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नागालैण्ड में "आजादी" के विद्रोही आंदोलन को खुली छूट

by
Jul 5, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2006 00:00:00

-जयंत

नागालैण्ड में नागा विद्रोही गुट एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की गतिविधियां तेजी से बढ़ती जा रही हैं। इस गुट की न केवल समानांतर सरकार चल रही है बल्कि वह टैक्स के रूप में नागरिकों से भारी मात्रा में पैसा भी वसूल रही है। हद तो तब हो गई जब एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) ने अपने हीब्रोन मुख्यालय पर गत 21 मार्च को 26वां “गणतंत्र दिवस” मनाया। इस विद्रोही गुट की इन गतिविधियों के बारे में राज्य सरकार अनजान नहीं है और कहा तो यहां तक जाता है कि इसे राज्य सरकार की परोक्ष शह मिली हुई है। नागालैण्ड के समाचार पत्र भी बेरोकटोक इस गुट से जुड़ी खबरें प्रमुखता से छापते हैं।

एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) एक आतंकवादी संगठन है जिस पर मणिपुर की तांग्खुल जनजाति का नियंत्रण है। यह गुट एक लम्बे समय से नागालैण्ड और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के नागाबहुल इलाकों को मिलाकर भारत से अलग एक स्वतंत्र ईसाई देश बनाने की मांग करता आ रहा है। इस गुट द्वारा की गई हिंसात्मक कार्रवाइयों में अब तक सैकड़ों सैनिक और नागा तथा गैर नागा नागरिक मारे जा चुके हैं। इस गुट को कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से सहयोग मिल रहा है और देश के कई गैर सरकारी संगठनों का इस गुट के साथ गठजोड़ है।

सवाल उठता है कि यह नागा विद्रोही गुट इतने वर्षों से इस तरह की देशद्रोही गतिविधियां खुलेआम कैसे करता आ रहा है जबकि इसके साथ भारत सरकार ने संघर्ष विराम संधि की हुई है? कौन है जो इस गुट की देश को बांटने वाली कार्रवाइयों को शह दे रहा है? पता चला है कि संघर्षविराम के जो आधारभूत नियम तय हुए हैं उनको लेकर अस्पष्टता की स्थिति है या यूं कहें कि उनमें साफ तौर पर नहीं लिखा गया है कि फलां काम संघर्ष विराम की परिधि में है, फलां काम नहीं। नियमों के इसी धुंधलके का लाभ उठाकर एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के विद्रोही भारतीय अद्र्धसैनिक बलों की वर्दियां पहनकर राज्य के कुछ इलाकों में हथियार सहित बेरोकटोक आते जाते हैं। नागालैण्ड के गृहमंत्री तक हताशा भरे स्वर में कहते हैं कि “दोषपूर्ण” संधि के कारण कानून इस परिस्थिति से निबटने में नाकाम है। उन्हें लगता है कि संघर्ष विराम संधि के नियमों में सुधार किया जाना चाहिए। इन्हीं आधे-अधूरे नियमों के कारण यह विद्रोही गुट खुलेआम अपनी सभाएं, सैन्य परेड और “गणतंत्र दिवस” मनाता है। “ग्रेटर नागालैण्ड” का नारा गूंज रहा है और कोई इसे रोकने वाला नहीं दिखता। स्थानीय मीडिया पर भी इस विद्रोही गुट का ऐसा आतंक है कि उससे जुड़ी हर छोटी-बड़ी खबर छापी जाती है।

पिछले दिनों के नागालैण्ड के समाचार पत्रों पर नजर डालें तो राज्य की बिगड़ती परिस्थिति के बारे में काफी कुछ अंदाजा लग सकता है। 22 मार्च के नागालैण्ड पोस्ट में लिखा है, “राज्य के गृहमंत्री थेनूचो ने माना है कि केन्द्र और एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के बीच हुए संघर्ष विराम करार के मूल नियमों के कुछ अनुच्छेदों की गलत व्याख्या की गई है।” कांग्रेसी विधायक ताका मासा आओ को लिखित जवाब देते हुए थेनूचो ने कहा कि इस अनुच्छेद की गलत व्याख्या के कारण कुछ भूमिगत गुटों के लोग राज्य के कुछ हिस्सों में खुलेआम हथियार सहित घूम रहे हैं और समझौते के कारण कानून इस परिस्थिति से निपटने में नाकाम है। इन नियमों को तुरंत बदलने की जरुरत है। उन्होंने आगे कहा, “नियमों में “अस्पष्टता” के कारण पुलिस के लिए कुछ कर पाना संभव नहीं है।” 9 मार्च के नागालैण्ड पोस्ट में समाचार छपा है कि “एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की संसद “तातार हो हो” का बजट सत्र बुधवार शाम को समाप्त हो गया। जी.पी.आर.एन./एम.आई.पी. अधिकारी ने फोन पर नागालैण्ड पोस्ट को सूचित किया है कि तातार हो हो अध्यक्ष पी.एस. वाइसन ने सदन को अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित करते हुए अगले बजट सत्र तक शुभकामनाएं दीं और सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।”

22 मार्च के नागालैण्ड पोस्ट में पृष्ठ के सबसे ऊपर चार कालम के सचित्र समाचार का शीर्षक है- “एन.एस.सी.एन.- आई.एम. आब्जव्र्स रिपब्लिक डे” (एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) ने गणतंत्र दिवस मनाया)। रपट है, “21 मार्च को हीब्राोन स्थित काउंसिल मुख्यालय में 26वां “गणतंत्र दिवस” मनाते हुए एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) ने एक बार फिर “एकीकरण” और “संप्रभुता” की अपनी मांगों के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाई। संप्रभुता के मुद्दे पर एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) का मत स्पष्ट करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ले. जनरल (से.नि.) वी.एस. एतम ने दृढ़ शब्दों में घोषणा की, “नागाओं की संप्रभुता लोगों में निहित है और एन.एस.सी.एन. नागा संप्रभुता से कभी छल नहीं करेगा।” एतम इस विद्रोही गुट के बड़े नेता माने जाते हैं। एन.पी.एस.एच.आर. के महासचिव नेपूनि पीकू ने विशिष्ट अतिथि के रूप में “स्वाभिमान, शांति और न्याय” के लिए चल रहे नागाओं के आंदोलन के प्रति पूरी मजबूती से खड़े रहने का वायदा किया। उन्होंने कहा, “साथ मिलकर रहने का अधिकार और सभी नागा क्षेत्रों का एकीकरण हमारे साझे प्रयासों में से एक है।” इससे पहले रेवरेन्ड डा. वती ने प्रारंभिक प्रार्थना की। मुख्य अतिथि ने झंडा फहराया और नागा सेना की टुकड़ियों की सलामी ली।”

इसके अगले ही दिन यानी 22 मार्च को एफ.जी.एन. अर्थात “फेडरल गवर्नमेंट आफ नागालैण्ड” (नागालैण्ड की संघीय सरकार) ने अपना “50वां (स्वर्ण जयंती) गणतंत्र दिवस” मनाया। 23 मार्च को नागालैण्ड पोस्ट ने पांच कालम का सचित्र समाचार छापा। रपट में छपा है, “बुधवार को चेदेमा गांव शांति शिविर में हजारों लोगों की उपस्थिति में नागालैण्ड संघीय सरकार ने अपना “50वां गणतंत्र दिवस” उमंग और उत्साह से मनाया और नागा आंदोलन के प्रति अपनी सद्भावनाएं व्यक्त कीं। दक्षिण नागाओं (मणिपुर राज्य) सहित राज्य की सभी जनजातियों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में यह उत्सव सम्पन्न हुआ। एफ.जी.एन. केदहगे (राष्ट्रपति) जनरल (से.नि.) विभाली मेथा ने इस अवसर पर नागा राष्ट्र को अपने सम्बोधन में उल्लेख किया कि एफ.जी.एन. का मुख्य उद्देश्य है नागाओं के विभिन्न क्षेत्रों का एकीकरण, इसकी सम्पन्न संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण और प्रसार तथा राष्ट्र के रूप में स्वतंत्र जीवन। इससे पूर्व किलो किलोन्सर शेवोनहू केहो के अध्यक्षता में पास्टर निविजोली चिलाई ने बाइबिल पाठ किया, रेवरेण्ड वेवोजो खामो ने शुभकामनाएं दीं।”

5 अप्रैल के नागालैण्ड पोस्ट में भीतर के पृष्ठ में सबसे ऊपर चार कालम के समाचार में लिखा है- “एन.एस.सी.एन. (आई.एस.) के सामूहिक नेतृत्व के प्रतिनिधि वी.एस. एतम ने कहा कि सभी नागा क्षेत्रों का एकीकरण नागाओं का स्वयंसिद्ध अधिकार है जिसके बिना लंबे समय से जारी भारत-नागा राजनीतिक मुद्दे का कोई समाधान नहीं हो सकता। चार क्षेत्रीय प्रशासनों- चांग, सांग्तम, खियामनिउनगन और चिमचूंगर द्वारा आयोजित पहले “राजनीतिक चेतना अभियान” को संबोधित करते हुए एतम ने दोहराया कि लम्बे खिंचते आ रहे भारत-नागा राजनीतिक मुद्दे के समाधान के लिए सभी नागा क्षेत्रों का एकीकरण महत्वपूर्ण है।… सवाल-जवाब के दौरान कुछ लोगों द्वारा नागालैण्ड को “नागालिम” में बदलने संबंधी मुद्दा उठाए जाने पर एतम ने कहा कि “लिम” शब्द आओ नागा जनजाति का है और यह पूरे नागा क्षेत्रों को इंगित करता है जबकि नागालैण्ड सभी नागा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। एतम ने कहा, “16 सूत्री समझौते के तहत नागालैण्ड भारतीय संघ का 16वां राज्य बनाया गया था और भारतीय संविधान में यह पहले से ही दर्ज है कि यह सभी नागा क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। वर्तमान माहौल और चलन के कारण और बेहतर भविष्य के लिए बदलाव जरूरी है।”

नागालैण्ड में किस तरह एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की समानांतर सरकार चल रही है और किस तरह इसके “प्रवेश पत्र” और “पहचान पत्र” आदि बाकायदा खुलेआम बांटे जा रहे हैं, “सरकारी” मुहरें लगाई जा रही हैं, यह अब कोई छुपा रहस्य नहीं रहा है। नागालैण्ड की नीफ्यु रियो सरकार, जिसके मंत्रिमण्डल में सात भाजपा विधायक शामिल हैं, के खुले समर्थन से एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) राज्य में जबरदस्त वसूली अभियान चला रहा है। टैक्स वसूला जा रहा है। रियो सरकार कथित रूप से कानूनी और गैर कानूनी तौर पर एकमुश्त राशि इस गुट को देती है। गैर नागा व्यापारियों, ठेकेदारों और सरकारी कर्मचारियों से चिट्ठी भेजकर उगाही की जाती है। नागा व्यापारी भी इससे बचे नहीं हैं। स्थानीय मीडिया में इसकी खूब शिकायतें छपती हैं पर रियो सरकार उस ओर से आंख-कान बंद किए हुए है। लोगों पर अत्याचार और उनकी हत्याओं से मन नहीं भरा तो एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) ने गैर नागा लोगों के लिए “प्रवेश पत्र” जारी करना शुरू कर दिया है। मजदूर, व्यापारी, ठेकेदार, राज्य और केन्द्र सरकार के कर्मचारी, जो गैर नागा हैं, के लिए अब “प्रवेश पत्र” लेना जरूरी कर दिया गया है। धमकी दी गई है कि अगर कोई भी एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के “प्रवेश पत्र” के बिना पाया गया तो कड़ी सजा भुगतनी पड़ेगी। “प्रवेश पत्र” की कीमत, अगर अपनी फोटो साथ दी जाती है तो 160 रुपए और फोटो नहीं है तो 190 रुपए रखी गई है। इस “प्रवेश पत्र” में लिखे नियमों के अनुसार, “सरकार (एन.एस.सी.एन. (आई.एम./जी.आर.पी.एन.) को अधिकार है कि कोई भी व्यक्ति अगर देशहित के विरुद्ध कोई कार्य करते पकड़ा जाता है तो वह उसका “प्रवेश पत्र” निरस्त कर सकती है। यह “प्रवेश पत्र” हर समय अपने साथ रखना होगा। यह अगर खो जाए तो सात दिन के भीतर सूचित किया जाए। जरुरत के अनुसार प्रवेश पत्र के कायदे-कानूनों में समय-समय पर सुधार किया जाएगा।”

नागा विद्रोही गुट का कहना है कि ऐसा “अवैध घुसपैठ” रोकने के लिए किया जा रहा है। लेकिन यह कोई छुपा रहस्य नहीं है कि एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) और इस्लामी जिहादी संगठनों के बीच सांठ-गांठ है। इसी कारण इस विद्रोही गुट का कोई भी बड़ा नेता मुस्लिम घुसपैठ के खिलाफ कभी नहीं बोलता। वे हमेशा हिन्दुओं को ही परेशान करते हैं। “प्रवेश पत्र” दो बातें साफ करता है। एक, नागालैण्ड में एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) की समानांतर सरकार चल रही है और दो, इसके जरिए वह बड़ी मात्रा में धन वसूल रहा है।

7 मार्च और 10 मार्च 2006 के नागालैण्ड पोस्ट में “प्रवेश पत्र” और “पहचान पत्र” के बारे में खबरें छपी हैं। कहा गया है कि नागा के गैर नागा लोग इस नए फरमान से आहत हैं पर मुख्यमंत्री रियो इस पूरे मामले को अनदेखा कर रहे हैं। दीमापुर में किराने की दुकान करने वाले असम के व्यापारी बिनोय दास कहते हैं, “यह सही नहीं है। एन.एस.सी.एन. (आई.एम.) के छात्रों को पहचान पत्र जारी करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि हमारे पास सरकार द्वारा जारी “इनरलाइन परमिट” है जो हमें यहां के कानून के तहत रहने की छूट देता है। इस बार-बार के अपमान को सहने की बजाय मैं दीमापुर छोड़कर अपने राज्य असम लौट जाना बेहतर समझता हूं।” बिनोय की पीड़ा उस अकेले व्यक्ति की पीड़ा नहीं है बल्कि हजारों लाखों लोगों की पीड़ा है। नागालैण्ड देश से कट जाए, ऐसा कोई सच्चा देशवासी नहीं चाहता। लेकिन न जाने क्यों केन्द्र और राज्य की सरकार इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर न केवल चुप्पी साधे बैठी है बल्कि एक प्रकार से इसे शह ही दे रही है।

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