|
-जम्मू से विशेष प्रतिनिधि
मीरपुर के जीर्ण-शीर्ण किन्तु सुप्रसिद्ध प्राचीन रघुनाथ मंदिर के मुख्य द्वार पर
विस्थापितों के नेता श्री यशपाल (दाएं)
“पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का नाम भले ही “आजाद कश्मीर” रख दिया गया हो पर वहां आजादी नाम की कोई चीज नहीं है। वहां के सामाजिक स्वरूप को योजनाबद्ध तरीके से बदला जा रहा है। बाहर से आए लोगों का वहां बोलबाला है जिसे लेकर स्थानीय मूल समाज दु:खी है। इसके बावजूद पहाड़ी बोली की मिठास और सौहाद्र्र की परम्परा यहां कायम है। पाकिस्तानी कब्जे वाले क्षेत्रों के लोग शांति चाहते हैं और जम्मू के पहाड़ी एवं डोगरा लोगों के साथ जुड़ने की उम्मीद भी लगाए हैं।”
पिछले दिनों पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्रों से विस्थापित हुए लोगों का एक प्रतिनिधिमण्डल “आजाद कश्मीर” गया था। उन्होंने ही उपरोक्त बातें बताईं। यात्रा का संयोजन अंतरराष्ट्रीय संस्था (एस.ओ.एस.) ने किया था। यह यात्रा नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले कश्मीरियों में आपसी विश्वास बहाली के लिए उठाए जा रहे कदमों का ही एक हिस्सा थी। इस दल में शामिल श्री यशपाल गुप्ता ने यात्रा से लौटकर बताया कि आजाद कश्मीर के गृह सचिव तथा पुलिस महानिदेशक, जो पाकिस्तान के हैं, को वहां के प्रधानमंत्री से भी अधिक अधिकार मिले हुए हैं। जिस तरह समूचे जम्मू-कश्मीर राज्य पर कश्मीरी नेताओं का वर्चस्व है, उसी तरह गुलाम कश्मीर में पंजाबियों का बोलबाला है। पहाड़ी और डोगरा समाज तो बस इस आशा में जी रहा है कि कभी तो परिवर्तन होगा, और उन्हें अधिकार मिलेंगे। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जे.के.एल.एफ.) के नेता इन प्रतिनिधियों के साथ वार्ता में कुछ मायूस दिखे। सद्भावना दल के एक सदस्य ने जे.के.एल.एफ. के संस्थापक अमान उल्लाह खान से भेंट की और उन्हें जम्मू-कश्मीर में जारी हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आपकी (अमान उल्लाह खान) वजह से राज्य में सशस्त्र आतंकवाद की शुरुआत हुई। जिसमें अब तक 50000 से ज्यादा निर्दोष लोगों की जानें जा चुकी हैं, हजारों महिलाएं विधवा हो गईं और हजारों बच्चे अनाथ हो गए। साथ ही साथ लाखों लोग पलायन और अभाव की जिदगी जीने को बाध्य हुए।
उल्लेखनीय है कि जे.के.एल.एफ.की नींव 1989 में पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. ने आपरेशन “टोपाक” योजना के अन्तर्गत डाली थी। शुरू के 3-4 वर्षों में जे.के.एल.एफ. के निर्देश पर ही आतंकवादी हिंसा की योजना बनाई जाती रही। जैसे-जैसे यह संगठन मजबूत होता गया, इसने स्वतंत्र कश्मीर की मांग करना शुरु कर दिया। परिणाम हुआ कि आई.एस.आई. ने इस संगठन को किनारे कर हिजबुल मुजाहिदीन, जमाते इस्लामी, लश्करे तोइबा, जैश-ए मोहम्मद जैसे पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी संगठनों को खड़ा कर दिया। इस कारण से घाटी में हिजबुल मुजाहिदीन का प्रभाव घटने लगा है। कहा जा रहा है कि अब जे.के.एल.एफ.को आई.एस.आई. का समर्थन और सहायता मिलनी बंद हो गई है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसे गुलाम कश्मीर में प्रतिबंधित भी किया जा चुका है, जे.के.एल.एफ. से जुड़ा कोई व्यक्ति पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में तब तक चुनाव नहीं लड़ सकता जब तक वह शपथ-पत्र दाखिल कर आजाद कश्मीर एसोसिएशन के प्रति अपना समर्थन व्यक्त न करे। पाकिस्तान का यह रवैया “आजाद कश्मीर” के समर्थक नेताओं को नागवार गुजर रहा है जो इन दिनों “गुलाम कश्मीर” में शरण लिए हुए हैं।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी हमले से पूर्व मीरपुर की आबादी 15,000 के लगभग थी जिसमें 70 प्रतिशत से अधिक हिन्दू थे। अब यह ऐतिहासिक शहर लुप्त हो चुका है। पाकिस्तान की सरकार ने वहां मंगला बांध का निर्माण कर मीरपुर शहर को विस्थापित कर दिया है। अब इस नए शहर की आबादी 2 लाख से ऊपर है, लेकिन वहां कोई भी हिन्दू या सिख परिवार नहीं रहता है। “47 में पाकिस्तानी हमले में अनेक मीरपुरवासियों की हत्या कर दी गई और बहुतों को वहां से जबरन भगा दिया गया। जो बचे रह गए उन्हें “निजामे-मुस्तफा” की स्थापना के लिए मुसलमान बनाया जा चुका है।
श्री यशपाल ने बताया कि हालांकि सद्भावना दल में शामिल सदस्य चाहते हैं कि भारत एवं पाकिस्तान के बीच बेहतर मैत्री संबंध हों लेकिन वे निर्दोष लोगों की हत्या और आतंक का पूरा विरोध करते हैं। भारत के बारे में तमाम दुष्प्रचार के बावजूद “गुलाम कश्मीर” के लोग जम्मू के साथ व्यापार और संबंधों की चाहत रखते हैं।
22
टिप्पणियाँ