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– अरविंद वी. महीधर
4 दिसम्बर, 2005 के पाञ्चजन्य में “मंथन” स्तंम्भ में श्री देवेन्द्र स्वरूप का खुशबू प्रकरण पर बहुत अच्छा और तर्कबद्ध लेख छपा है। लगता है कि कुछ अंग्रेजी दैनिक, मीडिया और कुछ फिल्मी लोग उस व्यवसाय की दलाली कर रहे हैं, जो “निरोध” जैसे उपकरण और उनके वितरण की मशीनें बनाते हैं और भारत को इन वस्तुओं का एक बड़ा बाजार समझते हैं।
जब चारों ओर नैतिकता पर प्रहार करने वाले आतंकवादी उठ खड़े होंगे तो सभ्य समाज में से ही नैतिक पुलिस भी अवश्य खड़ी हो जाएगी, इसमें शंका नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी मर्यादा और अंकुश होना चाहिए। देश इस स्वच्छन्दता और उच्छृंखलता से त्रस्त है। ऐसी परिस्थिति में कुछ ठोस और कड़े अंकुशों की आवश्यकता है।
फिल्मकार महेश भट्ट ने टेलीविजन पर स्वीकार किया है कि उन्हें अश्लील फिल्मों के सिवाय और कुछ आता ही नहीं और वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें भूखा रहना पड़ेगा। फिर तो दाऊद और उसके साथी भी कहेंगे कि हम धमकाकर पैसा वसूल नहीं करेंगे तो हमें भूखा रहना पड़ेगा, क्योंकि हमें और कुछ आता ही नहीं।
(श्री महीधर मुम्बई के प्रसिद्ध “इंजिनियरिंग कन्सलटेन्ट” हैं।)
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