|
सुरक्षा बनी मजाकलीग की स्थापना से बम विस्फोट तकमुम्बई के जागरूक मुस्लिम नेताजिहादी जड़ों पर गौर करेंमुजफ्फर हुसैनमुम्बई महानगर पालिका में जब 11 जुलाई के बम कांड की निंदा हुई उस समय यह वाक्य पुन: सुनने को मिला कि सभी मुसलमान आतंकवादी नहीं होते हैं, लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान क्यों होते हैं? भले ही वैश्विक संदर्भ में यह सही न हो, पर भारतीय संदर्भ में यह कथन बहुत हद तक सही है। हालांकि आतंकवाद को किसी धर्म या मजहब से नहीं जोड़ा जा सकता और न ही उस समाज के सभी लोगों पर यह टिप्पणी सही साबित होती है। लेकिन यदि एक समाज बार-बार इस प्रकार की हरकतों को दोहराता है तो फिर उसे चरित्र की संज्ञा दे दी जाती है। इस्लाम को आतंकवादी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि कोई भी मजहब या धर्म अहिंसा और प्रेम के बिना न तो टिक सकता है और न ही प्रचारित हो सकता है। 1400 साल से इस्लाम विद्यमान है। यही नहीं आज वह संख्या की दृष्टि से विश्व का दूसरे नम्बर का मजहब है। इसलिए मुसलमान के दोष को इस्लाम के दोष की संज्ञा नहीं दी जा सकती।यदि ऐसा कुछ है तो फिर मुसलमान आतंकवादी क्यों कहलाता है? इसलिए कि उसने अपने हमलों को जिहाद की संज्ञा दी। अपनी जीत को मजहब की जीत कहा और स्वयं के लड़ाकू तथा कबीलाई चरित्र को इस्लामी चरित्र बताने की कोशिश की। किसी एक समाज का स्वभाव जब हर परिस्थिति में एक जैसा रहता है तब वही उसका चरित्र बन जाता है। इसलिए मुसलमानों की ओर से होने वाली हिंसा से त्रस्त होकर देश और दुनिया ने उन्हें आतंकवादी कहना शुरू कर दिया। मुम्बई के मुसलमानों का पिछला इतिहास उठाकर देखें तो कोई भी यह कह देगा कि वे हमेशा अलगाववादी और मतान्ध रहे हैं।1993 के मुम्बई बम विस्फोटों के बाद जिहादी आतंकवाद सारे देश में फैल गया है। ऐसा लगता है कि मुम्बई आतंकवादियों का केन्द्र बन गया है। श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के बाद पता लगा कि इनमें दाऊद जैसे अपराधियों का हाथ है। दाऊद मुम्बई से फरार हो गया लेकिन उसकी टोली के लोग यहां यह काम करते रहे। बाद में दाऊद गिरोह के लोग पाकिस्तान में बैठे आतंकवादियों से मिल गए। कश्मीर में पाकिस्तान जिन आतंकवादियों को प्रशिक्षित कर रहा था, उन्हें भारत के भीतरी भागों में आधार मिल गया।भारत के मजहबी उन्मादी युवकों को “सिमी” (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) जैसे संगठनों ने जोड़ा, जिन्होंने दो प्रकार के काम किए। एक तो यहां के युवकों को प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान भेजते रहे और दूसरी तरफ आतंकवादियों के इशारे पर भारत में ही तोड़ फोड़ और बम विस्फोट की कार्यवाही करते रहे। रघुनाथ मंदिर, अक्षरधाम, संसद और अयोध्या तक वे अपने उद्देश्यों में सफल हुए लेकिन हर क्षण मुम्बई उनको याद रहा। इसलिए घाटकोपर, विलेपार्ले से लेकर अनेक स्थानों तक वे इस प्रकार की कार्यवाही करते रहे। 11 जुलाई को फिर मुम्बई निशाना बना। सात बम धमाके कर उन्होंने सारे देश को हिला दिया।प्रारम्भ से ही मुम्बई इन अपराधियों और अलगाववादियों का मुख्य केन्द्र रहा है। पाकिस्तान का विचार भले ही लंदन के रिट्ज होटल में उभरा हो और पाकिस्तान का प्रस्ताव लाहोैर में पारित हुआ हो लेकिन “पाकिस्तान जिंदाबाद” का नारा तो सर्वप्रथम जोगेश्वरी के इस्लामिया युसूफ कालेज में ही लगा। जिन्ना को उस दिन अहसास हो गया कि मजहबी उन्माद से भरे बिना मुसलमानों का नया देश नहीं बन सकता। मुस्लिम लीग को भरपूर पैसा मुम्बई में व्यापारियों और मजहबी नेताओं ने ही दिया। अंतरिम सरकार से पूर्व हुए चुनाव में मुम्बई के मोहम्मद अली रोड, भेंडी बाजार, डूंगरी और जे.जे. अस्पताल क्षेत्र को मिलाकर जो मुस्लिम आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र था, उसमें कांग्रेस के उम्मीदवार हुसैन भाई लालजी, मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना के सामने बुरी तरह हार गए। जिन्ना का सम्पूर्ण जीवन मुम्बई में व्यतीत हुआ। उनका पूरा परिवार सैम्युल स्ट्रीट में वर्षों तक रहा। उनके माउंट प्लेजेंट रोड वाले बंगले में गांधी-जिन्ना ऐतिहासिक वार्ता 21 दिन तक चली, जो बाद में असफल हो गई।उन दिनों गुजरात और महाराष्ट्र संयुक्त मुम्बई के नाम से जाने जाते थे। गुजराती मुस्लिम काफी धनाढ थे इसलिए उनका पैसा सबसे अधिक लीग को मिला। आगा खान जैसे मजहबी नेता ने पाकिस्तान के लिए अपना खजाना खोल दिया। मुम्बई में चूंकि मुसलमानों की विशाल अचल सम्पत्ति थी इसलिए उनके मजहबी और राजनीतिक नेताओं ने उनसे यह कह दिया कि वे भारत न छोड़ें। उनके अनुयाइयों ने उनके निर्देशों का पालन किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद केरल के पश्चात यदि मुस्लिम लीग कहीं पुनरुज्जीवित हुई तो वह मुम्बई ही था। मुम्बई महानगर पालिका तक में लीग ने कई बार सीटें जीती हैं। आज जो समाजवादी पार्टी है, वास्तव में वह कल की लीग ही लगती है।पाकिस्तान बन जाने के पश्चात मुम्बई में उत्तर भारतीय मुस्लिमों का बड़ी संख्या में आगमन हुआ। अन्य कार्यों के साथ उन्होंने भंगार (कबाड़ खरीदने) के धंधे में करोड़ों कमाए, जिसके परिणामस्वरूप यहां उत्तर भारतीय मुस्लिमों का प्रभाव बढ़ता चला गया। इन उत्तर भारतीयों के कारण मराठी संस्कृति के कोंकणी मुसलमान गौण हो गए और उत्तर प्रदेश तथा बिहार से आए लोग मुसलमानों के नेता बन गए। गुजरात बन जाने से गुजराती मुस्लिम नेता गुजरात पलायन कर गए। इस प्रकार हिन्दुस्थानियत के प्रवक्ता मुस्लिमों का मुम्बई में अभाव होता चला गया। उनके स्थान पर वे राजनीति करने लगे जो कल तक पाकिस्तान के समर्थक थे। उत्तर भारतीय प्रभाव उस समय अधिक घातक हो गया जब मदरसों से निकले मौलाना और मुल्ला-मौलवी मुम्बई आने लगे। उधर देवबंद वालों ने तब्लीग का सिलसिला शुरू करके कट्टरवाद को मजबूत बना दिया। विदेश से जमातें आने लगीं। वीसा केवल मुम्बई तक का होता था लेकिन वे सारे देश में घूमते थे। आज के मुम्बई में न तो कोंकण के मुसलमानों का और न ही गुजरात अथवा दक्षिण के मुसलमानों का कोई प्रभाव दिखाई पड़ता है। मुम्बई के फिल्म उद्योग में मुसलमानों का अपना वर्चस्व था। लेकिन ज्योंही तस्कर हाजी मस्तान का पैसा फिल्म उद्योग में लगा-उसका चेहरा ही बदल गया। अभिनेता और अभिनेत्रियां करोड़ों रुपए लेने लगे। जो फिल्में लाखों में बन जाती थीं, करोड़ों की हदें पार कर गईं। काला धन इस क्षेत्र में आते ही माफियाओं की बन आई।मध्य एशिया में कमाए गए धन से कोई सकारात्मक आन्दोलन तो मुस्लिमों में नहीं जन्मा, इसके विपरीत साम्प्रदायिकता की राजनीति दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ती चली गई। मुस्लिम धन्ना सेठों ने अपनी कमाई के लिए कौम के एक बड़े भाग को अपराध और आतंकवाद की खाई में धकेल दिया। पाकिस्तान क्यों टूटा? फिलिस्तीन क्यों सिकुड़ता जा रहा है? इराक और अफगानिस्तान क्यों बर्बाद हो गए? विश्व में सबसे अधिक शरणार्थी किस समाज के हैं? सबसे कम पढ़े लिखे कौन हैं? यदि इन सवालों के उत्तर पाने के लिए आत्ममंथन करेंगे तो मुस्लिम समाज को समझ में आ जाएगा कि आतंकवादी बनकर इन समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता है। मुम्बई के जागरूक मुस्लिम नेता इन तथ्यों पर विचार करें और पता लगाएं कि इसकी जड़ें किस धरती में धंसी हुई हैं।6
टिप्पणियाँ