कोई बात है तो सीधे आपस में ही नम्र शब्दों में बात कर लो। मुझे अपने पहले बेटे के जन्म का समय याद आता है। मम्मी जी को कुत्ते ने काट लिया था, बिस्तर पर थीं लेकिन पोते के जन्म के वक्त अस्वस्थ रहते हुए भी उन्होंने मेरी जो सेवा की, मैं जीवन भर भुला नहीं सकती। आज मैं, मेरी देवरानी-देवर सभी साथ-साथ संयुक्त परिवार में रहते हैं। मम्मी जी के दिए संस्कारों के कारण ही हमारा प्रेम परस्पर बना रहता है। भगवान ने मुझे अच्छा पति, देवर-देवरानी, ससुर जी दिए, किन्तु मुझे इन सबसे अच्छी तो मेरी सासू मां ही मिलीं, भगवान उन्हें दीर्घायु करें, यही कामना है।

सरिता कौशिक

एफ 1/62, सैक्टर 11

रोहिणी, दिल्ली-110085

21

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