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सच क्यों छिपाया

by
May 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 May 2006 00:00:00

सांसद रिश्वत काण्ड में निष्कासित बसपा सांसद राजाराम पाल के इस पत्र पर संसद मौन क्यों?

क्या भ्रष्टाचार उजागर करने के “गुनाह” में जबरन फंसाया गया?

पवन कुमार बंसल ने अपनी रपट में इस पत्र का उल्लेख तक क्यों नहीं किया?

राजाराम पाल हर कदम की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय को देते रहे और उनका कहना है कि उनके द्वारा प्रस्तुत तथ्यों की अनदेखी कर उन्हें अकारण दोषी ठहराया गया, यहां सांसद रिश्वत काण्ड की जांच की संसदीय जांच समिति के तत्कालीन अध्यक्ष श्री पवन कुमार बंसल को लिखे गए उनके पत्र का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है जिसका बंसल रिपोर्ट में रहस्यमय ढंग से उल्लेख तक नहीं किया गया। बाद में श्री बंसल स्वयं एक घोटाले में फंसे और उन्हें समिति से त्यागपत्र देना पड़ा। मूल प्रश्न यही है कि सच जो भी हो वह सामने आना चाहिए।

दिनांक-18/12/05

सेवा में,

श्री पवन कुमार बंसल,

अध्यक्ष, संसदीय जांच समिति,

कमरा नम्बर: 62, संसद भवन

नई दिल्ली-110001

विषय: “आज तक” द्वारा दूरदर्शन पर प्रसारित विडियो-टेप के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण।

महोदय,

मैंने दिनांक 12 अप्रैल,2005 को ही एक पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी एवं गृहमंत्री जी को लिखा था, जो भ्रष्टाचार में लिप्त ऊर्जा सचिव और सी.एम.डी.- एन.एच.पी.सी. के नियुक्ति से सम्बन्धित हैं (लिखे गए पत्र की छाया प्रति तथा उसकी पावती की छाया प्रति संलग्न है)। दिनांक 20 अप्रैल, 2005 को अध्यक्ष-सह प्रबन्ध निदेशक की नियुक्ति हेतु उम्मीदवार श्री एस.सी.शर्मा जो तत्कालीन सी.एम.डी. निप्को हैं, अपने एक कर्मचारी मिस्टर आचार्या के साथ मेरे निवास स्थान 199, नार्थ एवेन्यू पर आये और उपरोक्त पत्र की छाया प्रति दिखाते हुए मेरे शिकायती पत्र को वापस लेने के लिए मुझसे आग्रह किया और कहा कि सर, आप यह लिख दें कि उपरोक्त पत्र मेरे हस्ताक्षर से नहीं जारी किया गया है, इसके बदले में मैं आपको मुँह माँगा ईनाम दूँगा तथा मुझे वर्ष 2005 का निप्को का एक कैलेण्डर और डायरी भेंट किया। जब मैंने उनके अनुसार खण्डन सम्बन्धी पत्र लिखने से मना किया तो उन्होंने इशारे में कहा कि मैं भी उ.प्र. का रहने वाला हूँ और समय आने पर आपको मैं जवाब दे सकता हूँ।

ठीक इस घटना के बाद दिनांक 26 अप्रैल,2005 को जैसा कि प्रसारित सी.डी.में दिखाया गया है, मेरे पास संसद में प्रश्न उठाने के सम्बंध में एक महिला आयी जिसने अपना नाम नमिता मल्होत्रा बताया और कुछ प्रश्नों के कागजात मुझे दिये, मैंने कहा कि मैं इसे देखूँगा तथा समय आने पर लगाऊँगा लेकिन मुझे उसके बात व्यवहार से ऐसा प्रतीत हुआ कि इसमें कोई न कोई साजिश है, अत: मैंने उस पर निगरानी हेतु एक लड़का जो मेरा पी.ए. नहीं है, रवीन्द्र कुमार को पीछे लगा दिया।

पुन: मैंने दिनांक 17 जुलाई,2005 को एक और पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी को दिनांक 12 अप्रैल,2005 के सन्दर्भ में “रिमाइण्डर” के रूप में लिखा जिसमें एस.सी.शर्मा के खिलाफ सी.बी.सी. द्वारा अनुशंसित सीबीआई जाँच करवाने हेतु ऊर्जा मंत्रालय को लिखे गए पत्र की छाया प्रति भी संलग्न की थी। (छाया प्रति संलग्न)। उक्त पत्र लिखने के एक सप्ताह बाद मुझे मेरे आवास 199, नार्थ एवेन्यू के दूरभाष पर एस.सी.शर्मा ने फोन किया कि माननीय सांसद जी आप मेरे विरोध में जितने भी पत्र लिखो, मेरा कुछ बिगड़ने वाला नहीं, लेकिन मैं भी आपको नहीं छाडूँगा। मैं श्री शर्मा के फोन आने के बाद सहम गया और पुन: 11 अगस्त,2005 को एक पत्र फिर माननीय प्रधानमंत्री जी को लिखा जिसमें पिछले सभी पत्रों का हवाला देते हुए श्री आर.वी.शाही, सचिव-ऊर्जा मंत्रालय और श्री एस.सी.शर्मा, अध्यक्ष-सह-प्रबन्ध निदेशक, निप्को से सम्बन्धित था (पत्र की तथा पावती की छाया प्रति संलग्न है) ठीक एक सप्ताह बाद दिनांक 18 अगस्त,2005 को जैसाकि सीडी में दिखाया गया है, मेरे आवास 199, नार्थ एवेन्यू पर वही महिला मुझसे मिलने के लिए आयी और प्रश्न न आने के सम्बंध में बात करती है। इसके पूर्व जो प्रश्न संसद में उठाने के लिए उसने मुझे दिया था, जिसे मैंने नहीं लगाया था, फिर भी मेरे फर्जी हस्ताक्षर से लोकसभा में किसी द्वारा लगाये जाने के कारण निरस्त होकर मेरे पास वापस आ गया। इसे सीडी में भी स्वीकार किया गया है।

जब मैंने उक्त महिला से कहा कि तुम किसके लिए काम कर रही हो, पहले अपनी कम्पनी के सभी अधिकारियों से मेरी मुलाकात करवाओ नहीं तो तुम्हारे खिलाफ मैं एफ.आई.आर. करऊँगा तो उक्त महिला घबड़ाकर मुझे नार्थ इण्डियन स्माल मैन्युफैक्चररर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी से मिलवाने की बात कहकर चली गयी।

जब उपरोक्त पत्रों पर प्रधानमंत्री द्वारा भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी तो मैंने दिनांक 30 अगस्त,2005 को लोकसभा सत्र के शून्यकाल में श्री आर.वी.शाही, सचिव-ऊर्जा मंत्रालय,भारत सरकार को तत्काल प्रभाव से पदमुक्त करने एवं श्री एस.सी.शर्मा के खिलाफ यथाशीघ्र कार्रवाई करने की माँग की, फिर भी ऊर्जा मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा कोई उचित कार्रवाई नहीं की गयी। पुन: दिनांक 3 अक्टूबर,2005 को एक और पत्र माननीय प्रधानमंत्री जी को क्रमवार सभी साक्ष्यों की छायाप्रति लगाते हुए लिखा जिसकी पावती मुझे दिनांक 8 अक्टूबर,2005 को मिली, जिसकी प्रति संलग्न है। इसी क्रम में 7 अक्टूबर,2005 को उक्त फर्जी जासूस महिला रिपोर्टर मेरे आवास 199, नार्थ एवेन्यू में आयी। मेरे साथ निगरानी में लगाये गए रवीन्द्र कुमार भी बैठे थे, रवीन्द्र से उसने एक खाली लिफाफा मांगा तो उसने पूछा कि किस लिए लिफाफा चाहिए, इसे क्या करना है, जैसाकि सीडी में भी दिखाया गया है। जब मैं दूसरे कमरे से अपने आफिस-कार्यालय में आया तो उक्त महिला लिफाफे से रूपया दिखाने लगी, जैसाकि सीडी में भी दिखाया गया है, और पुन: जब मैंने एफ आई आर करवाने के लिए कहा तो वह लिफाफा लेकर चली गयी तथा यह कहते हुए गयी कि सर मैं आपकी अपने सभी पदाधिकारियों के साथ जल्द मीटिंग करवाऊंगी, इसे सीडी में नहीं दिखाया गया है। उक्त महिला जासूस के जाने के बाद मेरे निवास 199, नार्थ एवेन्यू के फोन पर एक कॉल आया कि पाल साहब, अब भी वक्त है आप हम लोगों के खिलाफ लिखना बन्द कर दो, आपको यह समझ में आ गया होगा कि आपके लिखने से हमारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। आप हमसे हाथ मिला लो इसी में भलाई है। इसके बाद मैं अपने क्षेत्र चला गया।

क्षेत्र भ्रमण के बाद जब मैं दिल्ली आया तो मरा भारत सरकार की व्यवस्था से विश्वास उठने लगा और मैंने अन्तिम पत्र दिनांक 9 नवम्बर,2005 को कड़े शब्दों में फिर माननीय प्रधानमंत्री जी को लिखा जिसमें उल्लेख किया कि मुझे खरीदने की कोशिश की जा रही है तथा आपका पूरा पीएमओ बिका हुआ है, ऊर्जा सचिव के माध्यम से रिलायंस कम्पनी पैसा मुहैया करवा रही है, देशहित को देखने वाला कोई नहीं है, इस पर भी अगर ऊर्जा सचिव तथा सीएमडी निप्को के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गयी तो मजबूर होकर मैं प्रेस के माध्यम से देश की जनता को सही बात बताने का काम करूंगा और बताऊँगा कि कुछ भ्रष्ट पदाधिकारी कैसे अपने पावर और पैसे के बल पर सरकार को चूना लगाने का कार्य कर रहे हैं, इसमें यूपीए सरकार की साख में बट्टा लगता है तो मेरी कोई जवाबदेही नहीं होगी। उक्त पत्र तथा पत्र की पावती की छायाप्रति भी संलग्न है। उपरोक्त पत्र लिखने के बाद उक्त जासूस महिला फोन द्वारा सूचित करती है कि दिनांक 10 नवम्बर,2005 को हमारे एसोसिएशन के पदाधिकारी दिल्ली में आपसे मीटिंग करने आपके घर 199, नार्थ एवेन्यू आ रहे हैं, किन्तु दिनांक 10 नवम्बर को प्रात: उक्त महिला नमिता फोन पर ही आग्रह करती है कि सर, आप होटल पार्क में आ जाएं क्योंकि हमारे एसो. के सभी पदाधिकारी आ रहे हैं इसलिए आवास पर मीटिंग करना अच्छा नहीं रहेगा। जब मैं उनके बुलावे पर अपने मित्र प्रद्युम्न के साथ दिनांक 10 नवम्बर,2005 को होटल पार्क, संसद मार्ग, नई दिल्ली पर लगभग दिन के 11-12 बजे के बीच में गया तो वहां जाने के बाद मुझे लगा कि इन लोगों जरूर साजिश के अन्तर्गत मुझे बुलाये हैं, वहां कोई एसोसिएशन की मीटिंग नहीं थी, कमरे में केवल एक व्यक्ति बैठे थे जिसे उक्त महिला ने नवरत्न मल्होत्रा, कार्यकारी निदेशक-नाथ इण्डियन स्माल मैन्यु.एसो. के नाम से परिचय करवाया और मुझे सोफे पर बैठने के लिए कहा। मैं सोफे पर बैठ गया और अपने मित्र प्रद्युम्न को भी बगल में बैठने के लिए कहा तथा उक्त व्यक्ति से आई कार्ड या विजिटिंग कार्ड माँगा, उसने अपने पॉकेट से एक विजिटिंग कार्ड निकालकर मुझे दिया तथा एक प्रद्युम्न जी को भी दिया, स्थिति को देखते हुए मैं उनके सभी बातों पर हाँ में हाँ मिलाता चला गया, जब उक्त महिला कुछ रूपये निकालकर दिखाने लगी तो मैंने कहा कि मैं रूपये के लिए नहीं आया हूँ आपके पदाधिकारियों से मिलने के लिए आया हूँ, इस पर मेरे मित्र प्रद्युम्न ने उक्त महिला को कहा, आप इसको रख लीजिए और शाम को घर आइए, इस पर नवरत्न मल्होत्रा और महिला ने यह कहा कि अच्छा आ जाएं सर, हम लोग शाम को आ जाएंगे। उपरोक्त सारी घटना में पहली बार इनके साजिश के तहत एक विजिटिंग कार्ड हाथ लगा, उसके आधार पर मैंने अपने मित्र से कहा कि ये लोग जरूर किसी साजिश को अंजाम देने वाले हैं, जरा पता लगाईए कि एस.सी.शर्मा और आर.वी.शाही ने जो मुझे देख लेने की धमकी दी है, कहीं उसी साजिश का यह हिस्सा तो नहीं है। लगभग साढ़े बारह बजे मेरे साथी प्रद्युम्न ने मुरादाबाद के एक डीआईजी स्तर के पुलिस पदाधिकारी को उनके सेल फोन पर विजिटिंग कार्ड पर दिए गये नाम एवं पते की सही जानकारी करने का अनुरोध किया। सेल फोन पर की गयी काल की छाया प्रति संलग्न है तथा उपरोक्त नवरत्न मल्होत्रा के विजिटिंग कार्ड की छाया प्रति भी संलग्न है। सायंकाल कोई भी एसोसिएशन का पदाधिकारी मेरे आवास पर मुझसे मिलने नहीं आया। दिनांक 12 नवम्बर,2005 को सहारनपुर, नॉगल विधानसभा, उ.प्र. के उप चुनाव के लिए नामांकन था, मुझे अपनी पार्टी की तरफ से वहां भेजा गया।

दिनांक 13 नवम्बर,2005 को देर रात्रि में मेरे मित्र प्रद्युम्न जी का फोन आया, उन्होंने सूचित किया कि मुरादाबाद में कोई नवरत्न मल्होत्रा की संस्था नहीं है तथा कार्ड में लिखा नाम व पता गलत है। ये सभी फर्जी हैं। दिनांक 14 नवम्बर,2005 को एक पत्र मैंने माननीय लोकसभा अध्यक्ष-संसद भवन, नई दिल्ली तथा दूसरा पत्र डीआईजी मुरादाबाद मण्डल को रजिस्टर्ड डाक द्वारा सूचना हेतु तथा भविष्य में उसे संज्ञान में लेने के लिए भेज दिया, पत्र तथा रजिस्टर्ड डाक की रसीद की छाया प्रति संलग्न है। इसके बाद फर्जी संस्था से जुड़ी नमिता का फोन कभी भी नहीं आया।

अत: श्रीमान जी से आग्रह है कि उपरोक्त षडंत्र की निष्पक्ष एजेन्सी अथवा संसदीय समिति से जाँच करवायी जाए जिससे पर्दे के पीछे छिपी ताकतों का खुलासा हो सके जिन्होंने जनता के द्वारा चुने गए सम्मानित संसद सदस्य के चरित्र हनन का प्रयास किया है तथा देश के सामने संसद सदस्य के मर्यादा से खिलवाड़ किया है।

मैंने दिनांक 1 दिसम्बर,2005 को पुन: विद्युत मंत्रालय के भ्रष्ट पदाधिकारियों जो नाफ्था झाकड़ी विद्युत परियोजना जो लगभग 9000 करोड से बनी थी, को एक निजी संस्था के हाथ में बेचने का साजिश का खुलासा करने हेतु तथा जिसका माननीय प्रधानमंत्री जी ने 24 मई,2005 को उद्घाटन किया था और जो एक महीने बाद ही उक्त भ्रष्ट पदाधिकारियों के कारण बन्द हो गयी, के सम्बन्ध में सदन में नियम 197 के अन्तर्गत सूचना दी थी, छाया प्रति संलग्न। उक्त भ्रष्टाचार के खुलासे के डर से ही मेरी छवि को खराब करने के लिए जल्दबाजी में “आजतक” के माध्यम से प्रसारित ऑपरेशन दुर्योधन जो कि न तो जनहित में है और न ही सदन की गरिमा के अनुरूप है, दिनांक 12.12.2005 को प्रसारित किया गया। अब मुझे पूर्ण विश्वास हो गया है कि देश के भ्रष्ट पदाधिकारियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले संसद सदस्यों को या तो खरीद लिया जाता है या किसी भी माध्यम से उनके चरित्र का खुलेआम हनन किया जाता है, इस पत्र के साथ संलग्न कुल 44 पृष्ठ के अनुलग्नक को देखा जाए एवं मेरे विरूद्ध मीडिया द्वारा उछाले गए जबरदस्ती चरित्र हनन की जाँच किसी निष्पक्ष एजेन्सी अथवा संसदीय समिति से कारवाई जाए जिससे भ्रष्ट पदाधिकारियों जो किसी बड़े औद्योगिक घराने को लाभ पहुँचाने के लिए काम कर रहे हैं, को बेनकाब किया जा सके। इस पूरे प्रकरण में श्रीमान मैं निर्दोष हूँ और मैंने कोई भी अमर्यादित कार्य संसद की गरिमा के विरुद्ध नहीं किया हूँ।

सादर।

भवदीय

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