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पुस्तक चर्चा

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May 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 May 2006 00:00:00

पत्रकारिता पर कुछ पुस्तकेंभारत में पत्रकारिताबेबाक विवेचनपुस्तक परिचयपुस्तक का नाम : भारत में पत्रकारितालेखक : आलोक मेहतामूल्य : रु. 105.00,पृष्ठ : 286प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट,इण्डिया, ए-5, ग्रीन पार्क,नई दिल्ली-110016″भारत में पत्रकारिता” किन टेढ़े-मेढ़े रास्तों से गुजरते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही है, इसका सटीक विश्लेषण प्रस्तुत किया है, प्रख्यात पत्रकार एवं आउटलुक पत्रिका के संपादक श्री अलोक मेहता ने। समय के साथ पत्रकारिता के बदलते तेवर, राजनीति और पत्रकारिता के मध्य रिश्ते, पत्रकारिता की भाषा, प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की प्रतिस्पद्र्धा, न्यायालयीन रपट, संसदीय और सांस्कृतिक समाचारों की प्रस्तुति, आचार संहिता, अदालत की अवमानना, पत्रकारिता से जुड़े कानून, प्रेस परिषद और प्रेस से संबंधित शिकायतें आदि अनेक बिन्दुओं पर लेखक ने बेबाक विश्लेषण करते हुए अपनी राय दी है। गुजरात दंगों में समाचार पत्रों की भूमिका के सन्दर्भ में प्रेस परिषद मेंकुछ अखबारों के विरुद्ध चली कार्रवाई का विवरण प्रस्तुत किया गया है। लेख के प्रारंभ में प्रेस परिषद द्वारा दंगों के समय मीडिया से की गई अपील को भी उद्धृत किया गया है जो साम्प्रदायिक दृष्टि से संवेदनशील मामलों पर मार्गदर्शन का काम करती है-“प्रेस को ऐसे मामलों, जिनका सांप्रदायिक संबंध हो, पर टिप्पणी एवं रपट करने में समुचित सिद्धान्तों एवं मानकों का कड़ा पालन करना चाहिए। इसी प्रकार का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है-विकृत, अतिशयोक्तिपूर्ण, भड़काऊ और असंयमित भाषा का इस्तेमाल न करना। स्थानीय समाचार पत्रों को विशेष रूप से इस सिद्धांत का पालन करना चाहिए।” (पृ. 271)प्रेस परिषद में शिकायत और निवारण नामक अध्याय में जिन प्रमुख घटनाओं का विवरण प्रस्तुत किया गया है “उनमें सुश्री उमा भारती बनाम संपादक, द वीक” भी शामिल है। “पतन के लिए संपादक भी जिम्मेदार” नामक अध्याय में श्री मेहता पत्रकारों और संपादकों की भूमिका का विश्लेषण करते हुए कहते हैं- “पत्रकारों में जो गुटबाजी है उससे पत्रकारों का नाश अधिक हो रहा है… हमारे यहां कई लोग खुद ही कहते हैं… कि विदेशी मीडिया आ जाए तो हमारा भला होगा। चूंकि तब मेरी तनख्वाह हिंदी का अखबार होते हुए भी तीन लाख (सालाना) तो हो जाएगी। हर नया पत्रकार चाहता है कि वह सीधे अन्तरराष्ट्रीय विषय पर लिखे। मैं जब उनसे कहता हूं कि झाबुआ के बारे में लिख दे भाई। तो वह कहता है, वहां (झाबुआ) नहीं जाना…. अटल बिहारी वाजपेयी का साक्षात्कार मुझे करने दीजिए।” इस प्रकार नए और उदीयमान पत्रकारों की मानसिकता का भी चित्रण पुस्तक में किया गया है। एक अन्य अध्याय में वे लिखते हैं “….. ऊंचे आचार सिद्धांतों के बिना अखबार और उसके पत्रकार सरकारी अफसरों की तरह न केवल विफल होंगे, वरन समाज के लिए खतरनाक भी हो जाएंगे… पत्रकार चाय की केतली की तरह है, जिसे गरम पानी डालते हुए भी स्वयं ठण्डा रहना है।” भारतीय पत्रकारिता के इतिहास को संजोए हुए यह पुस्तक सरल सुबोध भाषा में लिखी गई है। उदीयमान पत्रकारों के लिए प्रेरणा और स्थापित पत्रकारों के लिए यह आईना है। समीक्षकमैं और मेरी पत्रकारितासमकालीन पत्रकारिता का रोचक दस्तावेजपुस्तक का नाम : मैं और मेरी पत्रकारितालेखक : बबन प्रसाद मिश्रमूल्य : रु. 300/-पृष्ठ : 232प्रकाशक : मेधा बुक्सनवीन शाहदरा,दिल्ली-110032आंचलिक पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित बबन प्रसाद मिश्र एक जाना-पहचाना नाम है। छत्तीसगढ़ प्रदेश में हिन्दी पत्रकारिता के वे शिखर पुरुष हैं। उन्हीं के पत्रकार एवं संपादक जीवन के अनुभवों की जीवंत प्रस्तुति है “मैं और मेरी पत्रकारिता”। दो चार पत्रकार नहीं वरन् पत्रकारिता की एक पूरी पीढ़ी को उन्होंने तैयार किया है, प्रोत्साहन दिया है, पुष्पित-पल्वित होते देखा है। 1962 में उन्होंनेहिन्दी दैनिक “युग धर्म” जबलपुर से अपने पत्रकार जीवन की शुरुआत की। उन्होंने युगधर्म, रायपुर, हिन्दी दैनिक स्वदेश- भोपाल, दैनिक नवभारत-रायपुर के संपादक, प्रबंधक आदि अनेक दायित्वों का भी कुशलतापूर्वक निर्वहन किया। स्वाभाविक ही उन्होंने जो भी लिखा है और आगे जो भी लिखेंगे, उसके पीछे 40-50 वर्षों की साधना और उनके अनुभवों की समृद्ध थाती है। अपनी जीवन गाथा के साथ वे धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं, ठीक वैसे ही जैसे किसी गांव का एक साधारण युवक, साधारण परिवेश से निकलकर पत्रकारिता की डगर पर आगे बढ़ता है। रा.स्व.संघ से किशोरावस्था में परिचय, आजादी के आंदोलन का रोमांच और गुरुदत्त के ऐतिहासिक उपन्यास “पथिक” के प्रभाव के साथ श्री मिश्र के संघर्षपूर्ण बचपन की कहानी ठीक वैसी ही है जैसे स्वतंत्रता संग्राम के अन्य नायकों की। बचपन में उनके पिता को देश की आजादी में भाग लेने के “अपराध” में जेल जाना पड़ा। और आगे, एक समय ऐसा भी आया जब आजाद देश में “अभिव्यक्ति की आजादी” के अपने मूल अधिकार की रक्षा के लिए बबन प्रसाद भी जेल गए। 26 जून, 1975 को आपातकाल की घोषणा हुई, नेता और लोकतंत्र समर्थकों पर मीसा और डी.आई.आर. का डण्डा चलने लगा, उधर बबन प्रसाद इस तानाशाही के विरुद्ध ने युगधर्म, रायपुर का विशेष अंक निकाल दिया। उन्होंने अत्यंत कड़ा संपादकीय लिखा, जिसका शीर्षक था- डी.आई.आर. यानी डंडा इंदिरा रूल। और इसके प्रकाशित होते ही इंदिरा जी का डंडा युग धर्म-पर चल पड़ा। प्रेस की बिजली गोल और श्री मिश्र जेल में। एक पत्रकार के जीवन में कितने उतार-चढ़ाव, अच्छे बुरे दिन आते हैं, उसका आद्योपांत विवरण श्री मिश्र की इस जीवनी में देखने को मिलता है। समय-समय पर उनके द्वारा प्रमुख मुद्दों पर लिखे गए अग्रलेख भी इसमें संकलित हैं। वस्तुत: यह सिर्फ जीवनी ही नहीं है वरन् समकालीन पत्रकारिता का दस्तावेज भी है। युवा पत्रकारों से लेकर आज के सिद्धहस्त कलम-सिपाहियों के लिए समान रूप से प्रेरक, पठनीय। समीक्षकसंचार और पत्रकारिता के विविध आयामसंचार पर भारतीय दृष्टिपुस्तक का नाम : संचार और पत्रकारिताके विविध आयामलेखक : डा. ओम प्रकाश सिंहमूल्य : रु. 650, पृष्ठ : 390प्रकाशक : बी.के. तनेजाक्लासिकल पब्लिशिंग कम्पनी28, शापिंग सेन्टर, करमपुरानई दिल्ली-110015संचार और पत्रकारिता की भारतीय दृष्टि पर मौलिक और शोध परक सामग्री के कारण पुस्तक “संचार और पत्रकारिता के विविध आयाम” उल्लेखनीय बन पड़ी है। ग्रन्थ में संचार के सैद्धान्तिक पक्षों, व्यवहारिक संदर्भों के साथ-साथ उसके ऐतिहासिक विकास को भी प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने भलीभांति उकेरा है। पांच अध्याय और पत्रकारिता पर संवैधानिक दृष्टि के साथ इलेक्ट्रानिक और पिं्रट मीडिया पर भी उपयोगी सामग्री इसमें दी गई है।संचार के सिद्धान्त जैसे दुरूह विषय को रेखाचित्रों के माध्यम से सरल-सुबोध भाषा में लिखा गया है। हिन्दी माध्यम से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले स्नातक एवं परास्नातक कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए पुस्तक बहुत उपयोगी है। इसमें भारत में प्रेस के इतिहास और विकास, इलेक्ट्रानिक मीडिया तथा प्रसार भारती, केबिल टी.वी. पर भी उपयोगी सामग्री दी गई है। यद्यपि पुस्तक का मूल्य अत्यधिक है जो इसे साधारण पाठकों, विद्यार्थियों की पहुंच से दूर कर देता है। समीक्षक27

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