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ममता की छांह मेंजब भी सास बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।अपनी सासू मां (बिल्कुल दाएं) केसाथ श्रीमती माधुरी अभ्यंकर (बीच में)व उनकी देवरानीमेरी सहेली का मानना है, “कितना भी कहो सास सास ही होती है, उनसे मां की बराबरी नहीं हो सकती। असली प्यार तो सिर्फ मां करती है।” पर मेरा अनुभव अलग है। मेरे लिए हर रिश्ते का महत्व है। रिश्तों की परस्पर तुलना करके हम गलतियां ही करते हैं। मां-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी एवं सास-ससुर के प्यार का अपना-अपना स्थान है और महत्व है। हमारे संयुक्त परिवार में आठ सदस्य हैं। हम दोनों देवरानी और जेठानी, हमारे पति, सास-ससुर और बच्चे, इन्हीं को मिलाकर बना है हमारा छोटा सा संयुक्त परिवार। मेरी सासू जी हम सबको बहुत प्यार करती हैं। वह खुद एक कुशल गृहिणी हैं, योग शिक्षक भी हैं। सभी को पढ़ने के लिए और अपने निर्णय स्वयं लेने के लिए सदा प्रेरित करतीं हैं। कभी किसी से भेद-भाव नहीं करतीं। इतना ही नहीं, सबके गुणों को सींचते हुए स्नेहमयी, ममतामयी, कर्तृत्ववान सासूजी हमारे परिवार की रीढ़ हैं। अभी हाल ही में उन्होंने जीवन के 72 वर्ष पूर्ण किए, सभी ने उत्साह से उनका जन्मदिन मनाया, उन्हें शुभकामनाएं दीं। रसोई घर में विविध प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाकर प्रेम से खिलाने में उनकी विशेष रूचि है। और जब मैं कार्यालय जाने को निकलती हूं तो प्रेम से अपने हाथों से बनाई फूलों की माला मेरे बालों में गूंथ देती हैं। मैं पुणे की श्रीवत्स संस्था में अनाथ बच्चों के पुनर्वसन का काम करती हूं। सन् 1984 में जब ये काम मैंने शुरू किया तब से मैंने सासूजी को व्यक्तिगत खर्च देना शुरू किया। आज 21 वर्षों बाद भी उसी अनुपात में यह जारी है, मैं अपना वेतन बढ़ने के साथ उनको दी जाने वाले राशि भी बढ़ाती गयी। एक दिन सासूजी ने मुझसे कहा, “बहू, मेरे लिए इतने रुपए काफी हैं और मत बढ़ाओ।” मेरी देवरानी पिछले चार वर्ष से हैदराबाद में पीएच.डी. कर रही है। शोध कार्य शुरू करते समय उसका बेटा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था। उसे सासू मां की छत्रछाया में सौंपकर ही वह निश्चिंततापूर्वक शोधकार्य में रम सकी। मेरी सासूजी को हम बहुओं पर गर्व है। वे कहती हैं, “एक ने अपना जीवन समाज कार्य में अर्पित किया और दूसरी ने वैज्ञानिक खोज में।” वह हमेशा हमें प्रेरणा और प्रोत्साहन देती हैं। आज भी हर कठिनाई में हम दोनों उन्हीं की शरण लेते हैं। उनकी ममता हमारा सम्बल है। हम तीन पीढ़ी के सदस्य यदि आज संयुक्त परिवार में बड़े प्रेम, सुख-शांतिपूर्वक रह रहे हैं, तो इसकी नींव मेरी सासूजी ने डाली है।माधुरी प्रमोद अभ्यंकर2062, सुभाष नगर, शुक्रवारपेठपुणे-4990002 (महाराष्ट्र)20
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