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-शिव कुमार गोयल
मनोहर श्याम जोशी असीमित शब्द-सम्पदा के स्वामी और साहित्य क्षेत्र में खेमेबाजी के घोर विरोधी थे। किसी भी प्रकार के दोहरे मुखौटे तथा शाब्दिक पाखण्ड को वे कदापि सहन नहीं करते थे। जब कभी कथित स्वयंभू प्रगतिशीलों, सेकुलरवादियों, वामपंथियों अथवा कथित दक्षिणपंथियों के दोहरे चरित्र से उनका सामना होता तो वे शाब्दिक प्रहार करने से नहीं चूकते थे। उनके अकाट तर्कों के समक्ष ऐसे दोहरे चेहरे वाले पाखण्डी टिक नहीं सकते थे। जोशी जी धर्म के नाम पर पनपने वाले पाखण्ड के भी घोर विरोधी थे।
किन्तु ईश्वर, अवतारों तथा देवी-दुर्गा के प्रति उनकी अनन्य निष्ठा थी। ज्योतिष व लोक-परलोक की घटनाओं पर भी वे विश्वास करते थे। जोशी जी स्वयं हस्तरेखा देखने में निपुण थे। वे साहित्य मनीषी अमृतलाल नागर जी के प्रति भी गुरुवत श्रद्धा भावना रखते थे। एक बार श्री नागर ने पाञ्चजन्य के तत्कालीन सम्पादक श्री भानुप्रताप शुक्ल से भेंटवार्ता में कहा था- “यदि प्रभु श्रीराम जी का मंदिर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर नहीं बनेगा तो कहां बनेगा?” इसके बाद कुछ सेकुलरों ने बावेला मचाया था। जोशी जी ने उस समय उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था- “क्या नागर जी को अपने इष्टदेव श्रीराम की जन्मभूमि के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने से रोका जा सकता है?”
एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी लखनऊ प्रवास पर थे। लखनऊ के विशिष्ट जनों को चाय पर आमंत्रित किया गया था। भानु जी के साथ श्री नागर भी शिविर में उनके दर्शन करने पहुंचे थे।
इसके बाद एक वामपंथी लेखक जोशी जी से मिलने आए तो उन्हें अपने खेमे का समझ लेने के भ्रम में नागर जी के प्रति तल्ख वाक्यों में कह बैठे- “संघ प्रमुख के पास जाने की क्या आवश्यकता थी? श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के समर्थन की क्या आवश्यकता थी। जोशी जी उनके कटु वचन को सहन नहीं कर पाए तथा बोले- “अरे यार, तुम वामपंथी सबको एक लाठी से हांकना चाहते हो। चीन, रूस की तानाशाही यहां कैसे चलाओगे। मैं तुम लोगों के पाखण्डी चेहरे को जानता हूं। … रूस-चीन में असंख्य लोगों को यातनाएं देकर मार डालने वाले रक्त-पिपासुओं के सामने नतमस्तक होते हो, किन्तु यदि अपने देश के किसी बड़े संगठन की समर्पित विभूति के प्रति कोई श्रद्धा व्यक्त करे तो उसके प्रति अपशब्दों का प्रयोग करने की धृष्टता का पाखण्ड करते हो?”
वे समय-समय पर मुस्लिम संकीर्णता व मजहबी कट्टरपन का समर्थन करते हुए हिन्दू साम्प्रदायिकता का विरोध करने वाले कथित सेकुलर दलों को पाखण्डी व दो चेहरे वाला बताकर उन्हें बेनकाब करते रहते थे। एक बार उन्होंने मेरे समक्ष किसी घटना के सिलसिले में वामपंथी लेखकों के सामूहिक वक्तव्य पर हस्ताक्षर कराने आए एक वामपंथी “दूत” से कहा था- “जाकर कह देना- क्या इन लेखकों ने एक बार भी कश्मीर से हिन्दू पंडितों को आतंकित कर भगाने वाली घटनाओं का सामूहिक विरोध करने की पहल की है? क्या शाहबानो के पक्ष में हुए प्रगतिशील निर्णय के समर्थन में कोई वक्तव्य जारी किया है?” जोशी जी मूल्यों पर अडिग रहते थे।
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