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महिलाओं के सवाल पर बिफरे मदनीभारत में, खासकर मुस्लिम समाज में महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय है। इस बात की एक बार फिर पुष्टि तब हुई जब गत 23 मई को नई दिल्ली स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के सभागार में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में एक संवाददाता के सवाल के जवाब में सांसद महमूद मदनी ने भी इस बात को तो स्वीकारा मगर, जब शरीयत से सम्बंधित फतवों के जरिए महिलाओं के उत्पीड़न का जिक्र किया गया तो उन्होंने यह कहकर बात टाल दी कि जिसे मानना है वो शरीयत को माने और जिसे नहीं मानना है उससे किसी तरह की कोई जबरदस्ती नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि वे शरीयत को मानते हैं इसलिए फतवों को मानने के लिए भी बाध्य हैं। यानी जो मुसलमान है, उसे यह मानना ही चाहिए। नजमा बीबी के मामले में उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी शरीयत में कोई दखल न देते हुए सिर्फ मुस्लिम दम्पत्ति को सुरक्षा उपलब्ध कराने की बात कही है। अखबारों में प्रकाशित इससे संबंधित बातों को उन्होंने मीडिया की मनगढ़ंत कहानी करार दिया। उनका कहना था कि फतवे जारी करने का काम मुफ्ती का है इसलिए इसमें किसी और के दखल की बात ही नहीं आती। “शरीयत का डंडा महिलाओं के खिलाफ ही क्यों चलता है?” जब मदनी से यह सवाल पूछा गया तो वह गुस्से में आ गए और उन्होंने कहा कि महिलाओं की हालत तो कहीं भी अच्छी नहीं है। जब अन्य मीडियाकर्मियों ने भी इससे सम्बंधित सवाल पूछने शुरू कर दिए दो तुरत-फुरत में प्रेस कान्फ्रेंस ही खत्म कर दी गई।ठेकेदार का घर “गिफ्ट” मेंजनता का शोषण कर राज्य को रसातल में पहुंचाने और सत्ता के भ्रष्टाचार का उदाहरण प. बंगाल से बेहतर कोई हो ही नहीं सकता। यहां वाम मंत्रिमंडल में क्रीड़ा, परिवहन और युवा मामलों के मंत्री सुभाष चक्रवर्ती 1984-85 से बिना किराया दिए एक निजी ठेकेदार, परितोष घोष के “साल्ट लेक” जैसे विशिष्ट इलाके में बने एफ डी-144 मकान में रह रहे हैं। लेकिन पिछले दिनों जैसे ही इस मकान को मालिक द्वारा सुभाष चक्रवर्ती को उपहार के रूप में देने की बात उठी, मामला गरमा गया। इस पर चक्रवर्ती ने पत्रकारों से कहा, “मकान मालिक अगर “गिफ्ट” देना चाहता है तो वह देगा। इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है।” इस जवाब पर पत्रकारों ने राज्य माकपा के महामंत्री विमान बोस से जब स्पष्टीकरण मांगा कि क्या वामपंथी नेता किसी ठेकेदार से कीमती उपहार स्वीकार कर सकता है, तो वे बोले, “मिठाई का पैकेट या कलम तो ले सकता है लेकिन कीमती उपहार नहीं ले सकता।” लेकिन जब उनको सुभाष चक्रवर्ती के मकान के बारे में बताया गया तो उन्होंने रुख बदलते हुए कहा, “इस बारे में मैं सुभाष से बात करूंगा। इसकी मुझे जानकारी नहीं है।” हालांकि इस मामले में ठेकेदार परितोष घोष का कहना है, “ठेकेदारी में मैंने बहुत पैसा कमाया है। परिवहन विभाग की ओर से बंदरगाह बनाने की परियोजना में मैं ही बड़ा ठेकेदार था और सुभाष बाबू ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है। उनके मेरे ऊपर बहुत अहसान हैं।” उसने आगे कहा कि वह यह मकान मंत्री जी को उपहार के रूप में जरूर देगा और यदि कानून आड़े आया तो न्यायालय में शपथ पत्र दायर कर अपना संकल्प पूरा करेगा।जांच पर आंचगत 22 मई को कांग्रेस के नेतृत्व में संप्रग सरकार के दो वर्ष पूरे हुए और इसके एक दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की नृशंस हत्या को 15 वर्ष पूरे हो गए। स्व. राजीव गांधी की 15वीं बरसी पर यद्यपि तमाम कांग्रेसी सरकारों और नेताओं ने श्रीमती सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वढेरा और राबर्ट वढेरा के साथ अपने नेता को श्रद्धाञ्जलि दी, उनकी स्मृति में आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया। ठीक एक दिन बाद सरकार ने अपनी दो साल की उपलब्धियों के लम्बे-चौड़े आख्यान छपवाए, लेकिन एक बात जो कई प्रमुख कांग्रेसियों के मन में खटक रही है वह यह है कि राजीव गांधी की हत्या के पीछे के षडंत्र का पर्दाफाश करने के लिए गठित बहुआयामी जांच समिति की कार्रवाई पिछले दो वर्षों में बिल्कुल शून्य क्यों हो गई? उल्लेखनीय है कि इस जांच समिति का गठन 20 मई, 1998 को किया गया था। राजीव गांधी की हत्या के देशी-विदेशी सूत्रधारों का पता लगाने के लिए केन्द्रीय जांच ब्यूरो, गुप्तचर ब्यूरो, “रा” सहित अनेक सुरक्षा एजेंसियों को मिलाकर यह संयुक्त जांच समिति बनाई गई थी। सन् 1998 से लेकर अब तक इस समिति का कार्यकाल (हाल ही में मई-2006 तक) आठ बार बढ़ाया गया है, किन्तु इस जांच समिति की गति पिछले दो वर्षों में जैसी होनी चाहिए थी, होती न देख राजीव गांधी के प्रशंसक व प्रेमी हतप्रभ हैं। सूत्रों के अनुसार दो वर्ष पूर्व जांच प्रक्रिया जहां थी, आज भी वहीं हैं। षड्यंत्र का पर्दाफाश करना तो दूर, जांच समिति ने इस अवधि में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया है।34
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