|
टैपिंग का गोलमालआजकल समाजवादी पार्टी के महासचिव अमर सिंह को “पप्पू” के “पापा” की तलाश है। वे कह रहे हैं कि उनके “फोन टैपिंग” मामले में जो लोग पकड़े गए हैं वे तो छुटभैये हैं, उनका तो केवल प्रयोग किया गया है, असली अपराधी तो कोई और है जिस तक दिल्ली पुलिस पहुंचना ही नहीं चाहती, क्योंकि उससे सारे षडंत्र की पोल खुल जाएगी। सूत्रों के अनुसार अमर सिंह के “फोन टैपिंग” मामले में जिस अनुराग उर्फ राहुल को गिरफ्तार किया गया है वह कभी दिल्ली पुलिस के लिए ही काम करता था। अब दिल्ली पुलिस और अनुराग- दोनों चाहते हैं कि उ.प्र. की विशेष जांच शाखा इस मामले में छानबीन न करे, इसलिए यह पहला मामला है जिसमें पुलिस और अपराधी एक स्वर में अदालत से गुहार लगा रहे हैं। दिल्ली पुलिस को डर है कि अगर अनुराग उर्फ राहुल उ.प्र. पुलिस के हाथ लग गया तो “राज खुल जाएगा।” उधर दिल्ली पुलिस अनुराग से किसी को मिलने नहीं दे रही है, क्योंकि उसे पता चल चुका है कि अनुराग ने ही अमर सिंह से मिलकर “फोन टैपिंग” के षडंत्र का भण्डाफोड़ किया था। इसके लिए अमर सिंह अनुराग और उसे अपने तक पहुंचाने वाले मित्र अशोक चतुर्वेदी को धन्यवाद भी दे रहे हैं। वे इस बात से भी इंकार कर रहे हैं कि ये दोनों उन्हें “रिकार्ड किए गए “टेप” को 50 लाख रुपए में बेचने के लिए मिले थे यानी मामला “ब्लैकमेलिंग” का था ही नहीं। तो फिर…? सूत्रों के अनुसार किसी बड़ी राजनीतिक हस्ती के इशारे पर देश के एक बड़े औद्योगिक घराने के एक सदस्य ने अनुराग उर्फ राहुल की मदद से अमर सिंह व अन्य राजनीतिक नेताओं के फोन रिकार्ड कराए। इसके लिए प्रति सप्ताह अनुराग को जो बड़ी रकम दी गई वह इसी “औद्योगिक हस्ती” ने दी, जिसे अमर सिंह इन “पप्पुओं” का “पापा” बता रहे हैं।हुर्रियत और गुलाम नबीहुर्रियत कांफ्रेन्स के नेता सदमे में हैं। जम्मू-कश्मीर में जबसे गुलाम नबी आजाद ने कमान संभाली है, हुर्रियत के एक गुट को आजाद की बढ़ती लोकप्रियता से घबराहट सी हो गई है। पिछले दिनों पीपुल्स कान्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन से प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की मुलाकात को लेकर हुर्रियत नेताओं में खासी हलचल है। कारण साफ है। हुर्रियत जम्मू-कश्मीर के सन्दर्भ में वार्ता के लिए अभी तक अपने को ही कश्मीरी जनता का वास्तविक प्रतिनिधि संगठन मानता आया है लेकिन सज्जाद लोन के रूप में पीपुल्स कान्फ्रेंस का उभार उसके लिए अब चेतावनी सरीखा ही है। हुर्रियत नेता सज्जाद लोन-प्रधानमंत्री वार्ता के पीछे गुलाम नबी आजाद को ही मुख्य योजनाकार मान रहे हैं। पिछले दिनों हिजबुल मुजाहिदीन के नौ कट्टर आतंकवादियों ने आत्म समर्पण करने के बाद मीडिया प्रतिनिधियों से बातचीत के वक्त जो कुछ भी कहा, हुर्रियत नेताओं के माथे पर उसके कारण भी बल पड़ गए हैं। आत्मसमर्पण कर चुके इन आतंकवादियों ने अपने समर्पण के लिए मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की “प्रेरक कार्यशैली” की भूरि-भूरि सराहना की। इन पूर्व आतंकियों ने यह भी कहा, “कश्मीर में एक ओर हुर्रियत कान्फ्रेंस के नेता अलगाववादी भावनाएं भड़का कर युवकों को गुमराह करते हैं, उनसे हथियार उठवाकर निर्दोषों की हत्याएं करवाते हैं, दूसरी ओर वे अपने बच्चों को विदेशों और देश के बड़े महानगरों में पढ़ाई और व्यवसाय के लिए भेज रहे हैं।लालू के लालजब मामला रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव से जुड़ा हो तो चर्चा होगी ही। पर इस बार लालू नहीं, जूनियर लालू यानी उनके सुपुत्र तेजस्वी को लेकर राजधानी में भागमभाग मची। क्रिकेट के खिलाड़ी तेजस्वी इन दिनों बिहार की कनिष्ठ वर्ग की क्रिकेट टीम के कप्तान हैं और उनके पिताजी यानी लालू यादव बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष। पिछले दिनों बिहार की यह क्रिकेट टीम दिल्ली आयी थी क्रिकेट खेलने। दिल्ली से उस क्रिकेट टीम की वापसी के समय पूरा रेल विभाग हाथ में फूलमालाएं लेकर स्टेशन पर खड़ा था। आखिर रेल मंत्री के पुत्र की रवानगी जो थी। रेल मंत्री के अतिरिक्त निजी सचिव विनोद कुमार श्रीवास्तव भी हाथ में फूलमालाएं लिए खड़े थे। यह तो चलो रेलमंत्री का मामला था, पर दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव सुनील देव भी विदाई देने पहुंचे। और तो और, कुछ मीडिया वाले भी कैमरा लिए रेलवे स्टेशन पर दौड़ते नजर आए। एक ने कैमरा लगाकर तेजस्वी से पूछ ही लिया, “क्या पिताजी की तरह राजनीति में भी हाथ आजमाएंगे?” तेजस्वी मुस्कराकर बोले कि राजनीति में तो एक दिन आना ही है, लेकिन अभी तो क्रिकेट में ही ध्यान है। होना भी चाहिए, आखिर क्रिकेट खेलने में भी राजनीतिक संरक्षण जो मिल रहा है। तभी तो दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव सुनील देव ने बिहार की शेष टीम को अनदेखा करते हुए मुम्बई से हुए मैच पर एक चापलूसी भरी टिप्पणी की-“वह तो तेजस्वी बनाम मुम्बई का मैच था।”50
टिप्पणियाँ