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4 मई से खुल रहे हैं कपाटजय बदरी केदार!-प्रेम बड़ाकोटीसम्मूर्ण हिमालय एक तीर्थ क्षेत्र है। सामान्य रूप से हिमालय पर बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री तथा यमुनोत्री ही प्रमुख तीर्थ माने जाते हैं। किन्तु वहां अन्य ऐसे अनेक ज्ञात, अज्ञात धार्मिक तथा पौराणिक स्थल हैं जो सांस्कृतिक दृष्टि से अपना विशेष स्थान रखते हैं। पंचप्रयाग, पंचबद्री, पंचकेदार, नंदादेवी, बैजनाथ, ताड़केश्वर, कालीकुमाऊं, हुनौल, पलेठी का सूर्य मन्दिर, आदि बद्री तथा बूढ़ा केदार आदि ऐसे अनगिनत नामों का उल्लेख किया जा सकता है। हिमालय में जितनी अधिक संख्या में शिवालय हैं उतने कदाचित ही अन्यत्र होंगे, इसीलिए केदारखण्ड में इसे शिवक्षेत्र कहा गया है। इस बार वैशाख शुक्ल सप्तमी, 4 मई को एक ही दिन श्री बदरीनाथ तथा श्री केदारनाथ, दोनों जगत् प्रसिद्ध मंदिरों के कपाट खुल रहे हैं। कपाट खुलने का लोकमान्य विधान आदिकाल से चला आ रहा है। मान्यता यह है कि 6 माह मानव पूजा तथा 6 माह देव पूजा होती है। वृहद् नारद पुराण में इसका उल्लेख है- षण्मासे देवतेपूज्या, षण्मासेमानवेस्थता। एक लम्बे कालखंड से बदरी, केदार, गंगोत्री तथा यमुनोत्री, इन चारों तीर्थों के मन्दिरों की व्यवस्था संरक्षक के रूप में टिहरी नरेश ही नियंत्रित करते आ रहे हैं। वसंत पंचमी के पर्व पर टिहरी दरबार में रावल (मुख्य पुजारी) की जन्मकुण्डली को दृष्टि में रखकर दिशा प्रस्थान तथा कपाट खुलने का मुहूर्त तय किया जाता है। कपाट खुलते समय टिहरी नरेश के द्वारा रावल को तिलक किया जाता है, इसे तिलपात्र अभिषेक कहा जाता है। कपाट खुलने के दिन का मुख्य आकर्षण भगवान बद्रीश तथा उस दीप ज्योति का दर्शन होता है, जो शीतकाल के लगभग 6 माह गर्भगृह में प्रज्ज्वलित रहती है। परम्परा के अनुसार इस दीप ज्योति के लिए प्रयोग में आने वाले तेल को टिहरी दरबार में ही सुहागिन महिलाओं के द्वारा तैयार किया जाता रहा है। इस अवसर पर गर्भगृह में स्थित भगवान बद्रीश, लक्ष्मी जी, उद्धव जी, नारद जी, गणेश जी, कुबेर तथा नर-नारायण की मूर्तियों पर आवरण के रूप में ढंके गए घृत्कम्बल को भी हटाया जाता है। इस कम्बल की बुनाई सीमा पर स्थित माणा ग्राम में होती है। देव-मूर्तियों के मंगल स्नान के उपरान्त महाभिषेक होता है।44
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