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पाठकीय

by
Apr 6, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Apr 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 7 मई, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि.

वार

ई. सन् 2006

ज्येष्ठ शुक्ल 8

रवि

4 जून

,, 9

सोम

5 ,,

,, 10

मंगल

6 ,,

(श्री गंगा दशहरा)

,, 12

गुरु

8 जून

(निर्जला एकादशी व्रत)

,, 13

शुक्र

9 ,,

(प्रदोष व्रत)

,, 14

शनि

10 “”

वही पुरानी आग

छोटे-छोटे दिल हुए, दूषित हुए दिमागअर्जुन सिंह भड़का रहे, वही पुरानी आग।

वही पुरानी आग, लगाकर दूर खड़े हैंऔर इधर सड़कों पर देखो छात्र अड़े हैं।

कह “प्रशांत” है कांग्रेस का अजब तमाशाआरक्षण की आग बनी वोटों की आशा।।

-प्रशांत

सरकारहीन देश

आवरण कथा “भारत में बढ़े भारत पर प्रहार” देश में हिन्दुओं की दशा से अवगत कराती है। लगता है कि हिन्दू, जो इस देश की मूल पहचान है, तथाकथित सेकुलरवादियों की नजरों में तीसरे दर्जे का नागरिक बन कर रह गया है। जो लोग हिन्दुओं के दु:ख-दर्द को जान बूझकर नहीं देखते-समझते हैं और उनके घावों पर नमक छिड़कते हैं, उनसे सावधान रहने की जरुरत है। हिन्दुओं पर हमले और उनका मतान्तरण गंभीर समस्या है। सभी राजनीतिक दलों के नेताओं और आम लोगों को भेदभाव भूलकर इस समस्या का कोई हल निकालना चाहिए।

-आचार्य संतोष श्रीवास्तव

केशकाल, बस्तर (छत्तीसगढ़)

“भारत में बढ़े भारत पर प्रहार” रपट पढ़कर भी यदि हिन्दू समाज नहीं चेता, तो परिस्थितियां बद से बदतर हो जाएंगी। क्या इसी दिन के लिए हमारे नौनिहालों ने अपना सब कुछ राष्ट्र को समर्पित किया था? क्या यही दशा देखने के लिए रामप्रसाद बिस्मिल ने फांसी के फंदे को चूमने से पहले कहा था,

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है

“देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है,

वक्त आने पर बता देंगे तुझे ए आसमां,

हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।”

क्या आज हम स्वहित तक सीमित नहीं रह गए हैं? क्या हम कभी राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति जैसे विषयों पर सोचते हैं? हमें जागना होगा, सोचना होगा।

-संजयपाल सिंह श्योराण

अध्यापक, नवलगढ़ रोड, सीकर (राजस्थान)

पाञ्चजन्य से जो विचार-समाचार प्राप्त होते हैं, उनकी चर्चा और कहीं देखने-सुनने को नहीं मिलती। यह जानकर बड़ा दु:ख होता है कि हिन्दू ही हिन्दू की पीड़ा को महसूस नहीं करता। हम जिस परिवेश में रहते हैं, वहां कहने को तो पढ़े-लिखे लोग हैं, पर सब संवेदना और चिन्तन-रहित। इन लोगों को हिन्दुत्व से जुड़ी बातें फालतू लगती हैं। दु:ख तो तब और गहरा हो जाता है, जब हमारे बीच के कुछ तपे-तपाए लोग ही बेलगाम हो जाते हैं, विद्रोही तेवर अपना लेते हैं।

-परमानन्द पाण्डेय

सहायक अभियन्ता

डी-81, हसदेव ताप विद्युत गृह, दर्री,

कोरबा (छत्तीसगढ़)

व्यावहारिक सुझाव

श्री वरुण गांधी ने अपने लेख “गुरिल्लाओं से गुरिल्लाओं की तरह युद्ध करेंगे तो नक्सलवाद का विष मिटेगा” में नक्सलवाद के खात्मे के लिए जो सुझाव दिए हैं, वे व्यावहारिक हैं। किन्तु नक्सलवाद क्यों फैला, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने 16 अप्रैल के अंक में भी “शक्ति दिखाए बिना बंगलादेश सुधरेगा नहीं” शीर्षक से एक लेख लिखा था। बंगलादेश पूरी तरह भारत का शत्रु बनता जा रहा है। वहां हिन्दुओं, विशेषकर हिन्दू लड़कियों एवं महिलाओं पर मुसलमानों द्वारा की जा रही बर्बरता क्षुब्ध करने वाली है। दु:ख होता है कि सलमान खान पर हमदर्दी रखने वाले हमारे यहां के सेकुलर पत्रकारों को बंगलादेशी हिन्दुओं की पीड़ा नहीं दिखती।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरीतलैया, कोडरमा (झारखण्ड)

अपना-अपना राग

सम्पादकीय “सरकारहीनता की स्थिति” में संप्रग सरकार के संरक्षण में हो रही देश की दुर्दशा का बेबाक चित्रण हुआ है। जहां वामपंथी केन्द्र सरकार की समय-समय पर टांग खींचकर अपने “सहयोग” की पूरी कीमत वसूल करते दिखाई दे रहे हैं, वहीं कई वरिष्ठ मंत्रियों को प्रधानमंत्री की परवाह बिल्कुल नहीं है और वे अपनी मर्जी के मालिक हैं। वृद्ध एवं बीमार दिखाई देने वाले सेकुलरवाद के अग्रणी झंडाबरदार अर्जुन सिंह को आज भी प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक साल रही है। इसलिए वह आरक्षण की आग पर राजनीतिक रोटियां सेंक कर प्रधानमंत्री के सामने नित्य नई अड़चनें खड़ी करने में ही अपनी भलाई समझते हैं। वस्तुस्थिति जो भी हो, वर्तमान राजनीतिक वातावरण केन्द्र की सरकारहीनता की स्थिति से उबरने के लिए ऐसी विषम चुनौती है जिसे यह सत्तालोलुप कमजोर सरकार स्वीकार करे तो मुसीबत और न करे तो भी मुसीबत।

-रमेश चन्द्र गुप्ता

नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

यह कैसी बात?

सरोकार स्तम्भ में श्रीमती मेनका गांधी का यह कथन तो सही है कि अनिषेचित अंडा भी मांसाहार है, लेकिन यह कथन कि “दूध भी शत प्रतिशत मांसाहार है” समझ से बाहर की बात है। पैदा होने के बाद बच्चे का पोषण मां के दूध से ही होता है। मानव संतान के पोषण में दूध की अहम भूमिका होती है। यदि दूध को भी मांसाहार माना जाएगा तो फिर कोई भी शाकाहारी नहीं कहलाएगा। मांस की प्राप्ति हिंसा से होती है, जबकि दूध की प्राप्ति हिंसारहित है। जैन साधु अहिंसक और पूर्ण शाकाहारी होते हैं। यदि दूध मांसाहार होता तो वे कभी इसका सेवन न करते।

-चम्पतराय जैन

4-बी, रेसकोर्स, देहरादून (उत्तरांचल)

आसन्न संकट को समझो

वैचारिकी के अंतर्गत डा. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री के आलेख “भारत में ओपस दाई” से पता चला कि ओपस दाई सम्पूर्ण विश्व का ईसाईकरण करने के लिए संकल्पित है। भारत के एक बड़े राजनीतिक दल का इसे सहयोग मिलता है। इसलिए कई राज्यों में मतान्तरण काफी तेजी से हो रहा है। जाति-पंथों में खण्डित हिन्दू समाज आसन्न संकट को समझ नहीं पा रहा है। हिन्दुओं को संगठित होकर “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” का जयघोष पुन: एक बार गुंजाना होगा।

-मोहित कुमार मंगलम्

ग्रा. – कुशी, पो.- कांटी, मुजफ्फरपुर (बिहार)

आरक्षण की आग

मंथन स्तम्भ में श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “आरक्षण-विशुद्ध सत्ता राजनीति” से कई तथ्य उजागर हुए। जिस आरक्षण का उल्लेख 1932 के “पूना पैक्ट” और 1935 के “भारत एक्ट” में किया गया था, वह केवल अंशकालिक था। उसका उद्देश्य था समाज में समरसता लाना, किन्तु आजादी के बाद राजनेताओं ने आरक्षण को अपने वोट बैंक के रूप में प्रस्तुत किया और वह सिलसिला आज भी जारी है। इन लोगों ने आरक्षण के नाम पर समाज को जड़ तक विभाजित कर दिया है। सरकार सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों पर विशेष ध्यान दे, उन्हें हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास करे। आरक्षण एक बैसाखी है, जिसके कारण प्रतिभाएं कुंठित होती हैं।

-दिलीप शर्मा

114/2205, एम.एच.वी. कालोनी, समतानगर,

कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)

सत्य हुआ कथन

“कुछ नहीं बदलेगा बंगाल में” शीर्षक से पाठकीय में चेन्नै के श्री अरविन्द घोषाल का पत्र छपा था। उनका कथन सत्य हुआ और वामपंथी लगातार सातवीं बार पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने में सफल रहे।

-बी.एल. सचदेवा

263, आई.एन.ए. मार्केट (नई दिल्ली)

माकपा का इतिहास

कम्युनिस्टों का तो इतिहास ही रहा है कि विरोधियों को मौत के घाट उतार दो। इन्हीं माक्र्सवादियों ने एक बार प. बंगाल में माकपा को वोट नहीं देने पर तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के हाथ काट डाले थे। अब अपने इतिहास को दोहराते हुए त्रिपुरा के निकाय चुनावों में माकपा के विरुद्ध चुनाव लड़ने वाली कांग्रेसी नेता पद्मावती के पति की हत्या कर दी और बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार किया। हाल के विधानसभा चुनावों में केरल तथा बंगाल में माकपा को मिली सफलता के पीछे जनादेश नहीं, वरन् प्रमुख रूप से माकपा कार्यकर्ताओं की गुण्डागर्दी व विपक्षी दलों का बिखराव है।

-अभिजीत प्रिंस

स्नातक (तृतीय वर्ष)

लंगट सिंह महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार)

गुजरात से हिंगलाज

हिंगलाज यात्रा का विवरण नियमित रूप से पढ़ता हूं। हमारे प्रदेश गुजरात से हिंगलाज देवी का स्थान बहुत ही नजदीक है। इस दृष्टि से कच्छ-कराची के बीच पैदल यात्रा शुरू हो, इसके लिए सरकार को प्रयास करना चाहिए।

-गोविन्द वी. खोखानी

“प्रज्ञा ज्योति” न्यू वास, पो.-मधापर,

भुज, कच्छ (गुजरात)

वाह! आनंद आ गया

शक्तिपीठ हिंगलाज तीर्थयात्रा का धारावाहिक वृत्तांत बड़े चाव के साथ मैं बराबर पढ़ रहा हूं। इसे पढ़ने में जो आनन्द आ रहा है उसका शब्दों में वर्णन करना मेरे जैसे गैरसाहित्यिक व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। पाकिस्तान की यात्रा तो कई पत्रकारों/लेखकों ने की है और उन्होंने अपनी पाकिस्तान यात्रा के वृत्तांत भी लिखे हैं। किन्तु श्री तरुण विजय पाकिस्तान यात्रा का वृत्तांत जिस विशेष दृष्टिकोण व निष्पक्षता के साथ लिख रहे हैं, उसे अद्भुत ही कहा जा सकता है। सेकुलर पत्रकारों/लेखकों ने पाकिस्तान की यात्रा के बाद जो कुछ लिखा है, उसमें वहां के हिन्दुओं, हिन्दू मन्दिरों व हिन्दू तीर्थों का या तो जिक्र ही नहीं है। यदि है भी तो वह सरसरी तौर पर ही है।

पाकिस्तान में रह रहे हिन्दुओं की स्थिति का जितना स्पष्ट एवं वस्तुपरक वर्णन पाञ्चजन्य प्रकाशित कर रहा है वैसा न कभी हुआ और न कभी होगा। इसके लिए आपको जितना साधुवाद दिया जाए उतना ही कम है। पाकिस्तान में कुछ गिने-चुने हिन्दू बड़े व्यवसायी हैं, विधायक हैं, वकील व पत्रकार हैं, यह जानकारी बहुत से पाठकों के लिए नई हो सकती है। किन्तु वहां रह रहे हिन्दू व अन्य मजहबी अल्पसंख्यकों, उनके धार्मिक स्थलों, उनकी सामाजिक-राजनीतिक स्थिति, जनसंख्या के आंकड़ों आदि का कोई प्रकाशित लेखा-जोखा आप पाकिस्तान में नहीं प्राप्त कर सके, यह मेरे जैसे व्यक्ति, जिसे कराची जाने का दो बार मौका मिला है, के लिए भी नई बात है।

आप इस जीवन्त व उपन्यास की तरह रोचक, अद्भुत पाकिस्तान की यात्रा को पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की व्यवस्था कर सकें तो यह अपने आप में एक अनूठी पुस्तक होगी। आपके पाकिस्तानी सफरनामे में न अतिशयोक्ति है और न यह एकपक्षीय है, फिर भी यह उपन्यास की तरह रोचक है। इसे कोई एक बार पढ़ना प्रारम्भ करेगा तो पूरा पढ़े बिना नहीं रहेगा।

-विनोद चन्द्र पाण्डेय

खतराना टोला, इटावा (उ.प्र.)

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