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इस सप्ताह संसद में

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Jun 8, 2006, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 Jun 2006 00:00:00

गृहमंत्री पाटिल ने माना

“मोहब्बत” की बसों में आतंकवादी आए

-आलोक गोस्वामी

24जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ और पहले ही दिन लोकसभा में सत्तापक्ष ने विपक्ष पर सहमति से अलग जाने का आरोप लगाते हुए सदन चलने नहीं दिया। विपक्ष देश में बढ़ती महंगाई पर बहस चाहता था जबकि सत्तापक्ष इसे टालने पर अड़ा हुआ था।

25 जुलाई को लोकसभा में आतंकवाद और मुंबई बम विस्फोटों पर विपक्ष के कार्य स्थगन प्रस्ताव पर लम्बी बहस हुई। सबसे पहले प्रतिपक्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भाषण में कहा कि मुम्बई की लोकल ट्रेनों में सोच समझकर हमले करना एक बड़ी आतंकवादी घटना है। उन्होंने पोटा हटाने की भत्र्सना की और आरोप लगाया कि सरकार आतंकवाद की समस्या का साम्प्रदायीकरण कर रही है। सरकार वोट बैंक की चिंता छोड़कर आतंकवाद पर प्रहार करे। बहस में प्रियरंजन दासमुंशी, लालू यादव, बी.के. त्रिपाठी आदि ने भाग लिया। शिवराज पाटिल ने प्रस्ताव का जवाब देते हुए यह स्वीकारा कि पाकिस्तान से विश्वास कायम करने के जो तरीके अपनाए गए, जैसे रेलें, बसों का चलाना, उनके जरिए भारत में आतंकवादियों ने प्रवेश किया है। पाटिल ने माना कि आतंक अब सीमा क्षेत्रों तक ही नहीं है, वह भीतरी भागों में भी पहुंच चुका है।

नटवर को भाजपा नेताओं की बधाई

25 जुलाई को संसद में पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह की प्रेस वार्ता से उन पत्रकारों को निराशा हाथ लगी जो इस उम्मीद से वहां आए थे कि श्री सिंह पी.एम.ओ. के “जासूस” का नाम बताएंगे। श्री सिंह ने साफ कहा कि प्रधानमंत्री अगर उन्हें मिलने के लिए बुलाएंगे तो वे उन्हें ही वह नाम बताएंगे। इसके अलावा जसवंत सिंह ने उन आरोपों का खंडन किया जो आई.सी.-814 अपहरण और उनकी कंधार यात्रा के बारे में लगाए जाते रहे हैं। 23 जुलाई (रविवार) के हिन्दुस्तान टाइम्स में पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह द्वारा लिखी जसवंत सिंह की इसी पुस्तक की कठोर आलोचनात्मक समीक्षा छपी थी। इसमें नटवर सिंह ने सी.टी.बी.टी. पर जसवंत सिंह और स्ट्रोब टालबोट के दृष्टिकोणों का उल्लेख करते हुए लिखा कि जसवंत सिंह सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर करने को आमादा थे। अगले दिन संसद के केंद्रीय कक्ष में भाजपा सांसदों ने नटवर सिंह को पुस्तक समीक्षा के लिए बधाई दी। भाजपा नेताओं से बातचीत में नटवर सिंह ने कहा, “मैंने उस समय, जब वे विदेश मंत्री थे, जसवंत सिंह से कहा था कि आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं, वह बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर कभी पं. नेहरू बैठे थे। इस कुर्सी की गरिमा संभाल कर रखिए।” अफसोस है, वे ऐसा नहीं कर सके।

लाभ के विधेयक पर बरसे जेटली

27 जुलाई को राज्यसभा में “लाभ का पद” विधेयक पारित हुआ। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ने उक्त विधेयक बिना हस्ताक्षर किए पुनर्विचार के लिए लौटा दिया था। राज्यसभा में काफी ना-नुकुर के बाद वामपंथियों के समर्थन के प्रति आश्वस्त सरकार ने विधेयक पर बहस कराई। विधेयक का सबसे कड़ा और तर्कपूर्ण विरोध किया भाजपा नेता अरुण जेटली ने। भाजपा ने 17 मई को लोकसभा में भी इस विधेयक का विरोध किया था। जेटली ने कहा कि सदन यह विधेयक पारित कर ऐतिहासिक एवं भयंकर भूल कर रही है। शायद ही कभी जनता की आम इच्छा और संसद की इच्छा में इतना बड़ा विरोधाभास हुआ हो। इतिहास उन लोगों को कभी माफ नहीं करेगा जो देश की सर्वोच्च संवैधानिक सत्ता द्वारा संवैधानिक गलती के प्रति चेतावनी दिए जाने के बावजूद वही गलती दोहराते रहे। जनता ने सदा इसका विरोध किया है। मीडिया आपके खिलाफ अभियान चला रही है। अगर अब भी आप सबक नहीं लेते तो निर्णायक चुनौती इस विधेयक की न्यायिक समीक्षा के रूप में सामने आएगी।

सम्पादकीय

जिस प्रकार दीपक स्वयं प्रकाशमान होता हुआ अपने स्पर्श से अन्य सैकड़ों दीपक जला देता है, उसी प्रकार सद्गुरु आचार्य स्वयं ज्ञान- ज्योति से प्रकाशित होते हैं एवं दूसरों को प्रकाशमान करते हैं।

-आचार्य भद्रबाहु (उत्तराध्ययन, निर्युक्ति)

वोट बैंक राजनीति का विषफल

अभी प्रधानमंत्री कार्यालय में “जासूस” होने की चर्चा चल ही रही थी कि प्रधानमंत्री निवास में सुरक्षा घेरे को धता बताते हुए आवारा किस्म के युवाओं की गाड़ी घुस गई। देखने में छोटी बात है, लेकिन पूरे देश की सुरक्षा का हाल इससे पता चल जाता है। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर सेना तक और प्रधानमंत्री निवास से लेकर असम तक में भारत की भूमि असुरक्षित हो गई है। आतंकवादी जब चाहे, जहां चाहे भारत के भीतर भारतीयों को मार रहे हैं। इन सब घटनाओं के सम्मिलित प्रभाव से देश की सत्ता में जनता की आस्था हिलती प्रतीत होती है। इसलिए नहीं कि देश कमजोर है या सामथ्र्यहीन है, बल्कि इसलिए कि देश के सत्ताधीश कमजोर हैं और न भौगोलिक एकता को बचा पा रहे हैं, न सामाजिक समरसता को। यह स्थिति वोट बैंक राजनीति के विषफल के रूप में ही पहचानी जा सकती है। राजनेताओं का पहला उद्देश्य है चुनकर आना और उसके लिए जो भी संभव हो वह तिकड़म आजमाना। बिना चुनाव में जीते राजनीति नहीं की जा सकती। चुनाव में जीतने के लिए विभिन्न समुदायों और वर्गों को हर तरीके अपनाकर अपने साथ जोड़े रखने की इस जद्दोजहद में देश धूमिल हो जाता है और वोट महत्वपूर्ण। पिछली बार हमने जिक्र किया था कि श्री मुलायम सिंह यादव ने “सिमी” को बेदाग इसलिए घोषित किया क्योंकि उन्हें लगता था कि उससे प्रदेश के मुस्लिम वोट पक्के होंगे। असम और प. बंगाल में कांग्रेस और माकपा के नेता बंगलादेशी घुसपैठियों को राशनकार्ड और मतदाता पहचानपत्र इसलिए बनाकर देते हैं क्योंकि उन्हें पके पकाए वोट मिल जाते हैं। अर्जुन सिंह का अलीगढ़ और आरक्षण प्रेम, करुणानिधि द्वारा आतंकवादी मदनी की मालिश इन सबके पीछे वोट बैंक मजबूत करने की अंधी इच्छा है। इनका देश ओर विश्व सिर्फ मतपेटी में बंद दिखता है। गृहमंत्री श्री शिवराज पाटिल को इस बात की चिंता नहीं है कि वे भारत के सबसे कमजोर और निर्णय लेने में हिचकने वाले गृहमंत्री के नाते इतिहास में दर्ज होंगे। उन्हें चिंता सिर्फ इस बात की है कि मुसलमान नाराज न हों और इसके लिए वे अपने ही गृहमंत्रालय द्वारा कांग्रेसी सरकारों के दौरान भी मदरसों पर जारी की गईं रपटों को नजरअंदाज करते हुए दिल्ली के नफरतवादी कट्टर मुस्लिमों के जलसे में मदरसों को साफ सुथरा होने का प्रमाण पत्र दे आए। देश चाहे रसातल में जाए, लेकिन यदि सत्ता में आने के लिए इन्हें आतंकवादी संगठनों को भी “आध्यात्मिक-समाजसेवी” घोषित करना पड़ा तो ये बिना पलक झपकाए कर देंगे और उन्हें खुश करने के लिए देशभक्त नेताओं को कुचलने में भी नहीं हिचकिचाएंगे। आज ऐसा ही दृश्य दिखा है। अगर जनता समझती है कि यह स्थिति बदलने के लिए कोई अवतारी महापुरुष आएगा और इसलिए वह अपने रोजमर्रा के काम में निश्चित होकर जुटी रहे तो अभी इससे भी खराब दिन देखने को मिलेंगे।

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