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चर्च दलित ईसाइयों को उनके
अधिकारों से वंचित कर रहा है
गत दिनों बुंदेलखंड में दलित ईसाई मुक्ति संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रमों के दौरान समान अधिकारों और चर्च ढांचे में भागीदारी की मांग उठी। इससे विचलित होकर कैथोलिक चर्च के बिशप फ्रेडरिक डिसूजा (झांसी आर्चडायसिस) ने चर्च कलीसियाओं के नाम 2 एवं 16 अप्रैल, 2006 को उक्त संगठन के बहिष्कार का फतवा जारी कर दिया। उल्लेखनीय है कि इसके पूर्व अक्तूबर, 2001 में भी कैथोलिक चर्च ने ऐसा ही एक फतवा जारी किया था, जिसे स्थानीय ईसाई समुदाय ने कोई विशेष महत्व नहीं दिया था। दलित ईसाई मुक्ति संगठन के अध्यक्ष आर.एल. फ्रांसिस ने फतवे पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि कैथोलिक चर्च के बिशप आम ईसाई मतावलंबियों को अपनी पांथिक सत्ता का उपयोग करके चुप करवाना चाहते हैं लेकिन वे खुद कलीसिया के नियम तथा उसकी मर्यादा के अनुरुप नहीं चलते। श्री फ्रांसिस ने कहा कि आज ईसाई समाज में मुट्ठीभर लोग चर्चों की सत्ता पर एकाधिकार बना कर बैठे हैं, दलित ईसाई बहुसंख्यक होते हुए भी एक गहरी साजिश के तहत चर्च ढांचे से बाहर खदेड़ दिये गए हैं। उन्होंने कहा कि उनका संगठन न्यायपूर्ण ढंग से वंचित वर्गों, खासकर करोड़ों दलित ईसाइयों के जीवन स्तर में सुधार के लिए वास्तविक समाधान ढूंढने तथा चर्चों व उससे जुड़े संगठनों को अधिक न्यायपूर्ण और पारदर्शी बनाने हेतु शांतिपूर्ण परिवर्तन लाने के प्रति प्रतिबद्ध है। श्री फ्रांसिस ने कहा कि चर्च नेतृत्व फतवे जारी करने की जगह बहुसंख्यक दलित ईसाइयों को उनकी भागीदारी के तहत चर्च ढांचे में स्थान दे, इसी में चर्च एवं ईसाइयत का भला होगा। प्रतिनिधि
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