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अंक-सन्दर्भ, 9 जुलाई, 2006
पञ्चांग
संवत् – 2063 वि. –
वार –
ई. सन् 2006
श्रावण शुक्ल 12
रवि
6 अगस्त
,, ,, 13
सोम
7 ,,
,, ,, 14
मंगल
8 ,,
,, ,, 15
बुध
9 ,,
(पूर्णिमा, रक्षाबंधन)
भाद्रपद कृष्ण 1
गुरु
10 ,,
,, ,, 2
शुक्र
11 ,,
,, ,, 3
शनि
12 ,,
भाई की पीड़ा पहचानें
आवरण कथा के अन्तर्गत श्री तरुण विजय की रपट “बंगलादेश के हिन्दू : हमलों के बीच धर्मनिष्ठा” से बंगलादेश में हिन्दुओं की चिंताजनक स्थिति की जानकारी मिली। वहां के हिन्दुओं के बीच आशा की किरण हैं मेजर जनरल चित्तरंजन दास (अ.प्रा.)। उनका यह बयान साहसिक लगा कि “हम किसी की दया पर निर्भर नहीं हैं। रमणाकाली मन्दिर की जगह बदलने वालों से भी हम युद्ध के लिए तैयार हैं।” ढाका स्थित भारतीय उच्चायुक्त श्रीमती वीणा सीकरी को भगवान शक्ति प्रदान करें, ताकि वह धामराई की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए पुराने
वैभव और गरिमा वाले रथ उपलब्ध करा सकें। उनके हाथों यह काम जितनी जल्दी हो उतना ही अच्छा है।अन्यथा सेकुलर उनकी टांग खिंचाई शुरू कर सकते हैं कि इतनी साम्प्रदायिक घोषणा, वह भी भारत की ओर से करने की हिमाकत कैसे की? “निशाने पर भाषा, संस्कृति और इतिहास”- रपट से पता चला कि अर्जुन सिंह एवं संप्रग सरकार की नियत व नीति क्या है। थाई सम्राट के सिंहासनारोहण की 60वीं वर्षगांठ में भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि गया था या नहीं, इसकी भी जानकारी देनी चाहिए।
-डा. नारायण भास्कर
50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)
बंगलादेश में शेष बचे हिन्दुओं की दुर्दशा पढ़-सुनकर मन बड़ा दु:खी होता है। कितना उत्तम हल बताया था डा. बाबा साहब अम्बेडकर ने। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए उन्होंने कहा था, “पाकिस्तान बने, किन्तु भारत से सभी मुसलमान पाकिस्तान चले जाएं और पाकिस्तान से सारे हिन्दू भारत आ जाएं।” काश, ऐसा होता तो न ही लाहौर में किसी हिन्दू महिला के शव को कब्रिस्तान में दफनाना पड़ता और न ही बंगलादेश के हिन्दू लूटे-मारे जाते। “पाकिस्तान की हकीकत” जैसी पुस्तकों की समीक्षा छापना पाञ्चजन्य के मूल्यवान पृष्ठों एवं पाठकों के समय की बर्बादी है। इसमें लेखक श्री राम नरेश प्रसाद सिंह के बचकाना चिन्तन का पता चलता है। उनका कहना है “भारत-पाकिस्तान- बंगलादेश की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि एक तरह की है, तब एकता क्यों नहीं हो सकती।” लेखक को सोचना चाहिए कि जिस बंगलादेश को भारत ने बनवाया, वह उसके साथ क्या कर रहा है। ऐसे में एकता कैसे होगी?
-क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया,
कोडरमा (झारखण्ड)
आज बंगलादेश में 10 प्रतिशत से भी कम हिन्दू रह गए हैं। फिर भी वहां हिन्दू जिस तरह से अपने पर्व-त्योहारों को मनाते हैं, वह प्रशंसनीय है। जरुरत है उनके मनोबल को और मजबूत करने की, ताकि वे वहां डटे रहें।
-पुष्पेन्द्र गुप्ता
ए 256, नेबसराय, साकेत (नई दिल्ली)
महत्वपूर्ण दस्तावेज
श्री राकेश उपाध्याय की रपट “निशाने पर भाषा, संस्कृति और इतिहास” महत्वपूर्ण दस्तावेज है। यदि हिन्दुओं ने एक होकर छद्म-सेकुलरों के इस षडंत्र का सफलतापूर्वक सामना नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियों को इसके घातक परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस देश में बहुसंख्यक होने के बावजूद भी हिन्दुओं की कोई आवाज नहीं है, इसलिए वे अब प्रत्येक अपमान को सहने के आदी हो चुके हैं। परन्तु भारत सरकार और देश का संवैधानिक ढांचा भी यदि इसी तरह चुप रहकर देशविरोधी गतिविधियों को नजरअंदाज करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब अराजक तत्व पूरी तरह मनमानी पर उतर आएंगे।
-रमेशचन्द्र गुप्ता
नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
उनकी मानसिकता
गहरे पानी पैठ स्तम्भ में “उत्कृष्ट जिहादी, निकृष्ट जिहादी” शीर्षक से प्रकाशित खबर स्पष्ट रूप से बताती है कि पाकिस्तान के मुसलमान भारतीय मुसलमानों को हेय की दृष्टि से देखते हैं। यही कारण है कि जम्मू के कोट भलवाल में बंद देशी-विदेशी आतंकवादियों के बीच झड़पें हो रही हैं। भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तानी मुसलमानों की मानसिकता समझ लेनी चाहिए।
-प्रदीप सिंह राठौर
मेडिकल कालेज, कानपुर (उ.प्र.)
मित्तल का लोहा
सम्पादकीय “एक भारतीय का फौलादी सिक्का” बहुत अच्छा लगा। “स्टील किंग” के नाम से विख्यात श्री लक्ष्मी निवास मित्तल ने विश्व की दूसरी सबसे बड़ी स्टील कम्पनी “आर्सेलर” का अधिग्रहण कर पूरी दुनिया को अपना लोहा मनवा दिया। अब वे चीन की दीवार लांघना चाहते हैं। हम उनकी सफलता की कामना करते हैं।
-निरंजन प्रसाद
410, रेलवे कालोनी, जमालपुर, मुंगेर (बिहार)
अंग्रेजों की चाल
मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “भारतीय राष्ट्रवाद के विरुद्ध ब्रिटिश षडंत्र” पढ़ा। 1857 की क्रांति में हिन्दू और मुसलमानों ने कंधा से कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजाया था। यह विद्रोह हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच असाधारण एकता का प्रतीक था। इसी एकता के कारण ब्रिटिश शासकों ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देना शुरू किया। अब वे “फूट डालो, राज करो” की नीति पर चलने लगे। विलियम हंटर ने हिन्दू समाज को विभिन्न समुदायों में विभक्त कर ब्रिटिश आरक्षण की राजनीतिक चाल चली। यहीं से प्रारंभ हुआ भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विपरीत एंग्लो-मुसलमान गठबंधन का दौर।
-दिलीप शर्मा
114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समता नगर
कांदीवली (पूर्व), मुम्बई (महाराष्ट्र)
लचर भारतीय कूटनीति
श्री वरुण गांधी का आलेख “नेपाल के माओवादी पहले बंदूकें छोड़ें फिर बात करें” माओवादियों की दोरंगी चाल का पर्दाफाश करता है। माओवादी एक ओर पूरे नेपाल में अपनी जड़ें मजबूत करने में लगे हैं, तो दूसरी ओर गठबंधन सरकार पर कई तरह के दबाव डाल रहे हैं। इसलिए नेपाल की स्थितियों को नजरअंदाज करना भारत के लिए कतई ठीक नहीं है। नेपाल के सन्दर्भ में भारतीय कूटनीति अब तक बहुत ही लचर रही है। यह नीति बदलनी होगी।
-प्रमोद सोनी
जगुनहा बाजार, श्रावस्ती (उ.प्र.)
जैसा बीज, वैसा फल
हम भारतवासी भारतमाता की जयकार और पंथनिरपेक्षता का पालन करते हैं। किन्तु जिन्होंने पंथ के आधार पर देश का विभाजन किया, उन्हें अपना समर्थन देते हैं। हम लोग गाय की पूजा भी करते हैं, किन्तु गोहत्या को प्रोत्साहन देने वालों को अपना मत देते हैं। इस स्थिति में सुख, शान्ति की आशा कैसे कर सकते हैं। जैसा बीज लगाएंगे, वैसा फल पाएंगे।
-लखनलाल गुप्ता
आसनसोल (प. बंगाल)
हमारे कुल देवता
विचार गंगा स्तम्भ (2 जुलाई, 2006) में श्रीगुरुजी का विचार “ऐसा है आधुनिक हिन्दू जीवन” पढ़ा। यह ध्यान तो रखना ही चाहिए कि हम धन के नशे में भगवान को न भूलें। आवास में अपने कुल देवता को ऐसी जगह स्थापित करना चाहिए, जहां घर के सभी सदस्य बैठकर शान्ति से प्रार्थना कर सकें। अपने कुल देवता को कभी नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि वे हमें सही मार्ग पर चलने को प्रेरित और विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
-राकेश गिरि
सिविल अस्पताल, रुड़की, हरिद्वार (उत्तराञ्चल)
दो गलतियां
भाजपा के वरिष्ठ नेता श्री जसवंत सिंह ने अपनी पुस्तक “ए काल टू आनर” में भाजपा द्वारा अपने राजनीतिक जीवन में की गयी दो गलतियों को चिन्हित किया है। पहली गलती थी राम मन्दिर आन्दोलन पर नियंत्रण न रख पाना। अर्थात् हिन्दू जनमानस को सदैव भावनात्मक रूप से उद्वेलित रखते हुए वोट रूपी बैल को स्थाई रूप से बांधे रखने के लिए भारत माता के उन्नत एवं उज्ज्वल ललाट पर कलंक के समान बाबरी ढांचा रूपी खूंटे का टूट जाना। दूसरी गलती थी भारत माता के सच्चे सपूत नरेन्द्र मोदी द्वारा गुजरात के दंगों को प्रभावी रूप से रोकने में असफल हो जाना। क्या सच में वे असफल हुए थे? तो फिर आपकी सरकार ने उन्हें अपराधी के कठघरे में खड़ा क्यों नहीं किया? डर किसका? राजस्थान की पवित्र मिट्टी में पले सैनिक के रूप में देश की सेवा करते रहे श्री जसवंत सिंह के विचारों से मन में जिस ग्लानि एवं क्षोभ के ज्वार का संचार हो रहा है उसे दबाते हुए, यद्यपि कठिन हो रहा है, मैं मात्र इतना कहना चाहूंगा कि गलती भाजपा से नहीं हुई है, बल्कि हिन्दू जनता से हुई है कि आपको जो सोचकर पलकों पर बैठाया था, आप उसके सर्वथा योग्य न थे।
-ब्राह्मजीत सिंह राघव
पिलखुवा, गाजियाबाद (उ.प्र.)
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