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-राकेश उपाध्याय
पोप बेनेडिक्ट- 16वें ने गत 18 मई को जब वेटिकन में भारत के नवनियुक्त राजदूत श्री अमिताभ त्रिपाठी के समक्ष भारत में ईसाई मतान्तरण पर कुछ राज्यों में प्रतिबन्ध लगाए जाने पर अपनी गहरी आपत्ति दर्ज करायी तो निश्चित रूप से वे अपने पूर्ववर्ती पोप जान पाल द्वितीय की उस घोषणा को ही दोहरा रहे थे, जो उन्होंने नवम्बर, 1999 में नई दिल्ली में एशियाई बिशपों के सम्मेलन में व्यक्त की थी। तब पोप जान पाल द्वितीय ने तीसरी सहस्राब्दि प्रारम्भ होने के उपलक्ष्य में दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत में “यीशू का सन्देश जन-जन में फैलाने का आह्वान” बिशपों से किया ही, साथ ही यह भी कहा कि “फसल” पक चुकी है, इसे शीघ्रातिशीघ्र “काटने” में बिशप और पादरी जुट जाएं। पोप ने कहा था कि, “भारत में सर्वदूर अंधेरा छाया हुआ है, ईसा के सन्देश का प्रसार हुए बिना यह अंधेरा छंटने वाला नहीं है।” इसे संयोग कहा जाए या फिर पोप की दुर्भावना कि जिस दिन पोप भारत में अंधेरा फैले होने की घोषणा कर रहे थे, समूचा देश प्रकाश पर्व दीपावली मना रहा था। तब भी उन्होंने कहा था कि मतांतरण एक मानवाधिकार है और भारत में इसे प्रतिबंधित करना असंवैधानिक है। और अब पोप बेनेडिक्ट-16वें ने भारतीय राजदूत श्री त्रिपाठी को कहा कि, “मतांतरण पर प्रतिबन्ध लगाना धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर विभेदकारी प्रतिबन्ध है। मतांतरण पर प्रतिबंध के कानून भारत में धार्मिक असहिष्णुता के बढ़ने का स्पष्ट संकेत हैं और इससे भारत के कुछ क्षेत्रों में तनाव बढ़ रहा है। ऐसे किसी भी कानून को तत्काल रद्द किया जाना चाहिए। यह भारतीय संविधान निर्माताओं की भावना के भी विरुद्ध है।”
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में ईसाई मतान्तरण की तेज होती गतिविधियों से राज्य के अनेक जनपदों में तनाव व्याप्त हो गया था। कोटा के इमानुएल मिशन सहित अनेक मिशनरी संगठन राजस्थान के गांव-गांव में मतांतरण को कारोबारी रूप देकर छल-छद्मपूर्वक लोगों के मतांतरण में सक्रिय रहे हैं। राजस्थान की वसुन्धरा राजे सरकार ने गत 7 अप्रैल को धर्म स्वातंत्र्य विधेयक-2006 पारित कर राज्य में लोभ, लालच, भय और धोखाधड़ी पूर्वक मतान्तरण को गैरकानूनी घोषित कर दिया और इस कानून के उल्लंघन में शामिल व्यक्तियों को न्यूनतम 2 से 5 साल की सजा और 50 हजार रुपए जुर्माने का भी प्रावधान भी किया। इस कानून में अवैध मतांतरण में लिप्त व्यक्ति के विरुद्ध धाराओं को गैरजमानती भी बनाया गया है। स्वाभाविक ही राज्य में हलचल मचनी थी। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने विधेयक के विरुद्ध जहां सदन का बहिष्कार किया, वहीं देशभर के मिशनरी संगठनों ने अपने-अपने तरीके से इस कानून का विरोध प्रारम्भ किया। भला इस विरोध से वेटिकन अलग कैसे रहता, परिणामत: पोप बेनेडिक्ट ने नए कानून की आड़ में वेटिकन में भारत सरकार के प्रतिनिधि श्री त्रिपाठी को अच्छा खासा “सहिष्णु” उपदेश सुना डाला। यद्यपि मतांतरण विरोधी कानून पहले से गुजरात, अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा और मध्य प्रदेश में लागू है, किन्तु राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने विधेयक को गत 18 मई को राज्य सरकार को यह कहते हुए वापस भेज दिया कि इसके कुछ प्रावधान असंवैधानिक हैं। सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार विधेयक को शीघ्र ही अनुमोदन के लिए राष्ट्रपति के पास भेजेगी।
राष्ट्रपति विधेयक पर अपनी सहमति देंगे अथवा नहीं यह तो बाद का विषय है किन्तु पोप के हस्तक्षेप ने संपूर्ण मामले को एक नया मोड़ दे दिया है। यद्यपि भारत सरकार ने पोप के वक्तव्य पर आपत्ति प्रकट की है लेकिन आपत्ति की भाषा इतनी लचर है कि संभवत: इसे आपत्ति कहना भी न्यायसंगत नहीं होगा। पोप के वक्तव्य के तुरन्त बाद विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया कि भारत में सभी मत पंथों को पूरी तरह से स्वतंत्रता प्राप्त है। पुन: राज्यसभा में भाजपा सदस्य एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद के एक प्रश्न के उत्तर में विदेश राज्य मंत्री श्री आनन्द शर्मा ने कहा कि भारत सरकार ने इस संबंध में अपनी नाराजगी से वेटिकन के राजदूत को अवगत करा दिया है। विदेश राज्यमंत्री ने कहा कि संभवत: पोप को संपूर्ण मामले की ठीक से जानकारी नहीं दी गयी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् और भारतीय जनता पार्टी ने पोप के वक्तव्य की कड़ी निन्दा की है। दूसरी ओर भारत में अपने वक्तव्य की आलोचना से बेफिक्र पोप बेनेडिक्ट ने मुम्बई के आर्चबिशप इवान डायस को वेटिकन में कार्डिनल नियुक्त कर दिया है। इवान डायस को वेटिकन द्वारा संपूर्ण विश्व में ईसाइयत के प्रसार विभाग का प्रमुख भी बनाया गया है। कार्डिनल इवान डायस ने अपनी नियुक्ति के तुरंत बाद मुम्बई से बयान जारी कर पोप के वक्तव्य को सही ठहराया है।
पूअर क्रिश्चियन लिबरेशन फ्रंट के अध्यक्ष श्री आर.एल. फ्रांसिस इवान डायस की नियुक्ति को भारत में वेटिकन की गहरी रुचि का संकेत मानते हैं। श्री फ्रांसिस ने पाञ्चजन्य से विशेष बातचीत में कहा है कि इवान डायस की नियुक्ति वेटिकन द्वारा भारत में मतांतरण की गति तेज करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है, जिसे भारत सरकार व अन्य राज्य सरकारों को गंभीरता से लेना चाहिए।
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