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भारत-नेपाल मित्रता पर लगी प्रचंड की आंख

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Jun 8, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 Jun 2006 00:00:00

माओवादी – नक्सली गठजोड़ से सावधान हो सरकार

-राकेश सैन

काठमाण्डू का सुप्रसिद्ध पशुपति नाथ मंदिर

नेपाल में माओवादियों को मिली आंशिक सफलता से उत्साहित होकर माओवादी नेता प्रचण्ड ने काठमाण्डू में कहा है कि माओवादी लड़ाके और नक्सलवादी मिल कर काम करेंगे। प्रचण्ड ने इस दृष्टि से एक संयुक्त कमांड की स्थापना कर नक्सलवादियों को भारत मुक्ति संघर्ष में पूरा समर्थन देने की भी घोषणा की है। दूसरी ओर, भारत के माक्र्सवादी सरकार पर दबाव डाल रहे हैं कि वह नेपाल की नवगठित सरकार को दी जाने वाली सहायता में वृद्धि न करे। भारत के नक्सलवादियों व नेपाल के माक्र्सवादियों के बढ़ रहे हौंसले व परस्पर सहयोग से देश की सुरक्षा को गंभीर खतरा पैदा हो गया है जिसका मुकाबला करना जरूरी है, परंतु माक्र्सवादियों के दबाव में केंद्र सरकार अप्रत्यक्ष रूप से दोनों को प्रोत्साहन देती दिख रही है।

भारत में चीन समर्थित नक्सली आतंकवादी पहले ही 7 राज्यों- बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और प. बंगाल से जुड़े 175 जिलों में सक्रिय हैं और उनके प्रभाव क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हो रही है। दूसरी ओर, केंद्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार या तो खतरे के प्रति आंखे मूंदे बैठी है या फिर माक्र्सवादी उसे नक्सलवादियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने से रोक रहे हैं। गृहमत्री शिवराज पाटिल पहले ही कह चुके हैं कि नक्सलवाद से लड़ना राज्यों का दायित्व है न कि केंद्र का। लेकिन कोई राज्य केंद्र की सहायता के बगैर नक्सलवाद से नहीं लड़ सकता। भारतीय माक्र्सवादी नक्सलवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के साथ-साथ सरकार को नेपाल सरकार को मदद देने से भी रोक रहे हैं। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कोईराला के भारत दौरे के दौरान जब सौ करोड़ रुपये देने व वार्षिक सहायता 65 करोड़ से बढ़ाकर 150 करोड़ करने की घोषणा की तो माक्र्सवादियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया क्योंकि वे नहीं चाहते कि नेपाल में सरकार सुदृढ़ हो और माओादियों को किसी परेशानी का सामना करना पड़े।

भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध अत्यंत प्राचीन हैं। हिंदू धर्म ने दोनों देशों की जनता को करीब लाने में अहम भूमिका निभाई है। भारत सहित दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए पवित्र पशुपतिनाथ मंदिर काठमाण्डू में है और इसका पुजारी केरल मूल का ब्राह्मण ही होता है। गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर में सबसे पहले खिचड़ी आज भी नेपाल नरेश ही चढ़ाते हैं। नेपाल नरेश के राज्याभिषेक के समय भारत की पवित्र नदियों के जल का प्रयोग होता है।

माओवादियों ने अब नेपाल में हिन्दी व संस्कृत शिक्षा का विरोध भी करना शुरू कर दिया है। वे भारत-नेपाल के बीच खुली सीमा से भी असहमत हैं और 1950 में भारत-नेपाल के बीच हुई रक्षा संधि को भी निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। इस संधि के अनुसार दोनों देशों में आपत्तिकाल में परस्पर सेना का प्रयोग किया जा सकता है। माओवादी भारतीय सेना द्वारा नेपाल में भर्ती शिविर लगाने का भी विरोध कर रहे हैं। चीन नहीं चाहता कि भारत और नेपाल के बीच मित्रता बनी रहे। क्योंकि यह मित्रता उसके प्रभाव क्षेत्र को सीमित करती है।

नेपाल में अभी सात दलों की सरकार है, लेकिन यह माओवादियों के जबरदस्त दबाव में है। माओवादियों ने पहले खूनी संघर्ष द्वारा नेपाल का हिंदू राष्ट्र का दर्जा छीना और अब उनका लक्ष्य वहां की लोकतांत्रिक सरकार है। माओवादियों के प्रभाव को कम करने और लोकतंत्र बचाने के लिए भारत का यह दायित्व बनता है कि वहां की सरकार को सैनिक व आर्थिक सहायता उपलब कराई जाए। परंतु यह तभी हो सकता है जब केंद्र में ऐसी सरकार हो जो वामदलों के प्रभाव से मुक्त हो।

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