संस्कार भारती के रजत जयंती वर्ष में
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संस्कार भारती के रजत जयंती वर्ष में

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May 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2006 00:00:00

सांस्कृतिक क्रांति का उद्घोष

– विनीता गुप्ता

मकर संक्रांति के दिन लखनऊ में सांस्कृतिक क्रांति का संकल्प दोहराया गया। 25 वर्ष पूर्व सुविख्यात विद्वान श्री हरिभाऊ वाकणकर के सान्निध्य में कुछ राष्ट्र चिन्तकों ने लखनऊ में ही संस्कार भारती की स्थापना कर सांस्कृतिक क्रांति का सूत्रपात किया था। संस्कार भारती की 25 वर्ष की यात्रा को रेखांकित करने के उद्देश्य से वर्ष 2006-2007 को सांस्कृतिक चेतना अभियान वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया है।

लखनऊ के निराला नगर स्थित माधव सभागार में देशभर से आए लगभग 850 कला साधकों और राष्ट्र चिन्तकों की उपस्थिति में “सांस्कृतिक चेतना अभियान वर्ष” का भव्य शुभारम्भ हुआ। स्वामी विवेकानन्द जयंती (12 जनवरी) से शुरू हुए इस चार दिवसीय समारोह का समापन 15 जनवरी को भारत माता मंदिर के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी की उपस्थिति में हुआ। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने भारतीय संस्कृति पर आक्रमण के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहा, “अपनी संस्कृति की रक्षा हर कीमत पर करनी जरूरी है।” उन्होंने आगे कहा कि “गंगा की जगह वोल्गा को पूजने वालों और व्यास की जगह माक्र्स को पूजने वालों के भारतीय संस्कृति पर आक्रमण के प्रयास अवश्य विफल होंगे।”

इस अवसर पर देश के सुविख्यात 35 कलाकारों को वाकणकर सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मानित कलाकारों में कुछ प्रमुख नाम हैं- सुविख्यात शास्त्रीय गायक पद्मश्री पं. सुरिन्दर सिंह (दिल्ली), नाटकर्मी श्री मदन गडकरी (नागपुर), लोक गायक श्री लल्लू वाजपेयी (बुंदेलखण्ड), रंगकर्मी श्री नगेन बोरा (असम), श्री बृजेन्द्र अवस्थी (बदायूं) और डा. चित्तरंजन ज्योतिषी।

मकर संक्रांति के दिन लखनऊ शहर में संस्कार भारती के कार्यक्रमों की निराली छटा बिखरी हुई थी। निराला नगर और माधव सभागार से लेकर गोमती तट के कुडिया घाट तक लखनऊ में पांच स्थानों पर देशभर से आए कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियां दीं। दिल्ली से गए कलाकारों के दल ने कथक शैली में प्रस्तुत बैले में आतंकवाद की त्रासदी को उभारा तो अन्य प्रदेशों से आए कलाकारों ने अपनी पारम्परिक वेशभूषा में मनमोहक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। इससे पूर्व 13 जनवरी को माधव सभागार में सत्य नारायण मौर्य “बाबा” ने अपनी प्रस्तुति “भारत मां की आरती” से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

इस पांच दिवसीय समारोह में “सांस्कृतिक चेतना : स्वरूप एवं दिशा” विषय पर एक संगोष्ठी का भी आयोजन किया गया। 14 जनवरी को माधव सभागार में आयोजित राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में डा. बृजेन्द्र अवस्थी, श्री गजेन्द्र सोलंकी सहित लगभग दो दर्जन कवियों ने देर रात तक काव्य पाठ किया।

समारोह परिसर में चारों ओर रंग-बिरंगी कलात्मक रंगोली सहसा ही आने-जाने वालों को आकर्षित कर रही थी। सुबह-शाम रंगोली बनाते कलाकारों के इर्द-गिर्द जिज्ञासुओं की भीड़ एकत्रित हो जाती थी। चार किलोमीटर लम्बी रंगधारा के मार्ग का निर्देशन रंगोली द्वारा ही किया गया था। विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकार जब अपने पारम्परिक परिधानों में सजकर हाथों में अपने-अपने प्रांतों के बैनरों के साथ नृत्य करते लखनऊ की सड़कों से गुजरे तो शहर की रौनक देखने वाली थी। वर्षभर पूरे देश में सांस्कृतिक जागरण का संकल्प लेकर अपने-अपने प्रदेशों में विभिन्न कार्यक्रमों की योजनाओं के साथ संस्कार भारती से जुड़े कलासाधक और कार्यकर्ता अपने-अपने कर्म क्षेत्रों में लौट गए।

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