|
-अरुण कुमार सिंह
आज जिधर देखिए उधर ही लोग गुस्सा करते हुए दिखते हैं। चाहे घर या दफ्तर हो, सड़क या पगडण्डी हो या लोकतंत्र का मंदिर संसद-हर जगह लोग अपना आपा खो रहे हैं। पिछले दिनों कुछ सांसदों के गुस्से के कारण संसद शर्मसार हुई थी, तो आए दिन अनेक परिवार गुस्से से बर्बाद हो रहे हैं। यह बर्बादी किस कदर हो रही है इसका एक उदाहरण देखिए। दिल्ली के नेहरू विहार में 35 वर्षीय शशिरंजन रहते थे। छात्रों को भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करवाने वाले एवं अनेक पुस्तकों के रचयिता शशिरंजन की पूरे मुहल्ले में एक अलग पहचान थी। छोटे-बड़े सभी उन्हें “सर जी” बोलते थे। तीन साल की नन्हीं बेटी, पत्नी अंजू एवं मां प्रतिभा के साथ रहने वाले शशिरंजन के पास प्रतिदिन 100 से अधिक छात्र पढ़ने आते थे। सुख-समृद्धि में कोई कमी थी नहीं। हंसी-खुशी घर-गृहस्थी चल रही थी। पर अचानक 12 जुलाई, 2006 को गुस्सा के कारण पूरा परिवार बिखर गया। उस दिन उनकी पत्नी अंजू द्वारा बच्ची को मारने की वजह से सास-बहू में तू-तू, मैं-मैं हो गई। इसके बाद सास किसी काम में व्यस्त हो गई और बहू अपने कमरे में चली गई। किन्तु कुछ देर बाद भी जब वह बाहर नहीं निकली तो घर वालों को शंका हुई। दरवाजा खटखटाया गया, फिर भी अन्दर से दरवाजा खुला नहीं। जब घर वालों ने दरवाजा तोड़कर अन्दर झांका तो वहां का नजारा ही कुछ और था। अंजू अपनी चुनरी के सहारे पंखे से लटक रही थी। परिजनों ने एम्स में कार्यरत उसके डाक्टर भाई को फोन पर इसकी सूचना दी और उसे एक स्थानीय अस्पताल में ले गए। किन्तु चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया। लाडली छोटी बहन की लाश देखकर उसके भाई बिफर पड़े और तिमारपुर थाने पहुंच गए। वहां उन्होंने प्रथम सूचना रपट (एफ.आई.आर.) लिखवाई। एफ.आई.आर. में शशिरंजन, उनकी मां प्रतिभा एवं बहन सीमा को अभियुक्त बनाया गया और आरोप लगाया गया कि दहेज न देने की वजह से इन सबने मिलकर अंजू की हत्या कर दी। पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया। उल्लेखनीय है कि सीमा घटना से 8-10 घंटे पहले ही मुजफ्फरपुर से दिल्ली आई थी। उसके पति श्री उमेश मुजफ्फरपुर में रेलवे में खण्ड अभियन्ता हैं। अपना काम-धाम छोड़कर वह इन सबकी जमानत कराने में लगे हैं, किन्तु अभी तक सीमा को ही जमानत मिली है। दिल्ली उच्च न्यायालय में मिले तो कहने लगे, “मेरे लिए बहुत बड़ी मुसीबत है। क्षण भर के गुस्से से पूरा परिवार तबाह हो गया। दहेज मांगने की बात पूरी तरह गलत है क्योंकि चार साल पहले ही अंजू एवं शशिरंजन की शादी हुई थी। इस दौरान कभी भी दहेज मांगने का मामला सामने नहीं आया था।”
यह दहेज का मामला है या नहीं, यह तो अदालत तय करेगी। बहरहाल अंजू के गुस्से का परिणाम दो परिवार भुगत रहे हैं। खुद उसकी 3 साल की नन्हीं बेटी मां के प्यार से वंचित हो गई और उसके पति का भविष्य क्या होगा, यह तो समय बताएगा।
ऐसा गुस्सा बच्चों में भी सर चढ़कर बोल रहा है। इसी अक्तूबर माह में दिल्ली के रामकृष्णपुरम और जनकपुरी में रहने वाले दो बच्चों ने गुस्से से आत्महत्या कर ली। इन दोनों को उनके माता-पिता ने टी.वी. देखने से मना किया था। रामकृष्णपुरम में रहने वाली 14 वर्षीया किरण नौवीं कक्षा की छात्रा थी, तो जनकपुरी के विकास की उम्र सिर्फ दस साल थी। टी.वी.देख रही किरण को उसकी मां ने बर्तन धोने को कहा था, तो विकास को उसके पिता ने टी.वी. छोड़कर “होम-वर्क” पूरा करने के लिए।
समाज के नव-धनाढ्य वर्ग के बच्चों के गुस्से का क्या कहना। 18 अक्तूबर को गुड़गांव (हरियाणा) में डा. अमित दीवान के साथ दो अमीरजादों ने जो कुछ किया उसके सामने तो दरिंदा भी एक पल के लिए डर गया होगा। गुड़गांव के ही कल्याणी अस्पताल में कार्यरत डा. अमित शाम 8 बजे के आस-पास अपने घर के बाहर गाड़ी खड़ी कर रहे थे। तभी दो अमीरजादों (जीतेश गुदारा और नागेन्द्र) की गाड़ी ने उनकी गाड़ी को टक्कर मार दी। स्वाभाविक रूप से डा. अमित ने उन्हें कुछ कहा। इस पर गाड़ी चला रहे जीतेश गुदारा को गुस्सा आ गया। उसने जान-बूझकर पुन: डा. अमित की गाड़ी को टक्कर मार दी। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उन दोनों का गुस्सा यहीं शान्त नहीं हुआ। गाड़ी पर बैठे-बैठे ही नागेन्द्र ने नीचे खड़े डा. अमित का कालर पकड़ लिया और जीतेश तेजी से गाड़ी भगाने लगा। लगभग 100 मीटर जाने के बाद गाड़ी का एक टायर पंक्चर हो गया। इसके बाद वे दोनों डा.अमित को सड़क पर तड़पता छोड़कर भाग गए। बुरी तरह घायल डा. अमित इन दिनों नई दिल्ली के सर-गंगाराम अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहे हैं। होश में न होने के कारण उनका बयान भी अभी तक नहीं लिया जा सका है। चिकित्सकों के अनुसार उनकी स्थिति नाजुक है। डा. अमित दीवान की बड़ी बहन डा. अलका कपूर उनकी सेवा में लगी हैं। इस घटना से वह बड़ी आहत हैं। 23 अक्तूबर को उन्होंने मुझसे बस इतना कहा, “समाज में रहने के लिए अब शरीफों को भी गुण्डा बनना होगा।” वहीं डा. अमित के ससुर डा. रमेश हाण्डा कहते हैं, “लोग किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं। जंगलराज कायम हो चुका है। जिसके मन में जो आता है, वही करता है। किसी को कानून का खौफ नहीं है।”
सच में कानून का खौफ हो भी कैसे? रोंगटे खड़ी कर देने वाली इस घटना को पुलिस महज सड़क हादसा मान रही है। इसलिए जीतेश गुदारा पर सिर्फ लापरवाही से वाहन चलाने का आरोप लगाकर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। अदालत ने उसे जमानत भी दे दी है। वहीं नागेन्द्र को अभी तक पकड़ा नहीं गया है।
दिल्ली का जेसिकालाल हत्याकाण्ड भी एक बड़े बाप के बेटे के गुस्से का ही नतीजा था। मनु शर्मा नामक युवक ने बार बाला जेसिकालाल की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जेसिका का दोष सिर्फ इतना था कि उसने बार बन्द होने की वजह से मनु शर्मा को शराब देने में असमर्थता व्यक्त की थी। उल्लेखनीय है कि मनु शर्मा हरियाणा सरकार में हाल तक मंत्री रहे विनोद शर्मा का पुत्र है। बेटे की करतूतों की वजह से ही उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा है।
7
टिप्पणियाँ