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सेवा भारती का संकल्प पूरी दिल्ली करेंगे साक्षर
– दिल्ली प्रतिनिधि
बेतरतीब ढंग से बसी बस्तियां, अनपढ़ लोग, सुबह रोजी-रोटी की तलाश और रात को परिवार का पेट भरने की चिंता। कथित मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों की रोजाना यही कहानी है। पर अब सेवा भारती ने संकल्प लिया है कि वह इन बस्तियों में रहने वालों को उन्हीं के हाल पर नहीं छोड़ देगी। सेवा भारती के विभिन्न प्रकल्प अनेक वर्षों से इन बस्तियों में आशा की किरण जगाए हुए हैं। अब श्री गुरुजी जन्मशताब्दी वर्ष में सेवा भारती ने लिया है शिक्षा के महायज्ञ का संकल्प। इस महायज्ञ के निमित्त छह महीने पहले परीक्षण के तौर पर चली लगभग 36 परीक्षण कक्षाओं ने मलिन बस्तियों में रहने वाली महिलाओं के भीतर जो आत्मविश्वास, आशा और जीवन को बेहतर ढंग से समझने का दृष्टिकोण पैदा किया, उससे साक्षरता अभियान के महायज्ञ से लाखों लोगों को निरक्षरता के महापाप से मुक्ति मिलने की आशा बलवती हो गई है।
सेवा भारती के इन शिक्षा केन्द्रों में निरक्षर महिलाओं ने जो हासिल किया, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। केशव विहार के नाम से मायापुरी में सेवा भारती केन्द्र से अक्षर ज्ञान प्राप्त कर महिलाओं में कुछ कर गुजरने की चाह विकसित हुई है। पिछले छह महीनों में इन महिलाओं के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए, उनकी बानगी देखिए –
पाठ्यक्रम पूरा लेकिन पढ़ने की ललक- छह महीने का पाठ्यक्रम। शुरुआती दौर में पढ़ने के लिए तैयार नहीं थीं महिलाएं। कारण! “ये भी कोई उम्र है पढ़ने की! शर्म-संकोच में बुरी तरह से जकड़ी थीं। सेवा भारती केन्द्र ने घर-घर जाकर समझाया-बुझाया तो बामुश्किल केन्द्र तक आर्इं, लेकिन जब आ गर्इं तो संकोच भी जाता रहा। छह महीने शिक्षण कोर्स में हिसाब-किताब, लेन-देन तो आ गया, लेकिन अब पढ़ाई में रूचि जाग गई, इसलिए अब भी आती हैं पढ़ने के लिए। क्यों आती हैं? यह पूछने पर राजवती बताती हैं,” “पढ़ने को मन करता है, सो दोपहर को काम धंधा छोड़ केन्द्र चली आती हूं।” कुसुम, मीरा, दुलारी, कांती व लक्ष्मणा ऐसी ही महिलाएं हैं जो पढ़ना-लिखना सीखने के बाद आगे बढ़ने के लिए नित कक्षाओं में आती हैं।
मुस्लिम महिलाएं भी
सेवा भारती केन्द्र और मुस्लिम महिलाएं, वह भी पढ़ने के लिए! सहसा यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है। हालांकि केन्द्र पहुंचने वाली मुस्लिम महिलाएं आती छिपकर हैं और किताब को भी छुपाकर लाती-ले जाती हैं। क्यों आई मुस्लिम महिलाएं पढ़ने? इसके पीछे रोचक कहानी है।
इस बस्ती की एक मुस्लिम महिला के पति को दिल का दौरा पड़ा। पड़ोसियों ने हिन्दुराव में भर्ती तो करा दिया, लेकिन दवाई लाने, वार्ड में जाने और हिसाब-किताब में उसको बहुत दिक्कत आई। उसी दिन इस महिला ने पढ़ने का फैसला कर लिया और अब सेवा भारती केन्द्र में रोज पढ़ने आती है। साथ में अपनी पड़ोसी मुस्लिम महिला को भी साथ लाती है।
इस अत्याधुनिक युग में भी टेलीफोन-मोबाइल बस्ती की महिलाओं के लिए अचंभे की बात है। कैसे बात होती है, कैसे नंबर मिलाया जाता है? महिलाओं की जिज्ञासा में यह सब शामिल था। सेवा भारती केन्द्र की प्रबंधक रेखा पाल ने सभी को टेलीफोन-मोबाइल का प्रयोग करना सिखाया तो वे बहुत खुश हुर्इं।
… तब खो जाते पतिदेव
हरिराम निरक्षर हैं लेकिन उनकी पत्नी चाणमती ने सेवा भारती केन्द्र में लिखना-पढ़ना सीख लिया। एक बार वे हरिद्वार गए तो भटक गए। किसी दूसरे बस अड्डे पर पहुंच गए। चाणमती ने देखा, किसी बस पर दिल्ली नहीं लिखा था। वह समझ गई कि हम गलत जगह पर हैं, आस-पास पूछा तो दूसरे अड्डे पर पहुंचे, तब जाकर “दिल्ली” के बोर्ड वाली बस नजर आई। पति को बड़ा गर्व हुआ अपनी चाणमती पर। हो भी क्यों ना, उसकी बदौलत ही तो परेशानी सेे बचे। अब हरिराम ने चाणमती को रोज केन्द्र जाने की इजाजत दे दी है।
अब दुकान की चिंता नहीं
मीरावती ने बस्ती में दुकान की है। पहले उसके पति को दुकान पर बैठना पड़ता था क्योंकि मीरावती हिसाब नहीं जानती थी। फिर सेवा भारती के केन्द्र आई तो हिसाब-किताब भी सीख गई। अब उसके पति दूसरे काम पर जाते हैं और मीरावती दुकान संभाल लेती है।
परिवर्तन का नया दौर
एक समय था जब इन महिलाओं को अपने घरेलू कामों से ही फुर्सत नहीं थी, लेकिन अब कक्षा शुरू होने से पहले सामूहिक रूप से गायत्री मंत्र पढ़ती हैं और अन्त में शांति पाठ करके घरों को जाती हैं। यही नहीं, बस्ती में हर महीने किसी न किसी के यहां कीर्तन भी होता है। सेवा केन्द्र आने वाली सभी महिलाएं कीर्तन में सामूहिक रूप से हिस्सा लेती हैं। साक्षर बनने से सांस्कृतिक जागरण भी हुआ, जिससे बस्ती की महिलाएं बेहद खुश हैं।
आत्मनिर्भरता की ओर
मलिन बस्ती में केवल अक्षर ज्ञान का ही अभियान नहीं चल रहा है बल्कि युवतियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास भी किए जा रहे हैं। इसी का हिस्सा है सिलाई व कम्प्यूटर प्रशिक्षण। यही नहीं, मेहंदी व अन्य कामों को सिखाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास बखूबी चल रहा है। अब तैयारी है श्री गुरुजी के जन्मशताब्दी वर्ष पर साक्षरता अभियान की। सेवा भारती के केन्द्रों में कार्यकर्ताओं ने सम्पर्क साधना शुरू कर दिया है। शशि शर्मा, रानी शर्मा, रजनी गिल आदि ने बताया कि कुछ लोग साफ मना करते हैं केन्द्रों पर आने से। लेकिन हमने भी निश्चय कर लिया है कि घर के दरवाजे पर भी जाकर पढ़ाना होगा तो वह भी किया जाएगा। लक्ष्य बड़ा है तो समर्पित रहना ही पड़ेगा।
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