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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भविद्या बालसमग्र चिंतन, सशक्त लेखनवरिष्ठ मराठी पत्रकार एवं स्त्री जागृति के लिए समर्पित श्रीमती विद्या बाल ने अपनी सशक्त लेखनी द्वारा पिछले बयालीस वर्षों में महिलाओं को नई दिशा दी है। आकाशवाणी के पुणे केन्द्र में कार्यरत रहीं श्रीमती विद्या प्रसिद्ध मराठी पत्रिका “स्त्री” की बाईस वर्ष तक संपादिका भी रही हैं। पिछले सत्रह वर्षों से विद्याजी मराठी पत्रिका “मिलून सात्याजणी” का संपादन कर रही हैं।पत्रकारिता क्षेत्र में प्रवेश को विद्याजी महज एक संयोग मानती हैं। वे कहती हैं, “एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म होने के कारण मैं भी सीमित विचारों वाली युवती थी, जिसमें परिवार के विचारों, रूढ़ियों का दबाव रहता था। मेरा अलग से अपना कोई अस्तित्व नहीं था। विवाह के कुछ वर्षों बाद मुझे लगने लगा कि मध्यम वर्गीय “स्त्री” के पास स्वयं के विचार नहीं होते हैं।” लेकिन कालांतर में उनके अन्दर छिपे वैचारिक स्रोत का प्रस्फुटन हुआ और विद्याजी ने “स्त्री” पत्रिका का संपादन करना प्रारंभ किया। इस दौरान उन्हें विभिन्न महिलाओं के विचार जानने का अवसर मिला। स्त्री संबंधी प्रश्नों एवं समस्याओं को लेकर उन्होंने कई देशों की यात्रा भी की और इस तरह वे एक सक्रिय महिला कार्यकर्ता बन गईं। उसी समय अन्तरराष्ट्रीय महिला वर्ष घोषित हुआ और विद्या जी ने अनेक पुस्तकों व ग्रंथों का वाचन किया। अंग्रेजी उपन्यास भी उनके अध्ययन का हिस्सा बने। इससे विद्याजी के दृष्टिकोण में व्यापक परिवर्तन आया। वे कहती हैं, “देखने और देखकर समझने में अन्तर है। किसी भी घटना को आप सिर्फ देखते हैं जो सिर्फ ऊपरी सतह पर होता है लेकिन वैचारिक रूप से उसी घटना को जब आप अंदर तक उतारते हैं तभी व्यक्ति के विचारों में परिवर्तन आता है।” विद्याजी को सुप्रसिद्ध फाय फाउंडेशन अवार्ड, शंकरराव किर्लोस्कर पुरस्कार, महिला गौरव पुरस्कार, आगरकर पत्रकारिता पुरस्कार व अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। वे बताती हैं कि सन् 1982 में पुणे में अनेक महिलाओं की हत्याएं हुईं, ये सभी महिलाएं थीं जो शिक्षित एवं सभ्रांत परिवारों से थीं। इनकी हत्याओं में इनके परिवारों का हाथ था। इसके विरोध में पुणे में एक चित्र प्रदर्शनी लगाई गई तथा इस विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई। सन् 1983 में उन महिलाओं के लिए एक केन्द्र की स्थापना की गई जो ससुराल में दहेज के कारण प्रताड़ित होती थीं। इस केन्द्र में वे महिलाएं भी आने लगीं जो कभी डर के कारण घर के बाहर भी नहीं निकल पाती थीं। ऐसी महिलाओं के लिए अस्थाई निवास की व्यवस्था भी उनके संगठन ने की।विद्याजी बताती हैं कि महाराष्ट्र और उससे बाहर भी युवतियों पर अत्याचार और उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जो प्रेम प्रकरणों या विपरीत लैंगिक आकर्षण के परिणाम हैं। इसे रोकने के लिए हमने महाविद्यालयों में “दोस्ती जिंदाबाद” नामक अभियान प्रारंभ किया, जिसमें युवाओं में दबी उत्कंठा, आकर्षण, तनाव संबंधी प्रश्नों का समाधान किया गया एवं उनके बीच विचारों का आदान-प्रदान भी किया गया। “नारी समता मंच” की भी संस्थापिका श्रीमती बाल ने विधवाओं एवं परित्यक्ताओं की सहायता के लिए अनेक कार्य किए। उनके इस संगठन द्वारा कुटुम्ब जीवन वर्ष, जिसमें परिवारों के विघटन को रोकना, आत्मसम्मान परिषद द्वारा स्त्री पर बढ़ते लैंगिक अत्याचारों एवं उने खिलाफ बने कानूनों के प्रति महिलाओं को जागृत करना जैसे कार्य प्रारंभ किए गए हैं। उम्र के सत्तरवें पड़ाव पर भी विद्याजी उतनी ही सक्रिय हैं, जितनी जीवन संघर्ष के प्रारम्भिक दिनों में रहती थीं। श्रीति राशिनकर17
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