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इधर मिजाजपुर्सी उधर बमबारीखबर है कि पाकिस्तान की धरती पर एक गुप्त अमरीकी हवाई हमले में अल कायदा के चार बड़े आतंकवादियों की मौत हो गई है। इससे आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान की लड़ाई का सारा ढांचा ही चरमरा गया है। सूत्रों के अनुसार अमरीका ने यह सैनिक कार्रवाई अपनी ही गुप्त सूचना के आधार पर की और इस बारे में उसने पाकिस्तानी सेना की गुप्तचर एजेंसी आई.एस.आई. को भी हवा तक नहीं लगने दी, अन्यथा उसे शक था कि यह एजेंसी आतंकवादियों को चौकन्ना कर देती और वे भागने में सफल हो जाते। पर इससे अमरीका तथा पाकिस्तान के सम्बंधों में खटास पैदा हो गई है। इस्लामाबाद से प्रकाशित “डेली टाइम्स” ने खबर दी है कि इन चार आतंकवादियों की मौत एक अमरीकी प्रक्षेपास्त्र के हमले में हुई। यदि यह सच है तो यह हमला अल कायदा के लिए मौत की घंटी से भी ज्यादा खतरनाक है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि इससे पड़ोसी अफगानिस्तान में आतंकवादी हमलों में कमी आएगी। पिछले कुछ दिनों में अफगानिस्तान में आत्मघाती हमलों में काफी वृद्धि हो गई थी। हालांकि इस अमरीकी हमले में अल कायदा का दूसरे नम्बर का नेता अल जवाहिरी बाल-बाल बच गया। ओसामा बिन लादेन के नए टेप के प्रसारण से पता चलता है कि इस आतंकवादी गुट के चोटी के नेता अभी भी जीवित हैं। मरने वाले आतंकवादियों की लाशें तो नहीं मिली हैं, परन्तु पाकिस्तानी अधिकारियों के अनुसार इनमें से एक विस्फोटक बनाने में माहिर मिधात मुर्सी अल सईद उमर था। 2001 में तालिबान के पतन से पहले उसने पूर्वी अफगानिस्तान में एक शिविर में सैकड़ों आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिया था। दूसरा अल जवाहिरी का जमाई अब्दुल रहमान अल मगरिबी बताया जाता है, जो मोरक्को का रहने वाला है। यह आतंकवादी संगठन के लिए जन सम्पर्क का काम करता था। परन्तु मारा गया सबसे बड़ा आतंकवादी अल कायदा का खालिद हबीब हो सकता है जो अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर अल कायदा की घातक कार्रवाइयों का मुखिया था। पाकिस्तान के अधिकारी उसे 2003 में मुशर्रफ पर हुए हमले का दोषी बताते हैं।खाते भी हैं, गुर्राते भी हैंजम्मू-कश्मीर में जहां आतंकवादियों के आतंक से भयभीत परिवार सुरक्षित स्थानों की ओर अभी भी पलायन को मजबूर हैं, वहीं सरकार ने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा में बड़ी संख्या में पुलिस व अन्य सुरक्षा बलों को लगा रखा है। एक रपट के अनुसार, 20 प्रमुख अलगाववादी नेताओं को घाटी में सरकार ने सुरक्षाकर्मी और सरकारी वाहन मुहैय्या कराए हैं। पाकिस्तान का निरंतर राग अलापने वाले कुछ अलगाववादियों को तो “जैड” सुरक्षा श्रेणी भी मिली हुई है। सरकारी खजाने की कीमत पर ऐसे नेता गाड़ियों के बड़े काफिले के साथ लगातार भ्रमण करते रहते हैं। एक अनुमान के मुताबिक अलगाववादियों की इस सुरक्षा पर सरकार प्रतिवर्ष दस करोड़ रुपए व्यय कर रही है और इस सारे व्यय की पूर्ति राज्य सरकार को केन्द्र सरकार कर रही है। उल्लेखनीय है कि कुछ अलगाववादी नेता बाकायदा सरकारी पेंशन भी ले रहे हैं क्योंकि वे राज्य विधान सभा के पूर्व सदस्य की श्रेणी में आते हैं। लेकिन इसी के साथ बिना किसी भय के सरकारी सुविधाओं का उपयोग करते हुए भी वे भारत के विरोध में ही स्वर बुलन्द किए हुए हैं।दूसरी तरफ, सरकार ऐसे अलगाववादी नेताओं के विरुद्ध किसी कार्रवाई की बजाए उनके इस रूप को लोकतंत्र के नाम पर तर्कसंगत करार दे रही है। कुछ राष्ट्रवादी विश्लेषकों के अनुसार, “अलगाववादी नेता कश्मीर में फल-फूल रहे हैं। एक तरफ तो वे सरकारी सुविधाओं का पूरा उपयोग कर रहे हैं, दूसरी ओर भारत के विरुद्ध बोलकर शत्रु देश की सहानुभूति और सहायता भी ले रहे हैं।”28
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