जमात-उल-मुजाहिदीन, बंगलादेश (जे.एम.बी.) का ऐलान
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जमात-उल-मुजाहिदीन, बंगलादेश (जे.एम.बी.) का ऐलान

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May 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 May 2006 00:00:00

संविधान नहीं कुरान चाहिएप्रतिनिधिआम आदमी की जो हालत है सो तो है ही, बंगलादेश में अब न्यायपालिका भी सुरक्षित नहीं बची है। 14 नवम्बर, 2005 को जमात-उल- मुजाहिदीन, बंगलादेश ने दो न्यायाधीशों जस्टिस सोहेल अहमद और जगन्नाथ पाण्डेय की दिन दहाड़े हत्या कर दी। 17 अक्तूबर से 20 नवम्बर के बीच 6 न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं पर जानलेवा हमले किए गए, 13 अन्य को जान से मारने की धमकी दी गयी। इन घटनाओं के पीछे जिहादी तत्वों की एक ही मांग है कि “मनुष्यों द्वारा बनाए गए कानून उन्हें स्वीकार नहीं हैं और कुरान के कानून ही लागू हों।” इन घटनाओं के प्रति गंभीर चिंता जताते हुए बंगलादेश न्यायिक सेवा समिति (बीजेएसए) ने गत वर्ष 21 नवम्बर को एक आपात बैठक आयोजित की। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि कोई भी न्यायाधीश किसी दूसरे जिले में न्यायिक कार्य हेतु नहीं जाएंगे।न्यायपालिका पर प्रारम्भ हुए इन हिंसक हमलों से बंगलादेश का बुद्धिजीवी समाज भौंचक है। सन् 2001 में बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी, जमात उल इस्लामी और इस्लामी एक्य जोट गठबंधन के सत्ता में आने के बाद से हिंसक गतिविधियां अपने पूरे उफान पर हैं। न्यायपालिका के साथ-साथ विपक्षी नेताओं, उदारवादी एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, लेखकों, पत्रकारों, साहित्यकारों, गैरसरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों एवं कलाकारों पर एक के बाद एक जानलेवा हमले हुए हैं। 27 फरवरी, 2004 को बंगलादेश में बहुचर्चित और सुविख्यात उदारवादी लेखक प्रोफेसर हुमायूं आजाद पर रमना नामक स्थान पर बमों से हमला, 21 मई, 2004 को सिलहट में बंगलादेश के ब्रिटेन में राजदूत अनवर चौधरी पर हमला, 21 अगस्त, 2004 को प्रमुख विपक्षी नेता शेख हसीना पर एक रैली में हमला और 27 जनवरी, 2005 को पूर्व वित्त मंत्री ए.एम.एस. किर्बिया की नृशंस हत्या ने स्पष्ट कर दिया है कि बंगलादेश का भविष्य क्या होगा। अनेक बुद्धिजीवियों का स्पष्ट मानना है कि जिहादी तत्व बंगलादेश को तालिबानी राज्य का नया संस्करण बनाने पर तुले हैं।18 अक्तूबर, 2005 को सिलहट संभाग के त्वरित ट्रायब्यूनल न्यायाधीश बिप्लब गोस्वामी पर उनके निवास पर जानलेवा हमला किया गया। 3 अक्तूबर, 2005 को जमात-उल-मुजाहिदीन, बंगलादेश ने चांदपुर, लक्ष्मीपुर एवं चटगांव जिलों के न्यायालयों में श्रृंखलाबद्ध विस्फोट किए जिसमें दो लोग मारे गए, 22 घायल हुए। चटगांव के जिला न्यायाधीश इस विस्फोट में बाल-बाल बचे। ये मात्र कुछ उदाहरण हैं। हकीकत यह है कि पूरे देश में न्यायपालिका का स्वतंत्र रूप से देश के संविधान के अनुसार काम करना कठिन हो गया है। जिहादी तत्व एवं आतंकवादी संगठनों ने न्यायालयों पर शरीयत के अनुसार फैसले सुनाने के लिए दबाव बढ़ा दिया है।न्यायाधीशों की हत्या करने वालों को 40 साल की कैददक्षिणी बंगलादेश के एक न्यायालय ने गत 20 फरवरी को चार प्रमुख इस्लामी आतंकवादियों को दो न्यायाधीशों की हत्या के मामले में 40 वर्ष कैद की सजा सुनाई है। गत वर्ष 14 नवम्बर को प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन, बंगलादेश (जे.एम.बी.) के नेतृत्व में आतंकवादियों के एक स्वघोषित आत्मघाती दस्ते ने एक विस्फोट कर वरिष्ठ सहायक न्यायाधीश जस्टिस सोहेल अहमद और जगन्नाथ पाण्डेय की हत्या कर दी थी। सजा पाने वाले चारों आतंकवादियों में जे.एम.बी. का प्रमुख अब्दुर रहमान और जगराता मुस्लिम जनता बंगलादेश (जे.एम.जे.बी.) का आपरेशन कमांडर इस्लाम बंगला भाई शामिल हैं।11

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