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ढाका के गुनाह और एक रीढ़हीन सरकारबंगलादेश की भारत घातक हरकतें कब तक सहन की जाएंगी?भारत के पड़ोसी देशों ने भारत के सीमावर्ती भूभाग को अपनी चरागाह मान लिया है। 53,000 वर्ग कि.मी. जमीन पहले ही चीन के कब्जे में है। कश्मीर के एक हिस्से का नाम ही “स्थाई” रूप से “पाक अधिकृत” पड़ गया है। लद्दाख के ऊपर का कश्मीरी क्षेत्र पाकिस्तान ने भेंट स्वरूप चीन को दे दिया है और अब एक नए घटनाक्रम में भारत में लगातार अवैध घुसपैठिए भेजने वाले बंगलादेश ने भी भारत की लगभग 500 एकड़ जमीन अपने कब्जे में ले ली है। यह कोई आरोप नहीं है वरन् बाकायदा असम विधानसभा में गत 26 जुलाई को असम के राजस्व मंत्री श्री भूमिधर बर्मन की स्वीकारोक्ति है। श्री बर्मन ने एक निर्दलीय विधायक श्री प्रणव कलिता के प्रश्न पर उपरोक्त जानकारी विधानसभा के समक्ष प्रस्तुत की है। श्री बर्मन द्वारा प्रस्तुत किए गए विवरण के अनुसार, “राज्य के धुबरी और करीमगंज जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में 499.83 एकड़ जमीन बंगलादेश ने अपने कब्जे में ले ली है। इस क्षेत्र में अभी बाड़ लगाने का काम नहीं हो सका है और सीमा को इंगित करने वाले जो स्तंभ लगे थे, इन्हें भी अज्ञात बंगलादेशियों ने उखाड़कर गायब कर दिया है।” पूरे मामले पर गंभीर चिंता जताते हुए श्री बर्मन ने बताया कि बंगलादेश ने पालाताल चाय बागान की 299.04 एकड़ जमीन तथा प्रमोद नगर चाय बागान की 11.73 एकड़ जमीन अपने कब्जे में कर ली है। ये दोनों इलाके करीमगंज जिले में हैं जबकि धुबरी जिले में मनकधार इलाके में 189.06 एकड़ जमीन पर बंगलादेश ने कब्जा कर लिया है। श्री बर्मन के अनुसार इस सारे भूभागों के समस्त राजस्व एवं प्रशासकीय अभिलेख राज्य सरकार के पास हैं लेकिन अब इन पर खेती का काम और संपूर्ण नियंत्रण बंगलादेश सरकार का हो गया है। असम सरकार ने पूरे मामले से केन्द्र सरकार को अवगत करा दिया है और केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे पर बंगलादेश सरकार के साथ गठित भारत-बंगलादेश संयुक्त सीमा आयोग की बैठक के समय बातचीत भी की है। दूसरी तरफ अंग्रेजी दैनिक पायनियर द्वारा इस मुद्दे को लगातार मुख पृष्ठ पर छापे जाने के बाद यह मामला संसद में भी गरमा गया। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 27 जुलाई को इस सन्दर्भ में स्थानीय जांच के आदेश दिए हैं। केन्द्रीय गृह सचिव श्री वी.के. दुग्गल ने सीमा प्रबंधन विभाग के सचिव श्री बी.एस. लाली को सीमा क्षेत्र पर जाकर निरीक्षण करने एवं रपट प्रस्तुत करने के आदेश जारी किए हैं। असम सरकार और सीमा सुरक्षा बल से भी रपट मांगी गई है। इस कार्रवाई के द्वारा गृह मंत्रालय ने यद्यपि यह जताने का प्रयास किया है कि वह मामले को लेकर गंभीर है किन्तु यहां सवाल उठता है कि क्या सरकार सचमुच वस्तुस्थिति से अवगत नहीं है, या जानबूझकर मामले को लटकाया जा रहा है?8
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