|
पाञ्चजन्य में आयोजित की गई बहस “क्या भारतीय पुरुष स्वभाव से स्त्री विरोधी होते हैं” को जो महत्वपूर्ण प्रतिसाद मिला है उसके लिए हम हार्दिक आभारी हैं। इस बहस में हमको कुल 983 पत्र मिले जिनमें से 11 पत्र हमने छापे। जिनके पत्र प्रकाशित किए गए उन्हें तथा जिन्होंने अपने विचार भेजे उन सभी को हम हार्दिक बधाई एवं साधुवाद देते हैं। उन्होंने पुन: एक बार सिद्ध किया कि पाञ्चजन्य की पाठिकाएं सजग, सचेत एवं राष्ट्रीयता की भावना से ओत प्रोत आधुनिक दीप- शिखाएं हैं।इस बार हम दूसरा विषय दे रहे हैं- क्या फैशन करना स्त्री-सम्मान विरोधी है? चाहे मंदिर हों या प्राचीन व आधुनिक कलाकृतियां, भारतीय स्त्री के सौंदर्य एवंरूप की गरिमा का सर्वत्र अंकन, वर्णन और प्रभाव दिखता है। पर आज भी अक्सर घरों में युवतियों को यह सुनने को मिलता है कि, “फैशन मत करो, बिगड़ जाओगी” या “तौबा, वह तो इतना फैशन करती है, उसका चालचलन ठीक नहीं है।” तो क्या समय के साथ अपनी वेशभूषा और रूप सज्जा में फैशन का पुट देने का अर्थ है बिगड़ जाना और चाल चलन खराब होना? अगर बेटा रात को देर से आए तो कहा जाता है कि वह बहुत मेहनती है और बेटी को देर हो जाए तो कहते हैं, वह बिगड़ गई है। यह दृष्टिकोण कितना उचित है कितना अनुचित? हम तो आपके सामने केवल चर्चा का मुद्दा रख रहे हैं। आप इस संदर्भ में हमें 250 शब्दों में अपने विचार भेजें तथा साथ में फोटो भी और साफ-साफ लिखा पता भी। चुने हुए पत्रों को 250 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।19
टिप्पणियाँ