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पाठकीय

by
Jul 5, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 9 अप्रैल, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि.

वार

ई. सन् 2006

वैशाख शुक्ल 10

रवि

7 मई

,, 11

सोम

8 ,,

,, 11

मंगल

9 ,,

(मोहिनी एकादशी व्रत)

,, 12

बुध

10 ,,

(प्रदोष व्रत)

,, 13

गुरु

11 ,,

,, 14

शुक्र

12 ,,

वैशाख पूर्णिमा

शनि

13 “”

(वैशाख स्नान समाप्त)

कहीं कश्मीर न बन जाए असम!

असम चुनाव से सम्बंधित तरुण विजय की रपट “अंधेरे में आशा तलाशता असम” पढ़ी। असम का दर्द कश्मीर के दर्द से और गहरा होता गया, किन्तु शासक हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहे। असम की यह स्थिति एका-दो दिन में नहीं हुई है। वहां के पूर्व राज्यपाल ले. जनरल (से.नि.) एस.के. सिन्हा ने कई वर्ष पूर्व एक महत्वपूर्ण रपट केन्द्र सरकार को भेजी थी। गुप्तचर संस्थाएं भी समय-समय पर वहां चल रहीं भारत-विरोधी गतिविधियों की विस्तृत जानकारी भेजती रही हैं। किन्तु इन सारी रपटों को सरकार शायद कूड़ेदान में फेंक देती है। इस हालत में मर्ज तो बढ़ेगा ही।

-राजेश कुमार

1/11552/ बी, सुभाष पार्क एक्स.

नवीन शाहदरा (दिल्ली)

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह की नजर में बंगलादेशी कट्टरपंथियों द्वारा अपमानित, प्रताड़ित होकर भारत आने वाले बंगलादेशी हिन्दू भी घुसपैठिए हैं। कांग्रेस अपने स्थापना काल से ही वोट बैंक के लिए सदैव हिन्दू हितों की बलि देती रही है। 1920 में खिलाफत आन्दोलन में कांग्रेस की मुस्लिम-परस्ती के कारण पूरे देश में मुसलमानों ने हिन्दुओं पर आक्रमण किए थे। केवल मोपला (केरल) में 1,200 हिन्दू मारे गए थे। लगभग 20 हजार हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया गया था। किन्तु उस समय कांग्रेसी रपट में कहा गया था कि केवल 10 लोग ही मरे। भारत-विभाजन के समय पाकिस्तान से पलायन कर आने वाले हिन्दुओं ने दिल्ली में वीरान पड़े कुछ मुस्लिम घरों एवं मस्जिदों में शरण ली थी। किन्तु कांग्रेसी नेताओं के इशारे पर उन शरणार्थियों को उन घरों से बाहर करके फुटपाथ पर रहने के लिए मजबूर किया गया था। कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की एक विशाल श्रृंखला है, लेकिन यह तभी दिखाई देगी, जब हम अपनी आंखों से पंथनिरपेक्षता की पट्टी हटा देंगे।

-मोहित कुमार मंगलम्

ग्राम. कुशी, पो.-कांटी, मुजफ्फरपुर (बिहार)

सजग रहो

दिशादर्शन के अन्तर्गत शंकर शरण का आलेख “राष्ट्रवाद बनाम इस्लाम का समीकरण” आने वाले खतरों के प्रति हिन्दुओं को सावधान करता है। लेखक ने अकाट तथ्यों के साथ बताया है कि किस प्रकार के खतरे आने वाले हैं। मुस्लिम समाज न तो परिवार नियोजन कार्यक्रम को अपनाता है और न ही वह समान नागरिक संहिता के पक्ष में है। इस कारण पूरे देश में कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। हिन्दुओं को अपने हितों के लिए सजग रहना होगा।

-अंजेश मिश्रा

हैदराबाद (आन्ध्र प्रदेश)

दिशादर्शन में एक वर्ग विशेष की मानसिकता का वास्तविक चित्रण कर राष्ट्रवादियों की आंखें खोलने का प्रयास किया गया है। किन्तु दिक्कत यह है कि राष्ट्रवादियों की आंखें जल्दी खुलती नहीं हैं। डा. बाबा साहब अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक “पाकिस्तान ऑर पार्टिशन ऑफ इंडिया” के माध्यम से तत्कालीन नेताओं की आंखें खोलने का भरसक प्रयास किया था। पर हुआ क्या? शायद हम अभी भी वास्तविकता से दूर रहना चाहते हैं।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरीतलैया,

कोडरमा (झारखण्ड)

ये कम्युनिस्ट जवाब दें

मंथन के अंतर्गत देवेन्द्र स्वरूप का लेख “माक्र्सवादी इतिहासकार हिन्दुत्व विरोधी ही क्यों?” वामपंथियों की दोमुंही नीतियों का खुलासा करता है। क्या माक्र्सवादी इतिहासकार कभी यह बताएंगे कि आखिर जिस रूस को कम्युनिस्टों का स्वर्ग कहा जाता था, वहां कम्युनिस्ट पार्टी को अवैध घोषित कर उस पर प्रतिबंध क्यों लगा दिया गया? क्यों रूबल (रूसी मुद्रा) रद्दी के भाव में बिका तथा वहां दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतें 2-3 सौ गुणा ज्यादा बढ़ गईं? क्यों कम्युनिज्म की महानता एवं सिद्धान्तों को बताने वाले भारी-भरकम ग्रंथों को जलाया गया? क्यों वहां लेनिन की शव-पूजा को बन्द करके उसे दफनाने की मांग उठ रही है? आखिर क्यों माक्र्सवादी झंडा थामने वाला चीन महज 5 दशक भी कम्युनिज्म का बोझ नहीं उठा सका और वामपंथी चोला उतारकर अमरीकी अर्थनीति के सिद्धान्त पर चल पड़ा? माक्र्सवादी इतिहासकार इन प्रश्नों का उत्तर शायद ही दें। क्योंकि ये लोग तो माक्र्स प्रदत्त अफीम के नशे में चूर होकर उस विचार को प्रचारित करने में लगे हैं, जिसने रूस को बर्बाद कर दिया।

-अभिजीत ” प्रिंस”

इन्द्रप्रस्थ, मझौलिया, मुजफ्फरपुर (बिहार)

आनंद की अनुभूति

तरुण विजय द्वारा लिखे जा रहे शक्तिपीठ हिंगलाज के यात्रा-वृत्तान्तों ने मेरे जैसे अनेक पाठकों की जिज्ञासाएं शान्त की हैं। हमारे यहां (ब्राज) के गीतों में देवी हिंगलाज का विशद् विवरण एक ऐसी देवी के रूप में मिलता है जो भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित हैं। इस तरह के गवेषणात्मक लेख लिखकर वे लोगों को धार्मिक एवं ऐतिहासिक ज्ञान भी प्रदान कर रहे हैं। इस प्रकार की सामग्री को पढ़ने में आनंद आता है।

-कमांडेन्ट एस.सी. चूड़ामणि (से.नि.)

संगठन मंत्री, पूर्व सैनिक सेवा परिषद्, ब्राज प्रान्त

78, रामनगर, मथुरा (उ.प्र.)

हिंगलाज माता का जीवंत वर्णन पढ़कर मन प्रसन्न हो जाता है, किन्तु शायद लेखक भी पाकिस्तानी छल-प्रपंच में उलझ गए। पाकिस्तान के हिन्दुओं का यह कथन कि “मुशर्रफ उनके सर्वश्रेष्ठ खैरख्वाह हैं” वस्तुत: उनकी भयाक्रांत अवस्था का प्रतिफल है। अन्यथा मुशर्रफ जैसे शासक के बारे में वे ऐसा कतई नहीं कहते। आउटलुक जैसी सेकुलर पत्रिका ने भी पाकिस्तान में हिन्दुओं की दुरावस्था पर मार्मिक रपट प्रकाशित की थी। मैंने सुना है कि पाकिस्तानी शासकों द्वारा वहां के अल्पसंख्यक समुदाय को यह चेतावनी दी जाती है कि यदि उन्होंने विदेशियों के सामने अपनी व्यथा-कथा व्यक्त की तो उनका जीना दूभर हो जाएगा।

-ब्राजमोहन

22, साईंनाथ कालोनी, इन्दौर (म.प्र.)

सिर्फ दिखावा

“किसको लाभ, कितना लाभ” शीर्षक के अन्तर्गत लाभ के पद पर कुछ नेताओं के विचार पढ़े। संविधान के अनुच्छेद 102(1) में स्पष्ट है कि संसद या विधान मण्डल का सदस्य होते हुए कोई लाभ का पद ग्रहण नहीं कर सकता है। तमिलनाडु से राज्यसभा सदस्य रहे मोहन रंगन का उदाहरण ले सकते हैं। तमिलनाडु की तत्कालीन सरकार ने उन्हें दिल्ली में अपना विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किया था। वे तमिलनाडु भवन में रहते थे। उन्हें गाड़ी, टेलिफोन आदि की सुविधाएं भी प्राप्त थीं। जब उनका मामला उठा तो उन्हें 1982 में राज्यसभा की सदस्यता छोड़नी पड़ी थी। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो साफ हो जाता है कि सोनिया गांधी ने कोई त्याग नहीं किया, बल्कि मजबूरी में इस्तीफा दिया था। अगर वह इस्तीफा नहीं देतीं तो चुनाव आयोग को उनकी सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश करनी पड़ती। यानी उन्होंने अपनी गलती छिपाने के लिए यह दिखावा किया था।

-राकेश गिरि

रुड़की, हरिद्वार (उत्तराञ्चल)

मंदिर नहीं, गोशाला बनाएं

इस देश के हर गली-मोहल्ले में मंदिर हैं, गांव-गांव में मंदिर हैं। कुछ धार्मिक नगरों में तो असंख्य भव्य मंदिर हैं। नित नए मंदिर बनते भी चले जा रहे हैं। इन मंदिरों से हिन्दू समाज का हित हुआ है, उसका यश बढ़ा है। समाज में धार्मिक वातावरण बनता है। इस सबसे इनकार नहीं किया जा सकता, पर कहते हैं, अति सर्वत्र वर्जयेत। बस बहुत हो चुका। अब उन पर भी ध्यान दें जिन्हें हम हिन्दू माता के समान पूजते हैं। आज गली-चौराहे पर पड़ी गंदगी के ढेर पर गाय-बैल मुंह मारते मिल जाएंगे। गोवध के कारण पशुधन घटता जा रहा है। हम पशु तस्करों द्वारा वध के लिए ले जा रहे गोवंश के पकड़े जाने पर शोर तो बहुत मचाते हैं पर अपने गांव-मोहल्ले में गोवंश के संरक्षण और संवर्धन के लिए कुछ नहीं करते। इसलिए आज आवश्यकता है कि नए मंदिर नहीं, नई गोशालाएं बनाएं। इससे गोमाता भी प्रसन्न होंगी और भारत का अर्थतंत्र भी सुदृढ़ होगा।

-धर्मवीर

102, जे.पी. नगर, संगरूर (पंजाब)

पुरस्कृत पत्र

सलमान के पीछे कौन?

जोधपुर की एक अदालत ने अभिनेता सलमान खान को दो काले हिरणों की हत्या का दोषी पाया और उन्हें 5 वर्ष की सश्रम कारावास की सजा भी सुनाई गई। हालांकि अभी वे जमानत पर हैं। कभी फिल्मों के अभिनेता समाज के लिए आदर्श हुआ करते थे। धर्मेन्द्र तथा जितेन्द्र के समय तक सब ठीक-ठाक था। समय बदला। फिल्मी दुनिया में कई सितारे उभरे। फिल्मी चमक-दमक से ये सितारे आपे से बाहर होने लगे। वर्षों पुराना एक मामला है। अभिनेता राजेश खन्ना बंगलौर में गाड़ी खड़ी करने की जगह के लिए कुछ लोगों से उलझे थे। इसके बाद कई अभिनेताओं में नैतिक मूल्यों की गिरावट देखी गई। अब सलमान खान उन्हीं अभिनेताओं की श्रेणी में खड़े हैं। 1999 में सलमान ने प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सुभाष घई के साथ खुलकर बदतमीजी की थी। उस समय उन्हें किसी ने कुछ नहीं कहा। इसके बाद उन्होंने कई ऐसी घटनाएं कीं, जिनके कारण समाज में उनकी छवि धूमिल हुई। कुछ वर्ष पहले उन्होंने प्रेस छायाकारों को पीटा, ऐश्वर्या के साथ दुव्र्यवहार किया, शाहरुख खान से टकराया, सड़क किनारे सो रहे मजदूरों को तेज रफ्तार गाड़ी से रौंद डाला, तो कभी विवेक ओबराय को धमकाया। हद तो तब हो गई जब एक पार्टी में ऋषि कपूर के पुत्र रणवीर के साथ सलमान ने मार-पीट की। रणवीर की गलती सिर्फ यह थी कि उन्होंने सलमान जैसी कमीज पहन रखी थी। फिल्म उद्योग अब मनोज कुमार का “भारत” नहीं रहा। वहां डेविड धवन, महेश भट्ट जैसों की स्वेच्छाचारिता चलने लगी है। ऐसे ही लोगों की भीड़ सलमान के साथ खड़ी है और यह इसलिए खड़ी है, क्योंकि उन पर करोड़ों रुपए का दांव लगा है।

-ज्ञानचन्द प्रसाद मेहता

उत्तरी शिवपुरी, हजारीबाग (झारखण्ड)

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.

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