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…और दिल्ली में प्रो. एम.सी.पुरी के परिजनों के बीच कुछ

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Aug 1, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Aug 2006 00:00:00

…और दिल्ली में प्रो. एम.सी.पुरी के परिजनों के बीच कुछ पल

अमोघ की सूनी आंखें तलाश रही हैं नानू को

माउंट कैलाश का वह आवासीय परिसर उस दिन बहुत उदास-उदास लगा। इसी परिसर में 74 नम्बर फ्लैट में रहने वाले प्रो. एम.सी. पुरी भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलौर में 28 दिसम्बर की शाम आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गए थे। 30 की सुबह हम पुरी परिवार से मिलने माउंट कैलाश पहुंचे। उनका फ्लैट तलाशने में विशेष दिक्कत नहीं हुई, घर के बाहर कुछ गमगीन चेहरों और फ्लैट में आते-जाते उदास रिश्तेदारों को देखकर पता चल गया कि वही प्रो. पुरी का घर था।

पहले तल्ले के उस फ्लैट में जाने के लिए सीढ़ियां चढ़ते, उससे पहले ही बगल में वह लकड़ी का काला बक्सा दिखा जिसमें प्रो. मनीष चन्द्र पुरी की पार्थिव देह विमान से दिल्ली लाई गई थी। बक्से पर अंग्रेजी में लिखी पर्ची चिपकी थी- “मार्टल रिमेन्स आफ प्रो. एम.सी.पुरी”। दोपहर के 12.30 बज रहे थे। घर के लोग और रिश्तेदार लोधी रोड अंत्येष्टि स्थल पर स्व. पुरी का अंतिम संस्कार करके लौट रहे थे। सिडनी (आस्ट्रेलिया) से आए प्रो. पुरी के भतीजे मनीष खेर ने बताया कि आई.आई.टी., दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक वरिष्ठ प्रोफेसर, वैज्ञानिक, छात्र अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे। हिम्मत जुटाकर घर के भीतर पहुंचे। बड़े बैठक कक्ष में फूल माला पहने प्रो. पुरी की मुस्कुराती छवि और उसके बगल में शीशे की अल्मारी में आई.आई.टी. व अन्य संस्थानों से प्रो. पुरी को प्राप्त स्मृति चिन्ह/पदक आदि सजे दिखे। अभी यह सब देख ही रहे थे कि प्रो. एम.सी.पुरी के बड़े भाई श्री नरेश चंद पुरी से परिचय हुआ। उन्होंने कहा, “बहुत होनहार था मेरा भाई। “एप्लायड मैथमेटिक्स” में नए-नए सिद्धान्तों की खोज करने में सदा जुटा रहता था।” वहां एक ओर बैठी थीं उदास आंखों से लोगों को आते-जाते देखतीं स्व. प्रो. पुरी की धर्मपत्नी श्रीमती रक्षा पुरी। प्रणाम करने के बाद परिचय दिया, उन्हें सांत्वना दी। परिवार के बारे में पूछा तो बताने लगीं, “एक बेटा है सौरभ। विवाहित है, दो बच्चे हैं और एम.बी.ए. करने के बाद एक निजी कंपनी में कार्यरत है। एक विवाहित बेटी है शैली, जो एच.सी.एल., नोएडा में कार्यरत है। उसका छोटा बेटा है अमोघ। शैली व्यक्तिगत कारणों से अपने माता-पिता के पास ही रहती है।

श्रीमती पुरी बीच-बीच में रिश्तेदारों की ओर देखकर कुछ निर्देश देती जा रही थीं। अभी पिछले साल जुलाई तक दिल्ली के कमला नेहरू कालेज में हिन्दी की प्रोफेसर रहीं श्रीमती पुरी आगे बताती हैं, “अमोघ को अपने नानू से बड़ा लगाव था। असल में तो वे ही इसका पालन कर रहे थे। उनके बिना यह कहीं नहीं जाता था। स्कूल से आकर बस नानू के साथ लग जाता था और इसके नानू भी बच्चों की तरह उसके साथ खेल में शामिल हो जाते थे। हम तो बेटा किसी तरह इस संकट की घड़ी को झेल जाएंगे, पर इस मासूम का क्या होगा। यह उनके बिना बड़ा अकेला महसूस कर रहा है।”

हमने पूछा, “प्रो. पुरी इस तरह की गोष्ठियों में जाते रहे होंगे?” श्रीमती पुरी ने कहा, “इन गोष्ठियों में वे बराबर जाते थे। हर साल दिसम्बर/जनवरी के महीने बस सेमिनारों को ही समर्पित रहते थे। विज्ञान गोष्ठियों से उनको इतना लगाव था कि उन्होंने लोगों से सहयोग राशि इकट्ठी करके दिल्ली में ऐसी दो गोष्ठियां भी कराई थीं। अभी 23 दिसम्बर को ही तो बंगलौर गए थे। अमोघ ने पूछा था, नानू कब लौटेंगे तो उन्होंने हंसते हुए कहा था, 29 तक आ जाऊंगा। पर कौन जानता था…..”। कहते-कहते श्रीमती पुरी रुक गईं। डी.पी.एस., ईस्ट आफ कैलाश में तीसरी कक्षा का छात्र अमोघ निरन्तर अंदर-बाहर आ-जा रहा था। घटना के बारे में श्रीमती पुरी ने बताया, “जब इन्होंने देखा कि बाहर कोई गोलियां चला रहा था तो तुरंत प्रो.साहब ने अपने साथ चल रहे 4-5 वैज्ञानिकों को नीचे लेट जाने को कहा। वे खुद नीचे झुक पाते इससे पहले ही एक गोली उनके गले को भेद गई। प्रो. पुरी वहीं निढाल होकर गिर पड़े। उन्होंने बड़बड़ाते हुए कहा भी कि मुझे गोली लग गई है। जाते-जाते 4-5 लोगों की जान बचा गए प्रो. साहब।” हमने फिर कहा, “उनके छात्र बहुत तारीफ करते हैं उनकी लगन और पढ़ाने के तरीके की।” वे बोलीं, “अब क्या बताऊं, पढ़ने वाले बच्चे तो अब तक उन्हें पूछते हैं। उनका पढ़ाने का अपना ही तरीका था। मेहनत बहुत करते थे विषय पर।” बातचीत चल ही रही थी कि पता लगा केन्द्रीय गृहमंत्री और गृहसचिव पुरी परिवार को सांत्वना देने आए हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल आए और उन्होंने परिवार को ढाढस बंधाते हुए कहा, “हम आपके दुख में शामिल हैं। भारत सरकार परिवार के लिए हरसंभव सहयोग करेगी।” करीब दस मिनट बाद गृहमंत्री लौट गए। हमने भी श्रीमती पुरी को पुन: प्रणाम किया। अभी दरवाजे से निकले ही थे कि देखा अमोघ बालकनी में खड़ा सड़क की ओर देख रहा था। शायद नानू का इंतजार था। हम उसकी इस वेदना को बांट नहीं सकते थे। भारी मन से सीढ़ियों से उतरे। सामने वही काला लकड़ी का बक्सा दिखा, जिस पर चिपकी पर्ची पर अंग्रेजी में लिखा था- “मार्टल रिमेन्स आफ प्रो.एम.सी. पुरी।”

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