|
पूज्य सरसंघचालक श्री सुदर्शन ने कामना व्यक्त की -“आप शतायु हों, देश को आपके अनुभवों का लाभ मिले।”गत 22 जनवरी को केशव सृष्टि, मुम्बई में अटल जी के सहस्र चन्द्र दर्शन के निमित्त शुभेच्छास्वरूप एक पूजन कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस समारोह में 13 हजार से अधिक मुंबईवासी एकत्रित हुए। समारोह में अटल जी को स्वयं आना था, पर स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण वे मुंबई नहीं जा सके। रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन को भी समारोह में निमंत्रित किया गया था, पर वे पूर्व निर्धारित प्रवास के कारण वहां नहीं जा सके इसीलिए उन्होंने एक शुभकामना पत्र भेजा। इस पत्र को समारोह में उपस्थित रा.स्व.संघ के सहसरकार्यवाह श्री मदनदास ने स्वयं पढ़कर सुनाया। उस पत्र का अविकल पाठ यहां प्रस्तुत है -मा. अटल जी,सादर प्रणाम!यह जानकर अतीव हर्ष हुआ कि दिनांक 22 जनवरी 2006, मार्गशीर्ष पूर्णिमा को आपके सहस्र चन्द्र दर्शन का समारंभ बड़े धूमधाम से मनाने की तैयारियां चल रहीं हैं। आपने दिनांक 30 दिसम्बर को भारतीय जनता पार्टी के रजत-जयंती महोत्सव के समापन अवसर पर मुंबई की विराट सभा में चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की जो घोषणा की, वह भी भारत की उस सनातन परम्परा के अनुरूप ही है जब सत्ताधारी सुयोग्य उत्तराधिकारी के हाथों में बागडोर थमाकर उच्चतर भूमिका पर आरूढ़ होने की तैयारी किया करते थे। सन् 1951 में जब डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक ऐसा राजनीतिक दल खड़ा करने में, जिसकी भावभूमि और विचारधारा अपनी पुण्य-पावन मातृभूमि से जीवनरस ग्रहण करती हो, पू. गुरुजी से सहयोग मांगा, तब पू. गुरुजी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय सहित जिन प्रचारकों को इस कार्य हेतु चुना, उनमें आप और मा. आडवाणी जी का भी समावेश था। अपेक्षा के अनुरूप आप सबने डा. मुखर्जी के अमर बलिदान के बाद भी जिस लगन और निष्ठा से कार्य को आगे बढ़ाया उससे गीत की ये पंक्तियां सार्थक हो उठती हैं -कर्मपथ पर इस प्रखरतर फूल भी हैं, शूल भी हैं।अल्पजन अनुकूल हैं पर सैकड़ों प्रतिकूल भी हैं।।तालियों की टूट है पर गालियां भरपूर इस पर।संकटों के शैल शत-शत मोहभ्रम के मूल भी हैं।।किन्तु सुख-दु:ख से सदा ही एक सी अभिनन्दना ले।बढ़ रहे हैं हम निरन्तर चिर विजय की कामना ले।।सब बढ़े और खूब बढ़े, और सूत्रधार पं. दीनदयाल जी की असमय निर्मम हत्या के बाद भी आगे बढ़ते ही रहे। सन् 1957 में बलरामपुर के महाराज को पराजित कर आपने संसद में जब कदम रखा तबसे मानो संसद ही आपका घर बन गया। अपने सर्वप्रथम धारदार धाराप्रवाह संसदीय भाषण में आपने सरकार की जो तर्कशुद्ध आलोचना की उसके कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी कहना पड़ा कि “यह व्यक्ति ध्यान देने योग्य है”। उनकी यह टिप्पणी एक दृष्टि से भविष्यवाणी ही सिद्ध हुई जब लगभग 40 वर्षों बाद आप भी उसी पद पर आरूढ़ हो गये। किन्तु राजनीति के शीर्ष पर पहुंचकर भी आपने गर्जना की कि “सत्ता हमारे लिए साध्य नहीं, साधन है।”सत्ता प्राप्त होते ही आपने जो पहला कार्य किया, वह था- नाभिकीय विस्फोट। इस विस्फोट को सारी दुनिया ने सुना और यह भी सुना कि भारत परमाणु शस्त्रों का पहला उपयोग नहीं करेगा। नभ की पहरेदारी करने वाले अमरीका की आंख बचाकर जिस गोपनीयता और कुशलता से यह कार्य किया गया उससे सारी दुनिया को दांतों तले अंगुली दबाकर भारत की अन्तर्निहित शक्ति का लोहा मानना पड़ा। विश्व में भारत मां का भाल उन्नत हुआ। अमरीका बौखलाया, लाल-पीला हुआ, आर्थिक मदद बन्द कर दी। तब भी आप डिगे नहीं, टले नहीं, अटल बने रहे। जिस आत्मविश्वास का आपने परिचय दिया उसके परिणामस्वरूप दुनियाभर में फैले अनिवासी भारतीयों ने आगे आकर साढ़े चार अरब डालर का सहयोग देते हुए भारत की स्थिति सम्भाली, जिसके कारण अमरीका को ही दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ा।आप और अडवाणी जी की राम-लक्ष्मण जैसी जोड़ी ने पहली बार यह सिद्ध कर दिया कि गैरकांग्रेसी सरकार भी पूरे समय तक चल सकती है और कांग्रेस के इस दंभ को खोखला सिद्ध कर दिया कि केवल वही सरकार चलाने की क्षमता रखती है। अपने अष्टपथीय क-क मार्गों द्वारा कश्मीर-कामरूप-कन्याकुमारी व कच्छ को तथा गंगा-कावेरी येाजना द्वारा नदियों को जोड़कर देश की एकता-एकात्मता को और पुष्ट करने का कार्य आपके ही कार्यकाल में प्रारंभ हुआ। पड़ोसी देश की ओर मित्रता का हाथ भी आपने ही बढ़ाया किन्तु शत्रुभाव मन में छुपाये उस कपटी “मित्र” को भी आपके ही नेतृत्व में कारगिल में मुंह की खानी पड़ी। अस्तु।आपके प्रगल्भ अनुभवों का लाभ नये नेतृत्व और समस्त देशवासियों को मिलता रहेगा, इस कामना के साथ आपके शतायु होने की कामना करता हूं। मैं तो सन् 1950 से ही आपकी ओजस्वी कविताओं से न केवल स्वयं ही प्रेरणा लेता रहा अपितु अपने सहयोगियों को भी सम्प्रेरित करता रहा हूं। आपके 61वें जन्मदिवस पर मुझे आपकी ही कविताओं की काव्यांजलि अर्पित करते हुए आपका अभिनन्दन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। किन्तु इस बार पूर्व-निर्धारित कार्यक्रमों के कारण इस आनन्द-महोत्सव से मुझे वंचित रहना पड़ रहा है। अत: इस पत्र द्वारा ही आपका अभिनन्दन करते हुए आपकी ही काव्य पंक्ति से समाप्त करता हूं -शुद्ध हृदय की प्याली में,विश्वास दीप निष्कंप जलाकर।कोटि-कोटि पग बढ़े जा रहे,तिल-तिल जीवन गला गलाकर।जब तक ध्येय न पूरा होगा,तब तक पग की गति न रुकेगी।आज कहे चाहे जो दुनिया,कल को झुके बिन न रहेगी।।मातृभूमि की सेवा में आपके साथआपका हीकुप्.सी. सुदर्शन39
टिप्पणियाँ