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थमा नहीं है टकराव
– काठमाण्डू प्रतिनिधि
नेपाल की राजधानी काठमाण्डू शहर गंभीर रूप से आतंक और अन्धकार की काली छाया से घिर गया है। 4 महीने पुराने एकतरफा युद्धविराम के भंग होने की घोषणा के बाद माओवादियों ने काठमाण्डू को केन्द्रित कर आतंकवादी गतिविधियां तेज कर दी हैं। मकर संक्रांति के दिन, 14 जनवरी को काठमाण्डू का मुख्य प्रवेश द्वार कहे जाने वाले थानकोट की पुलिस चौकी पर रात को हमला कर माओवादियों ने एक दर्जन से अधिक पुलिसकर्मियों को मौत की नींद सुला दिया और उनके हथियार व गोला बारूद लूटकर ले गये। उसी रात दधिकोट पुलिस चौकी पर भी हमला किया गया। इसके साथ ही माओवादियों ने अनेक जिलों के सरकारी कार्यालयों और गांव विकास तथा जिला विकास समितियों के भवनों में विस्फोट कर आर्थिक क्षति पहुंचाई है। हेटौड़ा स्थित नेपाली टेलीविजन टावर को बम से उड़ा दिया गया।
आन्दोलनकारी सात राजनीतिक दलों और माओवादियों के बीच हुई सहमति के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि अब माओवादियों को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्य धारा में लाया जा सकेगा, परन्तु इन दिनों नेपाल की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि लोग आतंक के साये में जीने को विवश हैं। सभी को माओवादियों का भय सता रहा है, क्योंकि माओवादियों ने खुली चेतावनी दे दी है कि जो भी आगामी नगरपालिका के निर्वाचन में उम्मीदवार होगा, उसे और उसके परिवार वालों को मार डाला जाएगा। थानकोट की घटना के बाद सरकार ने काठमाण्डू, ललितपुर और भरतपुर जिलों में रात 9 बजे से सुबह 4 बजे तक कफ्र्यू लगा दिया है। साथ ही किसी भी प्रकार की सभा, विरोध प्रदर्शन व रैली निकालने पर पाबंदी लगा दी है। प्रशासन की निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए इन दलों के कार्यकर्ताओं ने 17 जनवरी से ही शान्तिपूर्ण प्रदर्शन और रैली निकालना जारी रखा है। इस दौरान नेपाली कांग्रेस के नरहरि आचार्य, भीमसेन दास, नारायण प्रसाद, तीर्थराम डगोल, शम्भू अधिकारी, एमाले के रामेश्वरन फुयाल व योगेश भट्टराई गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
20 जनवरी को आंदोलनकारी दलों ने काठमाण्डू में लाखों लोगों को एकत्र करने का कार्यक्रम भी बनाया था। सरकार ने इस प्रयास को विफल करने के लिए काठमाण्डू घाटी और काठमाण्डू आने वाले राजमार्ग से जुड़े जिलों में कफ्र्यू लगाना शुरू कर दिया। लोगों के घरों की तलाशी ली गई। राजनीतिक नेता व उनके कार्यकर्ता टेलीफोन व मोबाइल से सम्पर्क न बना सकें, इसके लिए सरकार ने 19 जनवरी की सुबह से ही टेलीफोन और मोबाइल सेवाओं को बंद करा दिया था।
इसी बीच आंदोलनरत सातों दलों के नेताओं की नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष गिरिजा प्रसाद कोइराला के निवास पर हुई। बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि नगर पालिका निर्वाचन का विरोध किया जाए क्योंकि इन चुनावों में भाग लेना निरंकुश राजनीति के पक्ष में मुहर लगाना होगा। उल्लेखनीय है कि नेपाल में एक महानगर पालिका, 3 उप महानगर पालिकाओं और 58 नगर पालिकाओं में चुनाव होने वाले हैं।
सरकार की ओर से घोषित निषेधाज्ञा के सम्बंध में नेपाली कांग्रेस के महामंत्री रामचन्द्र पौडेल ने आरोप लगाया है कि एक ओर सरकार चुनाव कराने की बात कर रही है तो दूसरी ओर काठमाण्डू की स्थिति असामान्य होने की बात कहकर कफ्र्यू लगा रही है। वह सात दलों के एकजुट आंदोलन से घबराकर उन्हें कुचलने पर तुली है। एमाले के प्रवक्ता प्रदीप नेपाल ने सरकार की ओर से घोषित निषेधाज्ञा को सरकारी आतंक की संज्ञा देते हुए कहा है कि कफ्र्यू लगाने की जरूरत थी ही नहीं। जनमोर्चा, नेपाल के उपाध्यक्ष लीलामणि पोखरेल ने भी आरोप लगाया है कि राजनीतिक दलों के आन्दोलन को विफल करने की नीयत से सरकार माओवादियों का भय दिखा रही है।
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