मंथन
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मंथन

by
May 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 11 May 2006 00:00:00

सरस्वती नदी प्रकल्प को ग्रसता कम्युनिस्ट राहूदेवेन्द्र स्वरूप9अक्तूबर के ट्रिब्यून में प्रकाशित यह समाचार पढ़कर आश्चर्य तो नहीं पर दुख अवश्य हुआ कि पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय की संसदीय समिति ने सरस्वती विरासत परियोजना को बंद करने की सिफारिश की है। केन्द्र में सत्तारूढ़ संप्रग सरकार के चरित्र को देखते यह निर्णय अप्रत्याशित नहीं था। संप्रग के अधिकांश घटकों के पास संस्कृति, इतिहास, दर्शन जैसे गूढ़ व नीरस विषयों पर सोचने की फुर्सत नहीं है, उनका दिमाग हर क्षण जाति और संप्रदाय की जोड़ तोड़ की वोट राजनीति में लगा रहता है। सबसे बड़े घटक कांग्रेस ने अपनी बुद्धि कम्युनिस्टों के पास गिरवी रख दी है। सत्ता में बने रहने के लिए कम्युनिस्टों को प्रसन्न रखना उनकी समूची राजनीति का लक्ष्य बन गया है। कांग्रेसी घोड़े पर सवार होकर केन्द्र में सत्ता हथियाने को आतुर कम्युनिस्टों ने अपना एकमात्र शत्रु भारतीय जनता पार्टी, संघ-परिवार और उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा या हिन्दुत्व को मान लिया है। इसीलिए माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की पालित ब्यूरो की सदस्या, महासचिव प्रकाश करात की पत्नी एवं राज्यसभा सदस्य वृन्दा करात ने परसों ही दो टूक घोषणा की है कि हम भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए किसी भी दल के साथ गठबंधन करने को तैयार हैं। (इंडियन एक्सप्रेस, 25 अक्तूबर) क्यों नहीं वे अपनी पार्टी का नाम माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से बदल कर “भाजपा रोको पार्टी” कर देते?नकारात्मक सोचऐसी नकारात्मक सोच के साथ यह स्वाभाविक ही है कि पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय की स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष पद पर बैठकर माकपा नेता सीताराम येचुरी पिछली सरकार के ऐसे सब निर्णयों पर विराम चिन्ह लगवा दें जिनसे भारत की राष्ट्रीय चेतना एवं स्वाभिमान को बल मिलता है। क्या इसे मात्र संयोग मान लें कि सीताराम येचुरी के पहले इस संसदीय समिति के अध्यक्ष पद पर माकपा के ही नीलोत्पल बसु विराजमान थे? क्या यह सहज रूप से हो जाता है या कम्युनिस्ट पार्टियां ऐसे पदों को पाने के लिए सचेष्ट रहती हैं? 2004 में सत्ता परिवर्तन के पश्चात् कम्युनिस्टों की पूरी कोशिश तमाम शिखर शैक्षिक एवं बौद्धिक संस्थानों पर काबिज होने की रही है। वह चाहे एन.सी.ई.आर.टी. हो या आई.सी.एच.आर., भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला हो या नेशनल बुक ट्रस्ट इन सब संस्थानों में पिछले ढाई साल के उनके कारनामों का अध्ययन करें तो तीन सूत्र नजर आएंगे।1.पूर्व सरकार के कार्यकाल में की गई सभी नियुक्तियों को निरस्त कर उनकी जगह अपने लोगों को बैठाना।2.उस काल में प्रारम्भ किये गये सभी प्रकल्पों पर रोक लगाना, चाहे वे कितने ही वैज्ञानिक, तटस्थ, वस्तुपरक एवं राष्ट्रोपयोगी हों।3.पुराने वामपंथी प्रकल्पों को पुनरुज्जीवित कर इरफान हबीब की अलीगढ़ हिस्टोरियंस सोसायटी और सहमत जैसी संस्थाओं व कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों को अधिक से अधिक वित्तीय सहायता देना।इस त्रिसूत्री कार्य नीति के कुछ ताजे उदाहरण भी हम यहां देना चाहेंगे।1. एन.सी.ई.आर.टी. ने 2002 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का पालन करते हुए जो पाठ पुस्तकें लागू कीं, उन्हें बिना सोच-विचार किये हटा दिया गया और वामपंथी इतिहासकारों की पुरानी पाठ पुस्तकों को वापस लाया गया। किन्तु शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के कानूनी एवं जन विरोध के कारण उन पुस्तकों से अनेक आपत्तिजनक अंशों को न्यायालय के भय से हटाया गया और अब हरियाणा में जाट-समुदाय की ओर से हो रहे उग्र विरोध से भयभीत मुख्यमंत्री हुड्डा की कुर्सी बचाने के लिए राजनीतिक कारणों से जाटों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों को हटाने की घोषणा स्वयं मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह को करनी पड़ी है। इससे संकेत गया है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते। पहले सिखों के रोष से डरकर गुरुओं के प्रति अपमानजनक अंशों को हटाया गया और अब जाटों के बारे में। जैन मत के प्रति भ्रामक भाषा का प्रयोग करने वाले आर.एस.शर्मा की “प्राचीन भारत” पुस्तक को भी हटाया गया। इन सब निर्णयों का श्रेय शिक्षा बचाओ आन्दोलन को जाता है।2. ट्रिब्यून (20 अक्तूबर) के अनुसार शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आई.आई.ए.एस.) की गैर भगवाकरण प्रक्रिया के अन्तर्गत वेद, योग, चेतना, संस्कृत वाङ्मय जैसे विषयों की जगह सामाजिक न्याय (आरक्षण), पूर्वोत्तर राज्य, बौद्ध मत, नारी के प्रति भेदभाव जैसे विषय लेने का निर्णय हुआ। इरफान हबीब, नामवर सिंह जैसे वामपंथी बौद्धिकों को ही वहां विचार प्रकट करने का अवसर दिया जायेगा।येचुरी की छापऐसे अनगिनत उदाहरण दिये जा सकते हैं किन्तु इस लेख को हम सरस्वती विरासत प्रकल्प की हत्या तक ही सीमित रखना चाहेंगे। यह बताने की आवश्यकता नहीं है अधिकांश संसदीय समितियों में किसी भी विषय पर कोई गंभीर विचार मंथन नहीं होता और उसके निर्णय उसके अध्यक्ष के पूर्वाग्रह को ही प्रतिबिंबित करते हैं। अत: पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय की संसदीय समिति और सरस्वती विरासत प्रकल्प विरोधी रपट पर उसके दो अध्यक्ष-नीलोत्पल बसु और सीताराम येचुरी की छाप बहुत स्पष्ट है। समिति की ताजी रपट से स्पष्ट है कि इस विषय पर उपलब्ध विपुल साहित्य, पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक सामग्री का कोई अध्ययन नहीं किया गया। इस योजना को समाप्त करने के लिए कोई बौद्धिक एवं वैज्ञानिक कारण प्रस्तुत नहीं किये गये केवल तकनीकी आपत्तियां उठायी गईं। पहली यह कि इस प्रकल्प के लिए किसी अकादमिक संस्थान या विश्वविद्यालय की ओर से प्रस्ताव नहीं आया। दूसरी कि सरस्वती नदी का अस्तित्व कभी था ही नहीं वह मात्र एक कल्पना और मिथक है। अत: ऐसी काल्पनिक नदी के लुप्त प्रवाह की खोज पर खर्च करना राष्ट्रीय धन की बर्बादी है। अन्य राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों एवं ऐतिहासिक स्थलों को छोड़कर इस काल्पनिक नदी को पुनरुज्जीवित करने के लिए इतनी विशाल राशि का अपव्यय क्यों? रपट में पूर्व संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन पर लांछन लगाया गया है कि उन्होंने बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के आधार पर इस प्रकल्प की रचना की और उसके लिए सरकारी धन आवंटित कर दिया। जबकि श्री जगमोहन ने 7 मई को प्रधानमंत्री मनमोहन के नाम एक लम्बे खुले पत्र में इस योजना की रूपरेखा, उसके राष्ट्रीय महत्व एवं उपयोगिता, इस योजना की वैज्ञानिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला था। पर सीताराम येचुरी ने न तो श्री जगमोहन को बुलाने की आवश्यकता समझी, न ही उनके पत्र का कोई संज्ञान लिया। राजग के काल में जब वह योजना संसद में प्रस्तुत की गई थी तब वामपंथियों के अलावा सभी ने उसका स्वागत किया था। राज्यसभा में कांग्रेसी सदस्य डा. कर्ण सिंह और इसरो के पूर्व अध्यक्ष डा. कस्तूरी रंगन ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कुछ मूल्यवान सुझाव भी दिये थे, किन्तु सीताराम येचुरी ने इन दोनों महानुभावों से भी परामर्श करने की आवश्यकता नहीं समझी।श्री जगमोहन ने प्रधानमंत्री के नाम अपने पत्र में लिखा था कि सरस्वती विरासत प्रकल्प के नाम से प्रसिद्ध इस परियोजना को पर्यटन की दृष्टि से “लुप्त नगरों, एक लुप्त सभ्यता एवं एक लुप्त नदी की यात्रा” जैसा आकर्षक नाम दिया गया है। इस परियोजना के अन्तर्गत निम्न कार्य किये जायेंगे-1. सूख चुकी सरस्वती नदी की घाटी की हड़प्पा बस्तियों का विस्तृत उत्खनन2. पुरातात्विक संग्रहालयों की स्थापना3. प्रत्येक स्थल पर सुन्दर पार्कों, प्रकाश-ध्वनि प्रदर्शनों की व्यवस्था करके पर्यटन केन्द्र बनाना4. शोध एवं प्रलेखन केन्द्रों की स्थापना5. भारतीय संस्कृति की 5000 वर्ष लम्बी यात्रा की प्रदर्शनी6. ग्रामीण समाज के लिए मनोरंजन एवं सैर सपाटे का परिसर खड़ा करना।इस परियोजना के राष्ट्रीय महत्व को बताते हुए उन्होंने लिखा कि1. इससे पर्यटन के आयाम का विस्तार होगा2. हमारी सभ्यता के उदय को नई दृष्टि मिलेगी3. हमारी प्राचीनता के प्रति दुनिया में रुचि पैदा होगी4. बड़ी संख्या में विश्व भर के विद्वान, पुरातत्ववेत्ता व वैज्ञानिक आकर्षित होंगे।हबीब का फतवाउन्होंने सरस्वती नदी के अस्तित्व के बारे में साहित्यिक साक्ष्यों के अलावा अनेक पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक खोजों का उल्लेख भी अपने पत्र में किया। किन्तु समिति ने इन सब बातों पर विचार किया या नहीं इसका रपट में कोई उल्लेख नहीं मिलता। सीताराम येचुरी जैसे कम्युनिस्ट राजनीतिज्ञों के लिए इरफान हबीब जैसे वामपंथी इतिहासकारों द्वारा सरस्वती नदी के अस्तित्व के विरुद्ध दिया गया फतवा अन्तिम शब्द है। उसके आगे जाने की उन्हें आवश्यकता ही नहीं है।उन्हें यह जानने से क्या मतलब है कि 1852 में ही गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर कनिंगघम के भाई एवं सिख इतिहास के प्रसिद्ध लेखक जे.डी. कनिंगघम को सरस्वती के लुप्त प्रवाह की खोज करने का काम दिया था और उन्होंने लम्बे परिश्रम से इस विषय पर एक रपट तैयार की थी। बाद में 1872 में सी.एफ. ओल्डहम और आर.डी. ओल्डहम ने सरस्वती नदी और उसकी सहायक धाराओं के प्राचीन प्रवाह क्षेत्र का अध्ययन किया था। 1940-41 में एक पुरातत्ववेत्ता आरियेल स्टीन ने पूर्व रियासत बहावलपुर में सरस्वती के सूखे प्रवाह मार्ग का एक भाग ढूंढ निकाला था। स्टीन ने ऐसे 90 स्थानों को चित्रित किया था जिनकी खुदाई से हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष मिलने का उन्हें पूर्ण विश्वास था। 1946 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक बनने पर सर मार्टीमर व्हीलर ने जान बूझकर इन स्थलों का उत्खन्न नहीं करवाया, किन्तु स्वाधीन भारत में उत्खनन से लगभग उन सभी स्थानों पर हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं। इस समय हड़प्पा सभ्यता के स्थलों की 2600 संख्या में से 2000 स्थल सरस्वती नदी की घाटी में रोपण से धौलावीरा और लोथल तक बिखरे पड़े हैं।1982 में दो वरिष्ठ वैज्ञानिकों-प्रो. यशपाल एवं बलदेव सहाय ने सेटेलाइट इमेजरी पर आधारित अपना अध्ययन नेशनल साइंस अकादमी के सामने प्रस्तुत किया था और इस अध्ययन पर एक के बाद एक तीन संगोष्ठियों का आयोजन हुआ था। मई 1998 में पोखरन विस्फोट के बाद भाभा आणविक अनुसंधान केन्द्र (बार्क) के अणु वैज्ञानिक डा. एस.एल. राव ने 800 गहरे कुंओं की खुदाई के आधार पर अपने शोध अध्ययन को करेंट साइंस नामक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका में प्रकाशित किया। उन्होंने पाया कि इस क्षेत्र में भूतल से नीचे पानी का प्रवाह 8 से 14 हजार साल पुराना है और अभी भी पीने योग्य है। वर्षा के अभाव के बावजूद जल प्रवाह निरंतर है। भूमि जल आयोग ने वहां 24 कुएं खोदे जिनमें से 23 का पानी मीठा निकला। केन्द्रीय भू जल ओथोरिटी एवं भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डा. के. श्रीनिवासन को विश्वास है कि सरस्वती के प्राचीन जल प्रवाह पर अकेले राजस्थान में दस लाख टयूब वेल बनाकर जल संकट को दूर किया जा सकता है।विभाजनकारी राजनीतिबंगलौर के जवाहर लाल नेहरू उच्च अध्ययन केन्द्र के प्रो.के.एस. वैद्य ने सरस्वती नदी के 1600 किलोमीटर लम्बे और 6 किलोमीटर चौड़े प्रवाह क्षेत्र की वैज्ञानिक आधार पर पुष्टि की है। भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के ही एक अन्य पूर्व महानिदेशक एवं हिम खण्ड विशेषज्ञ श्री वी.एम.के. पुरी ने सिद्ध किया है कि हरियाणा के जगाधरी के निकट आदिबदरी ही वैदिक सरस्वती का हरिद्वार था जहां सरस्वती नदी हिमालयी हिमखंडों से निकलकर मैदान में उतरती थी। शिमला विभाग के अधीक्षक पुरातत्ववेत्ता आई.डी. द्विवेदी ने आदिबदरी क्षेत्र में पुरातात्विक महत्व के तीन स्थलों की पहचान की है जहां उत्खनन होना चाहिए।जोधपुर की केन्द्रीय एरिड जोन रिसर्च इंस्टीटूट के तीन वैज्ञानिकों ने लैंड सेट इमेजरी का प्रयोग कर जैसलमेर के अति रेगिस्तान क्षेत्र में सरस्वती नदी के लुप्त प्रवाह की खोज की और पृथ्वी तल के काफी नीचे जल प्रवाह को पाया। सुदूर संवेदन पद्धति के जरिए चार प्रमुख वैज्ञानिकों -प्रो. यशपाल, बल्देव सहाय, आर.के. सूद और डी.पी. अग्रवाल ने अपने संयुक्त आलेख में लिखा कि, “ईसा पूर्व चौथी-पांचवी सहस्राब्दि में उत्तर-पश्चिमी राजस्थान सरस्वती के कारण कहीं अधिक हरा-भरा था।”चेन्नै स्थित सरस्वती शोध संस्थान के निदेशक श्री एस. कल्याण रमण ने लगभग 7000 पृष्ठों के सात विशालकाय खण्डों में सरस्वती नदी से सम्बंधित सभी साहित्यिक, पुरातात्विक एवं वैज्ञानिक खोजों पर देश-विदेश के अनेकानेक विद्वानों एवं वैज्ञानिकों के आलेख संकलित किये हैं। श्री जगमोहन ने ऐसे ही चार विशेषज्ञों की समिति को सरस्वती प्रकल्प के आदिबदरी से कुरुक्षेत्र जिले के भगवानपुर गांव तक के प्रथम चरण का मार्गदर्शन एवं अध्ययन करने का दायित्व सौंपा था। ये चार नाम हैं-इसरो के वैज्ञानिक डा. बलदेव सहाय, हिमखंड विशेषज्ञ वाई.के. पुरी, जल विशेषज्ञ माधव चितले एवं सरस्वती शोध संस्थान के निदेशक श्री एस.कल्याण रमण। किन्तु कम्युनस्टि राजनीतिज्ञों के लिए देश के मूर्धन्य विद्वानों, पुरातत्ववेत्ताओं एवं वैज्ञानिकों का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक वे उनके राजनीतिक हितों एवं बौद्धिक पूर्वाग्रहों के अनुकूल मत न दें। इसीलिए वामपंथी इतिहासकार पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से बहुत नाराज रहते हैं क्योंकि उसकी खोजें वैज्ञानिक होती हैं, जो वामपंथियों को अनुकूल नहीं बैठतीं। सरस्वती नदी वामपंथियों के लिए हौवा बन गई है, क्योंकि सरस्वती नदी का अस्तित्व प्रमाणित होने से 19वीं शताब्दी में पाश्चात्य विद्वत्ता द्वारा आविष्कृत “आर्य आक्रमण या आव्रजन सिद्धांत” ढह जाता है, वैदिक संस्कृति की प्राचीनता एवं भौतिक प्रगति उजागर हो जाती है। यह वामपंथियों को तनिक गंवारा नहीं है। क्योंकि भारतीय संस्कृति का प्राचीन गौरव सामने आने से राष्ट्रीय स्वाभिमान का भाव प्रबल होगा और प्रबल राष्ट्रीय चेतना उनकी राष्ट्र विरोधी, विभाजनकारी राजनीति के लिए खतरा बन जायेगी। अत: वामपंथी राहू भारतीय संस्कृति रूपी चन्द्रमा को ग्रसने को व्याकुल रहता है। (26 अक्तूबर, 2006)38

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Loose FASTag होगा ब्लैकलिस्ट : गाड़ी में चिपकाना पड़ेगा टैग, नहीं तो NHAI करेगा कार्रवाई

Marathi Language Dispute

‘मराठी मानुष’ के हित में नहीं है हिंदी विरोध की निकृष्ट राजनीति

यूनेस्को में हिन्दुत्त्व की धमक : छत्रपति शिवाजी महाराज के किले अब विश्व धरोहर स्थल घोषित

मिशनरियों-नक्सलियों के बीच हमेशा रहा मौन तालमेल, लालच देकर कन्वर्जन 30 सालों से देख रहा हूं: पूर्व कांग्रेसी नेता

Maulana Chhangur

कोडवर्ड में चलता था मौलाना छांगुर का गंदा खेल: लड़कियां थीं ‘प्रोजेक्ट’, ‘काजल’ लगाओ, ‘दर्शन’ कराओ

Operation Kalanemi : हरिद्वार में भगवा भेष में घूम रहे मुस्लिम, क्या किसी बड़ी साजिश की है तैयारी..?

क्यों कांग्रेस के लिए प्राथमिकता में नहीं है कन्वर्जन मुद्दा? इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रहे अरविंद नेताम ने बताया

VIDEO: कन्वर्जन और लव-जिहाद का पर्दाफाश, प्यार की आड़ में कलमा क्यों?

क्या आप जानते हैं कि रामायण में एक और गीता छिपी है?

विरोधजीवी संगठनों का भ्रमजाल

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies