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श्रीलंका में अशोक वाटिका का जीर्णोद्धार<p style=fon

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Jun 8, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 Jun 2006 00:00:00

श्रीलंका में अशोक वाटिका का जीर्णोद्धार

-राकेश सैन

अशोक कैंथ के प्रयास रंग लाए

चित्रकार द्वारा बनायी अशोक वाटिका की एक काल्पनिक झांकी

और यह है श्रीलंका के सीता एलिया गांव में अशोक वाटिका का बाहरी दृश्य

मंदिर में जीर्णोद्धार कार्य चल रहा है

मान्यता के अनुसार पौराणिक काल का अशोक वृक्ष (दाएं) शिला के पास बहती जलधारा और श्री हनुमान के पदचिह्न

मंदिर की गुफा में माता सीता, भगवान राम, लक्ष्मण, हनुमान और जटायु की प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन

जिस तरह पवनपुत्र हनुमान को माता सीता जी की खोज-खबर लाने के लिए सात योजन समुद्र लांघना पड़ा और राक्षसों से लोहा लेना पड़ा था, ठीक उसी प्रकार श्रीलंका स्थित माता सीता जी स्मृति स्थली को विधर्मियों से मुक्त करवाने के लिए पंजाब के धर्मनिष्ठ पुत्र श्री अशोक कैंथ को अनेक बाधाओं को लांघना पड़ा। उनके प्रयासों व श्रीलंका सरकार के सहयोग से आज रावण की अशोक वाटिका सनातनधर्मियों के अधिकार क्षेत्र में है। वहां स्थित प्राचीन मंदिर के पुनरुद्वार का काम भी शुरू हो चुका है। अब तक प्रचार से दूर चुपचाप तरीके से अशोक वाटिका मुक्ति के कार्य में लगे श्री कैंथ ने पहली बार मीडिया के सामने इसका खुलासा किया ताकि अभी तक लगभग गुमनाम रहे इस तीर्थ का पुण्य दुनिया के लोग भी उठा सकें। अमरीका की अंतरिक्ष एजेंसी “नासा” द्वारा खोजे गए राम सेतु के बाद अब श्री कैंथ द्वारा खोजे गए साक्ष्यों से रामायण की प्रमाणिकता को और बल मिला है।

उल्लेखनीय है कि श्रीलंका स्थित अशोक वाटिका वह तीर्थस्थान है जहां पर हरण के बाद लंकापति रावण ने माता सीता को बंदी बनाकर रखा था। हर्ष की बात है कि यह स्थल आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है और यहां माता सीता के अतिरिक्त महाबली हनुमान द्वारा की गई लीलाओं के कई चिन्ह भी मौजूद हैं। इस स्थल के बारे में स्थानीय निवासियों के अतिरिक्त बहुत कम लोग इसके बारे में जानकारी रखते हैं।

पंजाब में फगवाड़ा नगर के पास छोटे से कस्बे बंगा के निवासी श्री अशोक कैंथ लगभग 15 साल पहले कुवैत गए और वहां न्याय मंत्रालय के तहत इलेक्ट्रिक सुपरवाइजर की नौकरी की। नवम्बर 2004 में वह कुवैत से भारत पहुंचे। वे कुछ दिनों के लिए बीच में श्रीलंका में भी रुके थे। यहां उनके मन में विचार कौंधा कि हो न हो यह श्रीलंका वही रावण की लंका है जिसका वर्णन रामायण में किया गया है। उनमें रामायणकालीन जानकारियां व स्थल खोजने की जिज्ञासा पैदा हुई। वे कोलंबो स्थित नटराजन मंदिर के पुजारी स्वामी रामटीक से मिले और उन्होंने माता सीता जी के चरणों से पावन हुई अशोक वाटिका व अन्य पौराणिक स्थलों की चर्चा की। स्वामी जी ने उनको अशोक वाटिका के बारे में बताया। उसके बाद श्री कैंथ अशोक वाटिका के बारे में अधिक जानने के लिए लगभग ग्यारह बार श्रीलंका गए और आखिरकार उस जगह पहुंच ही गए जहां राक्षसी त्रिजटा ने माता सीता की धर्ममाता का कर्तव्य निभाया था। यह स्थान कोलंबो से कैंडी शहर की ओर जाने वाली सड़क पर दो सौ किलोमीटर दूर स्थित नुआर एलिया नामक कस्बे से सात किलोमीटर पश्चिम में सीता एलिया के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में एक प्राचीन मंदिर है जिसे स्थानीय भाषा में सीता अम्मा कोविल (सीता माता का मन्दिर) कहते हैं। वर्णन मिलता है कि अशोक वाटिका बहुत मनोरम थी और यह बात आज भी सत्य साबित होती है। यहां आज भी चारों ओर प्रकृति के मनोरम दृश्य हैं। पहाड़ी क्षेत्र में स्थित अशोक वाटिका चारों ओर से सुगंधित पेड़ों-लताओं से घिरी है और यहां बेहद दुर्लभ जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं। परन्तु मंदिर की दुर्दशा को देखकर व्यथित मन से श्री कैंथ भारत लौटे और तब उन्होंने संकल्प किया कि वे मंदिर का पुनरोद्धार अवश्य करवाएंगे। इस काम में सहयोग के लिए उन्होंने भारत आकर देश के गण्यमान्य लोगों, जैसे- श्री अशोक सिंहल, श्री केदारनाथ साहनी, श्री विष्णु हरि डालमिया, श्री अमिताभ बच्चन, सूर्या रोशनी के स्वामी श्री बी.डी. अग्रवाल, मुगल महल होटल श्रृंखला के श्री अशोक कालड़ा, कनाडा मूल के कुवैत स्थित उद्योगपति श्री अशोक कुमार कैंथ, फिल्मी सितारों, संतों-महात्माओं, लेखकों, विद्वानों, समाचार पत्रों के संपादकों को पत्र लिखे। उनको इन पत्रों का सकारात्मक उत्तर मिला।

श्री कैंथ ने अपने इस उद्देश्य के लिए श्रीलंका के सेंट्रल प्रोविंस के मुख्यमंत्री श्री राधाकृष्ण और कृषि मंत्री श्री मुत्थु शिवलिंगम से चर्चा की जो काफी सकारात्मक रही। श्री कैंथ को बताया गया कि श्रीलंका सरकार ने इस मंदिर के लिए 1996 में एक न्यास की स्थापना की थी, परन्तु धनाभाव के कारण पुनरोद्धार का काम शुरु नहीं हो पाया है। लेकिन श्रीलंका के उक्त राजनेताओं ने मंदिर निर्माण में हरसंभव सहायता व सहयोग देने का आश्वासन दिया। विगत वर्ष इस संबंध में श्री कैंथ श्रीलंका के राष्ट्रपति श्री महेंद्र राजपक्षे से भी मिले और उनको मंदिर निर्माण संबंधी जानकारी दी। वहां भारतीय राजदूत श्रीमती निरुपमा राव ने भी श्री कैंथ को हरसंभव सहायता देने का आश्वासन दिया। राजनीतिक आश्वासन के बाद भी श्री कैंथ के इस पुण्य कार्य में सभी बाधाएं दूर नहीं हुई थीं, क्योंकि इस मंदिर पर वहां के मुस्लिम समुदाय का कब्जा था और वे वहां मांस-मदिरा का सेवन कर हर रोज मंदिर की पवित्रता भंग करते थे। इसके अलावा भी वहां की 46 से अधिक ईसाई व अन्य संस्थाओं ने मंदिर पुनरोद्धार के काम का यह कहकर विरोध करना शुरु कर दिया था कि इससे क्षेत्र में हिन्दुत्व को प्रोत्साहन मिलेगा। श्री कैंथ घबराए नहीं और धीरे-धीरे सभी बाधाओं को पार कर लिया गया। आज मंदिर पुनरोद्धार का काम जारी है। श्री कैंथ के अनुसार संभवत: आने वाले नवरात्रों में ही बंगा कस्बे में विशाल समारोह आयोजित करके मंदिर के लिए देव प्रतिमाएं भेजी जाएंगी। इस कार्यक्रम में श्रीलंका के सेंट्रल प्रोविंस के मुख्यमंत्री श्री राधाकृष्ण या कृषि मंत्री श्री मुत्थु शिवलिंगम पधारेंगे और प्रतिमाएं उन्हें सुपुर्द की जाएंगी। इसके लिए बंगा में श्री अशोक वाटिका (श्रीलंका) धार्मिक व्यवस्था सुधार कमेटी का गठन किया गया है, जिसमें स्वामी कृष्णानंद जी बीनेवाल को अध्यक्ष, श्री अशोक कैंथ को संयोजक, बाबा देवेन्द्र कौड़ा व शिव कौड़ा को प्रबंधक बनाया गया है। कार्यक्रम की रूपरेखा राज्य के जाने-माने राष्ट्रवादी पत्रकार डा. जवाहर धीर तैयार कर रहे हैं। सीता अम्मा कोविल मंदिर परिसर में रहने वाली दस महिलाओं को उद्योगपति श्री अशोक कुमार कैंथ द्वारा मासिक पेंशन देने की घोषणा की गई है और मंदिर में प्रसाद के लिए मुगल होटल समूह के प्रमुख श्री अशोक कुमार कालड़ा ने पांच सालों के लिए अनुबंध किया है।

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