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वर्ग संघर्ष का बीज बो गए अंग्रेज
-मधु भाई कुलकर्णी, अ.भा. बौद्धिक प्रमुख, रा.स्व.संघ
गत 22 से 24 जुलाई तक अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम का तीन दिवसीय कार्यकर्ता सम्मेलन भिवानी (हरियाणा) में आयोजित हुआ। इसमें देश के सभी प्रान्तों के 280 जिलों से 1163 कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। राधास्वामी सत्संग भवन में हुए इस सम्मेलन में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पन्न हो रही समस्याओं को जड़ से समाप्त करने का आह्वान किया गया। सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रख्यात सन्त आचार्य श्री महाप्रज्ञ विशेष रूप से उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि समाज में संवेदनशीलता, मानवीय एकता, सामाजिक चेतना व नैतिकता में प्रतिदिन कमी आने से अनेक समस्याएं खड़ी हो रही हैं। व्यक्तिवाद एवं धन लोलुपता समाज पर हावी होती जा रही है। जनजातीय क्षेत्रों में हो रहे मतांतरण व अन्य अधार्मिक गतिविधियों की रोकथाम हेतु हिन्दू समाज को बहुत पहले कदम उठाने चाहिए थे। उन्होंने कहा कि सामाजिक चेतना एवं राष्ट्रप्रेम की अलख जगाकर जनजातियों को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रयास किए जाने चाहिए।
राधास्वामी सत्संग के गद्दीधारी परमहंस हजुर श्री कंवर जी महाराज ने कहा कि देश के समग्र विकास के लिए जनजातीय बन्धुओं को आगे लाना होगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य की पहचान जाति-धर्म से नहीं बल्कि उसके गुणों से की जानी चाहिए।
वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगदेव राम उरांव ने कहा कि देश के 8.5 करोड़ जनजातीय भारतीय समाज का अभिन्न अंग हैं और उनकी राष्ट्र व समाज निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय महामंत्री श्री गुणवन्त सिंह कोठारी ने कहा कि जनजातियों के धर्म, संस्कृति एवं परंपराओं की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। उन्हें दया और सहानुभूति की जरुरत नहीं है बल्कि प्रेम की जरुरत है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एम.एन. कृष्णमणि ने कहा कि सरकारी योजनाएं लचर व्यवस्था के कारण जनजातीयों तक नहीं पहुंच पा रही हैं। शिक्षा व स्वास्थ्य महंगा होने के कारण जनजातीय इन सेवाओं का लाभ नहीं ले पाते जबकि सरकार को यह सुविधा नि:शुल्क प्रदान करानी चाहिए।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कोलकाता के उद्योगपति एवं समाजसेवी श्री सुरेन्द्र कुमार चोरड़िया ने की। संचालन श्रीमती स्नेहलता वैद्य ने किया। सम्मेलन में आश्रम के सह महामंत्री श्री कृपा प्रसाद सिंह ने संगठन के कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया।
सम्मेलन के दूसरे दिन 23 जुलाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख एवं कल्याण आश्रम के प्रभारी श्री मधुभाई कुलकर्णी ने “राष्ट्र के समक्ष चुनौतियां” विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि देश के समक्ष पांच गंभीर चुनौतियां हैं। इनमें पहली है- भ्रम। उन्होंने बताया कि आजादी से पहले की चार पीढ़ियां तथा आजादी के बाद की तीन पीढ़ियां भ्रम का शिकार हुई हैं। दुनिया में भारत के सिवाय दूसरा कोई ऐसा देश नहीं है जिसके दो नाम, जिसके दो राष्ट्रगान- जन-गण,मन व वन्देमातरम, जिसके दो संविधान- भारतवर्ष व कश्मीर हों। अंग्रेजों ने सांस्कृतिक पराभव के विष बीज बोए और यह कह कर कि “आर्य बाहर से आए” भ्रम पैदा किया। अंग्रेजों ने हिन्दू समाज को जनजातीय व गैर जनजातीय में बांटकर जनजातियों को जंगली व असभ्य बताया और वर्ग संघर्ष का बीजारोपण किया।
हमारी दूसरी चुनौती पड़ोसी देश हैं। बंगलादेश, पाकिस्तान व चीन भारतीय क्षेत्र हड़पना चाहते हैं और आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि तीसरी चुनौती इस्लाम व ईसाई पंथ की अतिरेकी धाराएं हैं जो हिन्दू धर्म को नष्ट करने पर तुली हैं। नक्सलवाद को श्री कुलकर्णी ने चौथी चुनौती बताते हुए कहा कि देश के शत्रुओं द्वारा पोषित नक्सलवाद में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। झूठा सेकुलरवाद एवं वोट बैंक की राजनीति देश की समक्ष पांचवीं बड़ी चुनौती है। इसके चलते राजनीतिज्ञ हिन्दू होते हुए भी ईसाइयों एवं मुस्लिमों के तुष्टीकरण पर लगे हैं तथा राष्ट्रविरोधी निर्णय ले रहे हैं। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए दृढ़ संकल्प एवं अटूट निष्ठा की आवश्यकता है। सत्य हमारे साथ है इसलिए विजय भी हमारी ही होगी।
सम्मेलन के अंतिम दिन 24 जुलाई को सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री हेमेन्द्र सिंह ठाकुर, कर्नाटक उच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री एम. पापन्ना और अरुणाचल प्रदेश के भूतपूर्व विधायक एवं लेखक तुम्पक एते ने वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यों की सराहना की और सहयोग का आश्वासन दिया।
सम्मेलन में तीन प्रस्ताव भी पारित किए गए। “देश के जनजातीय क्षेत्रों में आतंकवाद” विषय पर पारित पहले प्रस्ताव में विस्थापित जनजातीय बंधुओं की सुरक्षा एवं आजीविका की उचित व्यवस्था करने, नक्सलवाद को तुरंत समाप्त करने हेतु उचित रणनीति बनाने, राहत शिविरों की पर्याप्त सुरक्षा, भूमि सुधारों को प्राथमिकता देने, वनोपज, खनिज एवं प्राकृतिक संसाधनों पर जनजातीय बंधुओं के अधिकारों को मान्यता देने, जनजातीय क्षेत्रों में मतांतरण पर प्रतिबंध लगाने व विदेशी मिशनरियों के प्रवेश को रोकने तथा जनजातीय लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा करने की सरकार से मांग की गई।
“जनजातियों की सांस्कृतिक पहचान एवं मतांतरण” विषय पर दूसरे प्रस्ताव में वनवासी कल्याण आश्रम ने अरुणाचल प्रदेश एवं गुजरात सरकार से मतांतरण पर रोक लगाने हेतु तुरंत कानून बनाने, जनजातीय समुदायों से मतांतरित लोगों को जनजाति सूची से बाहर करने संबंधी कानून बनाने व मतांतरण को राजनीतिक मुद्दा न बनाने की मांग की।
तीसरा प्रस्ताव “वन अधिकार एवं पुनर्वास नीति” से जुड़ा है। प्रस्ताव में अ.भा.व.क. आश्रम ने अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वनवासियों (वन अधिकारों को मान्यता) से सम्बंधित विधेयक – 2005 में किए गए कुछ संशोधनों का समर्थन किया। हालांकि प्रस्ताव में सरकारों पर केन्द्र द्वारा जारी “पुनप्र्रबंधन एवं पुनर्वास नीति-2004” की सही प्रकार से लागू न करने का आरोप भी लगाया गया। प्रस्ताव में वास्तविक विस्थापन के पूर्व पुनर्वास की समस्त योजनाएं पूर्ण करने तथा औद्योगिक इकाइयों में पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण कार्य को प्रभावी करने और जनजातीय क्षेत्र में लगने वाली परियोजनाओं के शुद्ध लाभ का 20 प्रतिशत उपयोग क्षेत्र के जनजातियों के सामाजिक उत्थान पर खर्च करने की भी मांग की गई। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में श्री सौमेया जुलू, श्री द्वारकाचार्य, श्री ब्राजराय शाह, श्री हर्ष चौहान, सुश्री परमेश्वरी सहित अनेक गण्यमान्यजन उपस्थित थे।
तलपट
एयर डेक्कन की उड़ान
देश में सबसे कम दर पर हवाई सेवा उपलब्ध कराने वाला एयर डेक्कन अब देश की दूसरी सबसे बड़ी हवाई कंपनी बन गई है। जून माह में जब भारतीय शेयर बाजार 20.8 प्रतिशत की डुबकी लगा गया, वहीं यह कम्पनी 1.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करते हुए शेयर बाजार का 21.2 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त करने में सफल रही। एयर डेक्कन फिलहाल देश के 55 जगहों से प्रतिदिन 265 उड़ानें परिचालित करता है। यह कम्पनी वर्तमान में ए-320 प्रकार की 14 नई एयर बसें परिचालित कर रही है।
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